*जीवन दायिनी नदियों का दर्द!*
(डिसिल्टिंग के कारण, लुप्त होती नदियाँ और गिरता भू-गर्भ जलस्तर।)
ः- रणविजय निषाद
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कालान्तर में घटता हुआ भू-गर्भ जलस्तर, दूषित, सिमटती और विषैली होती नदियाँ, सिकुड़ते ग्लेशियर वैश्विक चिन्तन के विषय हैं। आजतक देश की किसी भी नदी में डिसिल्टिंग का काम किया ही नहीं गया। पहले देश की नदियाँ अविरल बहती रहती थीं, और बहती हुई नदी में खुद को साफ और गहराई बनाए रखने की क्षमता होती थी। वक्त बदला और नदी भौतिक समृद्धि का शिकार हुईं। पहाड़ों में बड़ी मात्रा में हाइड्रो पॉवर प्लाण्ट बनाए गए तो मैदानी भागों में सिंचाई परियोनाओं के नाम पर बाँध बनाए गए। जिससे नदियों का अविरल बहना रुक गया। नदियाँ दर्द से कराहने लगीं, मानो अविरल जल रुक सा गया। नदी रुकी तो मानो पूरी पारिस्थितिकी ही रुक गई। सिल्ट जमा होने का सबसे बड़ा उदाहरण गंगा नदी पर बना फरक्का बैराज है, जिसके कारण सिल्ट के ढेर और फिर वह पर्वताकार पहाड़ के रूप में परिवर्तित हो गया, जिससे गंगा नदी का पानी फैल कर झारखण्ड और बंगाल की सीमा को निगलता जा रहा है वर्तमान में राजमहल से लेकर मालदा तक का बड़ा क्षेत्र आज विश्व के सबसे बड़े कटानों के क्षेत्र में सम्मिलित हो गया। कानपुर, फतेहपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज से लेकर गाजी़पुर, बलिया, लालगंज, हाजी़पुर, पूर्णिया, कटिहार और मानिक चौक तक के हजारों गाँव आज कटान के दंश को झेल रहे हैं।
कमोबेश यही स्थिति चम्बल, बेतवा, यमुना, गोदावरी, सतलुज आदिक नदियों का है। जिनकी डिसिल्टिंग (रेत के सफ़ाई) करना अति आवश्यक है और समीचीन होगा।
यह विषय अब किसी देश विशेष के लिए नहीं प्रत्युत समग्र जीवमण्डल के लिए यत्र-तत्र-सर्वत्र अभिव्यक्त होता आ रहा है। सचाई तो यह है कि मनुष्य जहाँ भी अपनी भोगवादी जीवन शैली का हस्तक्षेप करता आ रहा है, वहाँ-वहाँ विष बीज का वपन हो जा रहा है। प्रकृति (जल-थल-नभ) मनुष्य की बर्बरता से इतनी तंग आ चुकी है कि वह अब विकराल रूप-रंग, आकार-प्रकार में अपना भयावह रूप दिखाने के लिए बाध्य और विवश है। हम आप प्रत्यक्षदर्शी हैं कि प्रकृति समय-समय पर भूकंप, भूस्खलन, घटते भूगर्भ जलस्तर, ओज़ोनपरत-क्षरण, सूखा, बाढ़ इत्यादिक रूप में मनुष्य की क्रूरता के लिए उन्हें अविस्मरणीय सीख-सिखाने के लिए कटिबद्ध है।
*समग्र विश्व बूँद-बूँद जल संकट से तो जूझ ही रहा था; इधर नदियों से सिल्ट (रेत) की सफाई न होने के कारण अधिकांश नदियाँ लुप्तप्राय सी होती जा रही हैं। तो दूसरी तरफ डिसिल्टिंग की वजह से नदियों के माध्यम से जो पानी भूगर्भ को रीचार्ज होना चाहिए वो नहीं हो रहा है। जहाँ बूँद-बूँद जल के लिए त्राहिमाम-त्राहिमाम की स्थिति है; वहीं नदियों से रेत की सफाई न होने (Desilting) से गिरते भू-गर्भ जलस्तर ने घूसें पर लात मारने का काम किया।*
