*बच्चों के प्रति बढ़ता यौन शोषण व बचाव के उपाय*

डॉ मनोज कुमार तिवारी 
वरिष्ठ परामर्शदाता 
ए आर टी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू,  वाराणसी

यौन शोषण वर्तमान में समाज की एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। यौन शोषण न केवल महिलाओं बल्कि बच्चों एवं कभी-कभी पुरुषों के साथ भी होता है। किसी की इच्छा के बिना उसे छूने की कोशिश करना या छूना, यौन संबंध बनाने के लिए दबाव बनाना, जबरन यौन संबंध बनाना, नग्न होने के लिए बाध्य करना, हस्तमैथुन के लिए बाध्य करना, अश्लील बातें करना, अश्लील चित्र, फिल्म या सामग्री दिखाना, अश्लील इशारे करना इत्यादि यौन शोषण है।

आजकल बच्चों के यौन शोषण की घटनाएं भारत में भी बढ़ने लगी है जो समाज एवं राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है। 90% बच्चों का यौन उत्पीड़न पारिवारिक सदस्य एवं जान- पहचान के व्यक्ति द्वारा किया जाता है। बच्चों का यौन उत्पीड़न ज्यादातर पुरुषों द्वारा किया जाता है किंतु महिलाओं द्वारा भी यौन शोषण के मामले पाए गए हैं। 10 में से 9 यौन शोषण के मामले में उत्पीडन करने वाला बच्चे का पारिवारिक सदस्य या जान पहचान का होता है। यौन उत्पीड़न के मामले में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (2007) के एक सर्वे के अनुसार 53% लोगों ने स्वीकार किया कि कभी न कभी वे यौन शोषण के शिकार हुए जिसमें से 32%  बच्चों के साथ बलात्कार, नाजुक अंगों को छुना या चुंबन करना तथा 21% बच्चों को अश्लील सामग्री दिखाना तथा उनके सामने अश्लील हरकत करना शामिल है। प्रत्येक 4 में से 1 लड़की तथा 13 लड़के में से 1 लड़का अपने बचपन में कभी न कभी यौन शोषण का शिकार होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (2002) की रिपोर्ट के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के 7.9% लड़के एवं 19.7 परसेंट लड़कियां यौन शोषण की शिकार होती है। यूनिसेफ द्वारा 2005-2013 के बीच भारत में किए गए एक सर्वे में पाया गया कि 10 - 14 वर्ष की 10% तथा 15 - 19 वर्ष के 30% लड़कियां यौन शोषण का सामना करती है।

बच्चों के यौन शोषण के पीछे अनेक कारण होते हैं व्यक्ति अपनी यौन कुण्ठा या मनोविकारों से ग्रस्त होने के कारण बच्चों का यौन शोषण कर सकता है। कई बार बड़ों के बीच दुश्मनी के कारण भी बदले की भावना से व्यक्ति उनके बच्चों का यौन शोषण करता है। बच्चे यौन शोषण से कई बार वाकिफ नहीं होते जिससे वे विरोध  नहीं कर पाते हैं और न ही उसे सही ढंग से बता पाते हैं इसीलिए वे अपराधियों के लिए आसान लक्ष्य होते हैं।
शोषण करने वाला व्यक्ति बच्चे को बहुत अधिक वरीयता देता है, उसे उपहार व खाने-पीने की सामग्री देता है और घूमाने ले जाता है। बच्चे के साथ अकेले होने का मौका तलाशता है। यदि कोई गैर व्यक्ति बच्चे के प्रति विशेष लगाव या व्यवहार प्रदर्शित करता है तो ऐसी स्थिति में माता-पिता को उस पर सतर्क नजर रखने की जरूरत होती है। अध्ययन में पाया गया है कि यौन शोषण का शिकार बच्चा अचानक से किसी व्यक्ति विशेष को नापसंद करने लगता है, उस व्यक्ति के आने से अचानक से डर जाता है या उस व्यक्ति के साथ अकेले होने से बचता है।

*यौन शोषण के शिकार बच्चों के लक्षण:-*
# नींद की समस्या 
# डरावने सपने देखना 
# शरीर में कंपकपी
# अपने उम्र के अनुपयुक्त यौन व्यवहार करना या यौन संबंधी सूचना इकट्ठा करना
# चक्कर आना
# दिल का तेज धड़कना 
# ध्यान की समस्या 
# सीखने में कठिनाई
# असहाय महसूस करना 
# ऊर्जा की कमी महसूस करना 
# स्कूल के निष्पादन में गिरावट
# शरीर पर असामान्य निशान 
# यौन अंगों पर चोट के निशान होने पर अलग-अलग समय पर उसका कारण अलग-अलग बताना 
# बच्चा अपने शरीर को दिखाने से बचने का प्रयास करता हो जैसे कपड़े पहन कर स्नान करने की जिद करता है।

*यौन शोषण का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:-* 
# तनाव 
# चिड़चिड़ापन
# निम्न आत्मविश्वास 
# खानपान में गड़बड़ी 
# क्रोधपूर्ण व्यवहार
# मनोबाध्यता विकार
# समायोजन की समस्या 
# खुद के बारे में बुरा महसूस करना
# भयभीत रहना 
# चिंता ग्रस्त रहना

*बच्चों के यौन शोषण से बचाव के उपाय:-*
# बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में समझाएं।
# बच्चों से खुलकर बातें करें ताकि वे अपनी बात साझा कर सकें।
# किसी अजनबी पर अधिक विश्वास न करें यदि घर में नौकर या अन्य अजनबी हो तो आकस्मिक ढंग से बीच-बीच में उन पर नजर बनाए रखें। # बच्चे के व्यवहार में किसी प्रकार का बदलाव आने पर उसके कारणों को जानने का प्रयास करें ।
# बच्चे के शरीर पर असामान्य निशान को गंभीरता से लें।
# बच्चे में आत्मविश्वास के विकास का प्रयास करें ।
# बच्चे को यह विश्वास दिलायें कि किसी भी परिस्थिति में आप उनके साथ हैं।
# बच्चों के प्रति होने वाले शोषण के प्रति स्वयं भी जागरूक रहे तथा अन्य लोगों को भी जागरूक करने का प्रयास करें।

2012 में भारत में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों के नियंत्रण हेतु पाँस्को (लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम) लागू किया गया जिसमें त्वरित सुनवाई व विशेष अदालतों के साथ-साथ कडे़ सजा का प्रावधान किया गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार, 372 वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं की बिक्री, 373 वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं को खरीदना तथा 377 अप्राकृतिक कृत्य के लिए सख्त कानून का प्रावधान किया गया है ताकि यौन शोषण पर लगाम लगाया जा सके।

बच्चों का मन कोरे कागज के समान होता है उस पर लगने वाला धब्बा लंबे समय तक अपना प्रभाव बनाए रखता है कुछ बच्चों को तो यौन शोषण के सदमें से उबरने में पूरा जीवन लग जाता है। यौन शोषण से पीड़ित बच्चों के प्रति संवेदनशीलता के साथ व्यवहार करना चाहिए तथा उन्हें मानसिक एवं साम्वेगिक सहयोग एवं समर्थन प्रदान करने से बच्चे सदमे से बाहर निकलने में सक्षम होते हैं। ऐसे बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत करने तथा समायोजन की क्षमता विकसित करने में प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की अहम भूमिका होती है संभव हो तो उनसे परामर्श अवश्य लेना चाहिए।

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