जीवन का  जयमाल  तुझे फिर ढूंढ  रहा ,
चलता है  अविराम  तुझे  फिर  ढूंढ  रहा ,
ढूंढ-ढूंढ  कर  हार  गया  यह  खुद से ही , 
पागल बन मन-प्राण  तुझे फिर  ढूंढ रहा  !

प्रियंका द्विवेदी .
मंझनपुर कौशांबी


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