उतरौला (बलरामपुर)एक ओर बाल श्रम जैसी कुरीति को दूर करने की दिशा में शासन और प्रशासन द्वारा किए जा रहे प्रयास उनके उत्थान के लिए कई कार्य योजना बनाये गए हैं।
तो वहीं हकीकत यह है कि अभी भी बड़ी संख्या में नौनिहाल सुबह होते ही कबाड़ बीनने के लिए कंधे पर बोरी टांगकर निकल पड़ते हैं। पढ़ने लिखने की उम्र में रोजी रोटी के लिए चिंता कर रहे इन बच्चों को न तो भविष्य की चिंता है और न ही वर्तमान की फ़िक्र इन्हें तो बस दो जून की रोटी के प्रबंध की चिंता है।
बालश्रम जैसी कुरीति को रोकने की दिशा में शासन और प्रशासन स्तर से व्यापक कार्ययोजनाएं बनाई गईं जिम्मेदार विभागीय अम्लों के अलावा स्वंय सेवी संस्थाएं भी इस मुहिम में आगे आये लेकिन इस सब के बावजूद बालश्रम को रोका नहीं जा सका। मौजूदा स्थिति यह है कि सुबह होते ही बड़ी संख्या में नौनिहाल बच्चे कबाड़ बीनते नजर आते हैं, और देर शाम तक उनका यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है।कस्बे के बाजारों में तो यह स्थिति है कि दिन भर दुकानों के इर्द-गिर्द फेंके जाने वाले कबाड़ को अगली सुबह होने से पहले ही इकठ्ठा करने की चाह रखने वाले यह बच्चे भोर होते ही निकल पड़ते हैंऔर जगह जगह दुकानों के सामने पड़े कचरों को इकठ्ठा करने लगते हैं।उस कचरे में से लोहा, प्लास्टिक को अलग कर देर शाम कबाड़ियों के दुकानों पर बेचने पहुंच जाते हैं।
इतना ही नहीं कई छोटे उम्र के बच्चे चाय पकौड़ी के दुकान पर काम करते देखे जा सकते हैं। सुबह से लेकर शाम तक वह लोगों को चाय ले जाकर देना एवं जूठे बर्तनों को धोते नजर आ रहे हैं जिन पर विभागीय अधिकारियों द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
असग़र अली
उतरौला
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