उतरौला(बलरामपुर) नगर सहित ग्रामीण इलाकों में शब-ए-बारात का त्यौहार बड़े अकीदत के साथ मनाया गया।इस दौरान जगह जगह ईद मीलादुन्नबी का कार्यक्रम आयोजित किया गया जहां उलेमा व शोयराए कराम के द्वारा खिताब फरमाया गया।
शब -ए-बारात के मौके पर कब्रिस्तानों पर रोशनी की गई जहां पर शब की आखिरी पहर में पहुंच कर मुस्लिमों ने कब्रिस्तान में दफ्न अपने पूर्वजों के बख्शिस की दुआ मांगी। शब ए बारात मुसलमानों का एक खास त्यौहार है। इस रात में मुसलमान जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं। इन्हीं रातों में नफिल नमाज ए पढ़ना, अपने पूर्वजों के लिए दुआ ए मगफिरत करना और कुरान की तिलावत करना अहम माना जाता है। घरों की महिलाओं द्वारा अच्छे-अच्छे पकवान भी बनाए जाते हैं। मुफ्ती मोहम्मद जमील खान बताते हैं की इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से शब- ए- बारात अरबी के आठवें महीने यानी शाबान के 15 वीं तारीख को मनाया जाता है। शाबान महीने के बाद रमजान का महीना शुरु होता है। रमजान महीना मुसलमानों में सबसे पवित्र महीना माना जाता है।शब का मतलब रात और -बरात का मतलब माफी होता है। इस दौरान मुसलमान पूरी रात अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी की दुआ करते है। ऐसा माना जाता है कि आने वाले साल के भाग्य का फैसला इसी रात में किया जाता है। इसी वजह से मुसलमान इस रात को विशेष इबादत करते हैं। शब- ए- बारात विशेष तौर पर एशिया के मुल्कों में मनाया जाता है। बड़ी संख्या में लोग कब्रिस्तान जाते हैं। और अपने पूर्वजों या इस दुनिया से जा चुके रिश्तेदारों और करीबियों के लिए दुआ ए मगफिरत करते हैं। दरअसल शबे बरात की रात मुसलमानों के आखरी पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम मदीना के कब्रिस्तान जन्नतुल बकी गए थे। इसी एतबार से मुसलमान उनका अनुसरण करने लगे।इस रात अल्लाह अपने बंदों की हर गुनाहों को माफ करता है और इसी रात पूरे साल की तकदीर का फैसला किया जाता है।इस लिए इस रात को फैसले की रात भी कहा जाता है।
इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है ऐसा मानना है कि तौबा की इस रात को अल्लाह अपने बंदों के पूरे साल का हिसाब किताब करता है। शबे बारात के मौके पर लोगों द्वारा अपने घरों व मस्जिदों में खूब नफील की नमाज़ व कुरआन की तिलावत की गई
असग़र अली
उतरौला
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