🔴 *वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया ने पत्रकारों की 30 सूत्रीय मांगों को लेकर केंद्र सरकार को ज्ञापन सौंपा*
🌐 *वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया ने ज्ञापन में प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया, व ब्रॉडकास्टर्स की मांगों को उठाया*
🟡 *वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया ने पत्रकारों की सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा उपलब्ध करवाने की केंद्र सरकार से मांग की*
🟢 *वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया ने 30 मार्च को दिल्ली के जंतर मंतर पर महाप्रदर्शन करने की घोषणा की*
🔵 *वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया ने देशभर के पत्रकारों से 30 मार्च को " चलो दिल्ली" का आहवान किया*
प्रेस विज्ञप्ति
नई दिल्ली, 12फरवरी/ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया, सम्बद्ध भारतीय मजदूर संघ, की तरफ से आज, पत्रकारो की मांगों को लेकर केंद्र सरकार को ज्ञापन सौंपा गया है । यूनियन ने पत्रकारों की मांगों को लेकर 30 मार्च को दिल्ली के जंतर मंतर पर महाप्रदर्शन करने की भी घोषणा की गयी है। यूनियन की तरफ से देशभर के पत्रकारों से , " चलो दिल्ली " का आह्वान भी किया गया है।
वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया की तरफ प्रधानमंत्री कार्यालय, व केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री व केंद्रीय श्रम राज्यमंत्री को मीडियाकर्मियों की 30 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन भेजा गया है । ज्ञापन में मुख्यता पत्रकारो की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा व आर्थिक सुरक्षा से जुड़ी मांगे की गयी है। ये ज्ञापन सौंपने से पहले , आज हुई मीटिंग में राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र भंडारी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संजय उपाध्याय,दिल्ली प्रदेश से महासचिव देवेंद्र सिंह तोमर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुदीप सिंह, उपाध्यक्ष सुधीर सलूजा, कोषाध्यक्ष नरेंद्र धवन, सलाहकार देवेंद्र पवार, लक्षमण इन्दोरिया, प्रितपाल सिंह, अशोक सक्सेना, संजीव चौहान, विजय वर्मा,जगजीत सिंह, मेहुल पंवार, मौजूद थे,। इस अवसर पर यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री संजय कुमार उपाध्याय ,दिल्ली यूनिट के महासचिव श्री देवेंद्र सिंह तोमर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सरदार सुदीप सिंह ने फ्रीलांसर्स पत्रकारों व फ्रीलांसर्स फ़ोटो व वीडियो जर्नलिस्ट्स के प्रोफेशन में लगातार आ रही दिक्कतों पर चिंता जतायी है। उन्होंने कहा कि अब ज्यादातर मीडिया घराने फ्रीलांसर्स फ़ोटो व वीडियो जर्नलिस्ट्स से कार्य ले रहे है और उनके कार्य के भुगतान में अपनी मनमर्जी से काफी कम राशि देते है। उन्होंने सरकार से फ्रीलांसर्स पत्रकारों व फ़ोटो वीडियो जर्नलिस्ट्स के लिये कोई नीति तैयार करने की मांग की है।
यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव श्री नरेन्द्र भंडारी ने सूचना व प्रसारण मंत्रालय के अधीन PIB की पत्रकारों को मान्यता देने की नई गाइडलाइन्स को वापस लेने व नई सेंट्रल प्रेस accredation कमेटी को तत्काल भंग करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को मान्यता देने की नई गाइडलाइन्स से सिर्फ बड़े मीडिया घरानों के पत्रकारों को ही मान्यता मिलेगी। इसी तरह से डिजिटल मीडिया के पत्रकारों को मान्यता देने की जो गाइडलाइन्स बनी है, वे तो काफी हैरान करने व चिंता में डालने वाली है। उन्होंने कहा कि सरकार बताये की क्या वह विदेशी मीडिया व बड़े मीडिया घरानों से जुड़े पत्रकारों को ही पत्रकार मानती है? यूनियन ने मंत्रालय की इस गाइडलाइन्स को तत्काल वापिस लेने व नई गठित सेंट्रल प्रेस accredation कमेटी को भी भंग करके नई कमेटी का गठन करने की मांग की है।