वर्तमान में कोरोना संक ट की वजह से आपको पानी से बार-बार हाँथ धुलने की बात कही जा रही है। आप कल्पना करें यदि एक व्यक्ति एक दिन में 8 बार हाँथ धुलता है, जिसमें एक समय मे 1 लीटर जल लगता है तो पूरे दिन सिर्फ हाँथ धुलने में एक व्यक्ति 8लीटर जल प्रयोग करेगा। यदि परिवार में औसतन 5 लोग हैं तो एक परिवार में सिर्फ हाँथ धुलने में 40 लीटर जल का अतिरिक्त प्रयोग किया जाएगा। हम सबने अज्ञानतावश हाँथ धुलने के लिए पेयजल (मीठाजल) को ही माध्यम बनाया है, जिसके कारण जल संकट कालांतर में एक पर्वताकार रूप ले सकता है। वर्त्तमान में बुन्देलखण्ड में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है, पानी के लिए आमजन लम्बी-लम्बी कतार में खड़े देखे जा सकते हैं। अभी भी वक्त है, अपने जीवनशैली में परिवर्त्तन कर हम जल जैसे अमूल्य संसाधन को बचा सकते हैं। कहीं ऐसा न हो कि हम हाँथ धुलते-धुलते पानी से ही न हाँथ धो बैठें। हमें ध्यान करना होगा कि हमारे चारों ओर जल-थल-नभ में जो प्रकृति ने विरासत में दिया है; उसमें जल एक महत्त्वपूर्ण रसायन है। अतः जल की सर्व उपलब्धता बनी रहे, इसलिए इसका संरक्षण हम सबका दायित्व है।
नदियों की सर्वउपलब्धता बनी रहे इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर हम जल बचा सकते हैं--
*1- समय-समय पर देश और प्रदेश की नदियों से रेत (सिल्ट) को को हटाते रहें।*
*2- लगभग सभी नदियों को आपस में जोड़ दिया जाए, जिससे, नदियों का जल, सागर या समुद्र में न जाकर सीधे Ground Water Level को recharge करेगा। जिससे जल संकट से मुक्ति मिलेगी।
*3- नदियों की Desilting तथा आपस में जोड़ने से अन्न उत्पादन क्षमता का विकास तथा जल की उपलब्धता बनी रहेगी।*
*4- हाँथ धुलते समय हाँथ में साबुन, शैम्पू लगाने के बाद टोंटी बन्द कर दें, साबुनीकरण होने के बाद टोंटी खोलकर अच्छी तरह हाँथ धुल लें।*
*5-टोंटी को आधी गति में ही खोल कर जल का प्रयोग करें; ऐसा करने पर जल, साबुन या शैम्पू कम लगेगा। आपके कपड़े भी गन्दे नहीं होंगे।*
*6- हाँथ धुलने के बाद पानी को सोकपिट में एकत्र करना न भूलें।*
*7- जल प्रयोग करने के बाद टोंटी को अच्छी तरह से बन्द कर दें, जिससे बूँद-बूँद जल न टपके। 24 घण्टे में बूँद-बूँद जल टपकने से लगभग 24 लीटर जल बर्बाद हो जाता है।*
*8- पक्षियों के लिए छत पर पानी अवश्य रखें। पक्षी पर्यावरण के लिए आवश्यक हैं। ये बीजों को बिखेर कर वृक्षारोपण में सहायक है।*
*9- नदियों की डिसिल्टिंग कर हम बाढ़ से भी बच सकते हैं।*
*10- डिसिल्टिंग की गई रेत को नीलाम कर राजकोष बढ़ाने के साथ-साथ बेरोजगारों को रोज़गार भी उपलब्ध करा सकते हैं।*
अंततः हम नदियों को डिसिल्टिंग करके उन्हें बचा सकते हैं। डिसिल्टिंग के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
*जल को हम बचा सकते हैं लेकिन बना नहीं सकते हैं।*
💧 *जल बचाओ-जीवन बचाओ*💧
*_आओ! सिल्ट (रेत) हटाकर नदी बचाओ, अभियान का हिस्सा बनें।_*
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सर्वाधिकार सुरक्षित
*रणविजय निषाद*
शिक्षक एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता कन्थुवा,कड़ा-कौशाम्बी(उत्तरप्रदेश)
यायावर भाषक संख्या:-9936003570, 9415632881
ईमेल:-- nishadranvijaygov@gmail.com
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