यूं तो रमजान का पूरा महीना मोमिनों के लिए खुदा की तरफ से अजमत, रहमत और बरकतों से लबरेज है। लेकिन अल्लाह ने इस मुबारक महीने को तीन अशरों में तक्सीम किया है। पहला अशरा खुदा की रहमत वाला है। पहले अशरे में 10 दिनों तक अल्लाह की रहमत से सभी सराबोर होते रहेंगे। एक से 10 रमजान यानी पहले अशरे में खुदा की रहमत नाजिल होती है। दसवीं रमजान से दूसरा अशरा शुरू होगा। रमजान का पहला अशरा बेशुमार रहमत वाला है।
पूरे रमजान माह को 3 अशरों में बाँटा गया है। रमजान के पहले दस दिनों को पहला अशरा, दूसरे दस दिनों को दूसरा अशरा और आखिरी दस दिनों को तीसरा अशरा कहा जाता है। यानी पहले रोजे से 10वें रोजे तक पहला अशरा, 11वें रोजे से 20वें रोजे तक दूसरा अशरा और 21 वें रोजे से 30वें रोजे तक तीसरा अशरा।
मौलाना नईम ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक हदीस है जिसका मफूम है कि रमजान का पहला अशरा रहमत वाला है। दूसरा अशरा अपने गुनाहों की माफी माँगने का है और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह चाहने वाला है। (मफूम) रमजान के पहले अशरे में अल्लाह की रहमत के लिए ज्यादा से ज्यादा इबादत की जानी चाहिए। इसी तरह रमजान के दूसरे अशरे में अल्लाह से अपने गुनाहों की रो-रोकर माफी माँगनी चाहिए। रमजान की तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह माँगने का है।
*वक्त की पाबंदी का अभ्यास कराता है रमज़ान*
रमजान का हर पल महत्व रखता है। रमजान वक्त की पाबंदी का अभ्यास कराता है। रमजान में समय पर नमाज अदा करना, समय पर तिलावत करना, समय पर, इफतार करना, समय पर सेहर करना, समय पर सोना, समय पर जागना ये सब इबादत है। रोजा ही एक ऐसी इबादत है जिसमे सीधा अल्लाह ताला से इन्सान का सम्पर्क होता है। क्योंकि अगर कोई नमाज पढ़ रहा है तो दूसरा आदमी देख रहा है।
जकात दे रहा है तो इसमें भी एक हाथ देता है लेने वाला दूसरा हाथ सामने रहता है। रोजा की नमाज में अल्लाह और रोजेदार के अलावा तिसरा कोइ नही जानता है की अल्लाह से क्या वार्ता हुयी। उन्होंने कहा की रमजान में नहीं बल्कि हमेशा कुरान शरीफ खूब तिलावत करनी चाहिए। नफिल नमाज पढ़नी चाहिए। सारी बुराइयों से दूर रहना चाहिए। यह महीना ऐसा है जो आदमी को आदमी से मिलाते हुए ग्यारह महीनों तक लगातार नेक काम करने बुराई से बचने का अभ्यास कराता है।
रमजान के महीने में वक्त की पाबंदी खुदा का नायाब तोहफा है। रमजानुल मुबारक में मुसलमानों की दिनचर्या ही बदल जाती है। वैसे तो रोजाना पांच वक्त की नमाज पढ़ना हर मोमिन के लिए फर्ज है। लेकिन इस महीने की फजीलत ही अलग है।
इस महीने में मुसलमान रोजा रख रहे हैं और पाबंदी से पांच वक्त की नमाज के आलावा तरावीह की नमाज भी अदा करते हैं। रोजा पूरे एक माह हमें अभ्यास कराता है कि साल के शेष ग्यारह माह हमें किस प्रकार गुजारनी चाहिए।
असग़र अली
उतरौला
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