। इस अवसर पर 30 मार्च के महाप्रदर्शन की तैयारियों का जायजा भी लिया गया है। केंद्र सरकार जो ज्ञापन भेजा गया है , वह उस तरह से है --- *पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाए* -वर्किंग जर्नलिस्टस आफ इंडिया सम्बद्ध भारतीय मजदूर संघ देश में पत्रकारों का शीर्ष संगठन है। हमारा संगठन पत्रकारों कल्याणार्थ समय समय पर रचनात्मक और प्ररेणादायक क आंदोलन चलाता रहा है।यूनियन ने पत्रकार मांगों को लेकर पहले 16 जनवरी 2019 को दिल् के जंतर मंतर पर म वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया ने , पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की मांग को लेकर एक लंबी लड़ाई लड़ी है। यूनियन ने इस मांग को लेकर कई बार सड़को पर प्रदर्शन किए व केन्द्रीय ग्रह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय जी को ज्ञापन भी दिया। पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश सरकारों को पत्र भी लिखे। हाल ही में देश में पत्रकारों की हत्याएं एवम अन्य अपराधिक घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई है। बलिया में रतन सिंह हत्याकांड, गाजियाबाद में विक्रम जोशी हत्याकांड, मध्यप्रदेश में सुनील तिवारी हत्याकांड, उत्तरप्रदेश में शुभम मणि त्रिपाठी हत्याकांड, दंतेवाड़ा में अचुत्यानंद साहू हत्याकांड, कश्मीर में शुजात बुखारी हत्याकांड इत्यादि कई घटनाएं हाल के दिनों में घटित हुईं हैं। इस तरह की घटनाओं को लेकर यूनियन ने देशभर के पत्रकारों के बीच एक ऑनलाइन सर्वे भी करवाया। पत्रकारों ने इस सर्वे में भाग लिया और खुलकर अपनी राय जाहिर की है। सर्वे में ज्यादातर पत्रकारों की राय रही कि केंद्र सरकार देश मे पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करे व संविधान में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ घोषित करे। यूनियन का मानना है कि देश मे कलम की आज़ादी होनी चाहिये। यदि कोई भी उस आज़ादी पर हमला करता है, तो सरकार को उसके खिलाफ कड़े कदम उठाने चाहिये । हमारे देश मे सबसे पहले एक राज्य महाराष्ट्र ने वर्ष 2017 में, " पत्रकार एवं पत्रकारिता संस्थान अधिनियम 2017" पारित किया। इस तरह से इस राज्य ने सबसे पहले पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक बिल पारित किया। इसके बाद छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश राज्य में भी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक बिल पारित करने का फैसला विचाराधीन है। यूनियन का ये मानना है कि इस मामले में केंद्र सरकार को कोई अहम फैसला लेकर संसद में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक बिल पारित करना चाहिये और पत्रकारों को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए। कोरोना काल मे पत्रकारों के खिलाफ कई फर्जी मुकदमे दायर किये गए हैं। अगर कोई पत्रकार, राज्य सरकार की किसी भी कमी को खबर के जरिये उजागर करता है, तो उसके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कर दिए जाते हैं, यूनियन ने यह भी मांग की कि मीडिया को संविधान में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दर्जा दिया जाए। देश मे लोकतंत्र को मजबूत रखना है, तो सबसे पहले मीडिया को मजबूत करना होगा। यूनियन आपसे जल्द से जल्द, पत्रकार सुरक्षा कानून , संसद में पारित करने की मांग करती है।
