हिन्दीसंवाद के लिए असगर अली की रिपोर्ट
उतरौला(बलरामपुर)
उत्तर प्रदेश के उतरौला विधानसभा क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी आज तक अपना खाता तक नहीं खोल पाई। वर्ष 2012 में पहली बार इस विधानसभा में बसपा दूसरे स्थान तक पहुंच पाई।
विधानसभा चुनाव की गर्मी कड़ाके की ठंड पर भारी पड़ रही है। जगह जगह बयानवीरों के चर्चाओं से राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ी हुई है। सभी पार्टियों के समर्थक अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।
कुछ राजनीतिक चाणक्यों का मानना है कि उतरौला विधानसभा में भाजपा और सपा के बीच टक्कर देखने को मिलेगी। यह बात तब खास हो जाती है जब हम फ्लैशबैक में उतरौला विधानसभा सीट की कहानी के किस्से सुनते हैं। जहां बहुजन समाज पार्टी( बसपा) आज तक अपना खाता ही नहीं खोल पाई है। 1857 में तहसील का दर्जा प्राप्त होने के बावजूद भी यहां आज भी विकास की गंगा नहीं बह पाई है। लोगों के पास मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
साल 1952 के पहले चुनाव में जहां कांग्रेस के शाहिद फकीरी विजयी रहे तो वहीं 1957 में अली जर्रार ज़ाफरी जीते। 1962 में सूरजलाल गुप्ता ने जनसंघ से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। साल 1967 में कांग्रेस के रफी महमूद खां विजयी रहे तो साल 1969 में फिर से जनसंघ के सूरज लाल गुप्ता जीते। साल 1974 और 1977 में जनसंघ से राजेंद्र प्रसाद चौधरी जीते तो साल 1980 के चुनाव में जनता पार्टी के मसरूर जाफरी उर्फ सबरोज ने जीत दर्ज की।
साल 1985 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के फजलुलबारी उर्फ बन्ने जीते। 1989 और 1991 के विधानसभा चुनाव में एक बार निर्दलीय और एक बार जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे समीउल्लाह ने जीत दर्ज की। साल 1993 में बीजेपी के विश्वनाथ गुप्ता, साल 1996 में सपा के टिकट पर उतरे उबैदुर्रहमान जीते। सपा के टिकट पर साल 2002 में अनवर महमूद, 2007 में बीजेपी के श्याम लाल वर्मा , 2012 में सपा के आरिफ अनवर हाशमी जीते।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के राम प्रताप वर्मा अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के आरिफ अनवर हाशमी से लगभग उनतीस हज़ार वोटों से जीते। बीजेपी के राम प्रताप वर्मा को 85240 वोट मिले थे। आरिफ अनवर हाशमी को 56066 वोट मिले थे। बहुजन समाज पार्टी से परवेज उमर कुल 44799 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
उतरौला विधानसभा सीट पर चार लाख से ज्यादा वोटर हैं। यहां करीब डेढ़ दर्जन थर्ड जेंडर वोटर्स भी हैं। अनुमान के मुताबिक इस सीट पर सबसे ज्यादा तादाद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटर्स की है। मुस्लिम समुदाय के मतदाता भी यहां प्रभावशाली भूमिका निभाने की स्थिति में हैं। यहां सामान्य और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की भी अच्छी तादाद है।
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