हिन्दीसंवाद के लिए असगर अली की रिपोर्ट
उतरौला (बलरामपुर) :
मुगलकाल से पौराणिक महत्व संजोए दुखहरण नाथ मंदिर का शिवलिंग आज भी लोगों की आस्था व श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। नगर के उत्तरी छोर पर बसे आर्यनगर मुहल्ले में स्थित इस मंदिर का शिवलिंग उत्तर दिशा की तरफ झुका हुआ है। इसी स्थान पर एक टीले की खोदाई के दौरान मिट्टी में दबा मिला भूरे शिवलिंग के शीर्ष पर आरे से काटे जाने के निशान आज भी मौजूद हैं। मंदिर के संरक्षक महंथ पुरुषोत्तम गिरि बताते हैं कि सैकड़ो वर्ष पूर्व घुमक्कड़ संत जयकरन गिरि को टीले पर विश्राम के दौरान स्वप्न में टीले की खोदाई करने का आदेश मिला था। मिट्टी में दबा शिवलिंग बाहर निकालने के बाद उसकी स्थापना इसी स्थान पर करने का काम शुरू हुआ। तत्कालीन मुगल शासक नेवाज खां ने स्थापना में बाधा उत्पन्न की। शिवलिंग को छिन्न-भिन्न करने के लिए उसे आरी से काटने का आदेश दिया। आरा चलते ही शिवलिंग से रक्त की धार बहता देख काटने वाले भाग खड़े हुए। नेवाज खां को अपनी भूल का एहसास हुआ। बाद में शिवलिंग की स्थापना यहीं की गई। मंदिर के उत्तर, दक्षिण व पूरब दिशा में 12 और शिवलिंग स्थापित हैं। प्रत्येक सोमवार के अतिरिक्त महाशिवरात्रि, हरतालिका तीज, श्रावण व मलमास मे जलाभिषेक करने वालों की भारी भीड़ जुटती है।महा शिवरात्रि पर्व को लेकर दुखहरण नाथ मंदिर की साफ सफाई व रंग रोगन की तैयारी पूर्ण कर ली गई है इसी के साथ मंदिर के आसपास भी सफाई की जा रही है।
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