मुंह की खाने से डर लगता , तो मत कूदो मैदानों में।
अभिमन्यु की गिनती होती, योद्धाओं में बलवानों में।।
जो बादल शोर मचाते हैं , उनसे पानी की आस नहीं।
जो हाथ मदद को उठ जायें, जाने जाते गुणवानो में।।
विद्या विनम्रता की साथी, फल लदे वृक्ष की भांति झुको।
तुम क्षुद्र नदी सा इतराते , रहते हो गर्व गुमानों में।।
अवसरवादी मत बनो कभी , अपनी मर्यादा हाथों में।
तुम बनो उजाला महफिल की, गिनती होगी महमानो में।।
मुखबीर चुगलखोरों के लिए, कुछ दिन चमकीले होते हैं।
जो मातृभूमि पर मर मिटते , जाने जाते बलिदानों में।।
बनकर दरबारी मिट जाते, जिनको अपनी पहचान नहीं।
जो चक्रव्यूह से डर जाते , वे खो जाते अनजानों में।।
जो जीते हैं अपनों के लिए, जीवनभर प्यार उन्हें मिलता।
पर जो जनहित में जीते हैं , पूजे जाते भगवानों में।।
सत्ता की हनक दिखलाना क्या,दिन चार चांदनी रहती है।
जो ग्वाल -बाल संग जी लेता ,घर -घर रहता दलानों में।।..." अनंग "
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