. *ऑनलाइन/डिजिटल मीडिया की प्रस्तावित सरल नीति लागू करने की मांग*-मान्यवर देश में आनलाईन मीडिया का वर्चस्व बढ़ रहा है। ये एक बेहतरी का संकेत है। हमारी यूनियन ने डिजिटल मीडिया को लेकर एक लंबी लड़ाई लड़ी है। जिसके बाद केंद्र सरकार ने ऑनलाइन मीडिया के पत्रकारों को श्रमजीवी पत्रकार माना व इसकी एक अधिसूचना भी जारी की है। इसके लिये यूनियन की तरफ से आपका आभार। मान्यवर,केंद्र सरकार भी लगातार डिजिटल इंडिया की बात करती है, और अब तो चुनाव आयोग के निर्देशानुसार देश के 5 राज्यों में चुनाव प्रचार ज्यादातर डिजिटल हुआ है। हमने देशभर के मीडियाकर्मियों से ऑनलाइन मीडिया के बारे में एक सर्वे के जरिए उनकी राय जानी है। जिसमें सौ फीसदी मीडियाकर्मियों ने माना कि केन्द्र सरकार इसके लिए एक ऐसी मीडिया नीति बनाए जिसमें पत्रकारों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं, जैसे सरकारी विज्ञापन, उनका एक्रीडेशन आदि मिल सके। मान्यवर यूपीए सरकार के समय में डी.ए.वी.पी. ने 2011 की शुरूआत में एक पायलट प्रोजक्ट केवल तीन माह की अवधी के लिए बनाया था, बिना किसी कारण के इसे लंबे समय तक के लिए केवल हर तीन माह पर एक सरकारी नोटिफिकेशन से बढ़ाया जाता रहा है। जोकि गलत था तेरह बार बढ़ाए जाने के बाद केन्द्र सरकार ने जो विज्ञापन नीति बनाई वह एक तरफा है। मान्यवर, केंद्र सरकार जो ऑनलाइन मीडिया को लेकर नयी नीति बना रही है, उसमें इसका ध्यान रखा जाए। वेबसाईटों का संचालन कोई संस्था/ कंपनी ही करे का बनाया जा रहा नियम गलत है। क्योंकि ये मीडिया नया है। इससे स्टार्टअप्स और मीडियाकर्मियों के लिए स्कोप खत्म हो जाएगा। विजिटर्स डाटा के लिए प्राइवेट एजेंसी कॉम्सकोर और गूगल को मान्यता देना भी गलत है। क्योंकि कॉन्सकोर और गूगल व्यवसायिक विदेशी कंपनियां हैं, सरकार के इस फैसले से उन पर भारतीय पब्लिशरों की निर्भरता बढ़ेगी। फिर वे इस तरह की सेवाओं का पैसा भी ले रहे हैं। अखबार की तरह एक स्तर के संचालकों को सीए सर्टिफाइड डाटा को स्वीकारा जाए।वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया का मानना है कि समाचारों/ विचारों वाली सभी वेबसाईटों को एक उचित समयावधि के बाद पंजीकृत किया जाना चाहिए। भारतीय पब्लिशरो / भारतीय भाषा की वेबसाईटों को विशेष अहमियत दी जानी चाहिए। वेबसाईटों का वर्गीकरण हो और विज्ञापन बजट में धन का समान रूप से सभी वर्गों में वितरण हो। वेबसाईटों पब्लिशरों के स्व-प्रमाणित विजिटर डाटा को स्वीकारा जाए। स्टार्टअप /मीडियाकर्मी/ महिलाओं द्वारा संचालित साइटों के लिए भी कोई कैटगरी बनाई जाए। फिक्स प्लेस के लिए फिक्स रेट की नीति को अपनाया जाए। सरकार जिला स्तर व गावों से ऑपरेट हो रही ,भारतीय वेबसाईटों को बढ़ावा देने की नीति बनाए। इस माध्यम में काम कर रहे मीडियाकर्मियों को भी मान्यता दी जाए। शुरुआत में विजिटर्स की न्यूनतम गिनती में ढील दी जाए और इनकी गणना सरकार अपनी एजेंसी/ पब्लिशर्स के स्वप्रमाणितडाटा के आधार पर करे। मीडिया में एकाधिकार की पश्चिमी संस्कृति को हतोत्साहित किया जाए और सभी को प्रगति और जीवन यापन के समान सुअवसर मुहैया कराये जाएं।वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया संबद्ध भारतीय मजदूर संघ का मानना है कि ऑनलाईन मीडिया के लिए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से जो भी नीति बनाने को लेकर कमेटी बनाई जाए , उसमें वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया का प्रतिनिधि भी शामिल किया। जाए।.मीडिया आयोग का गठन*- देश 75वा अमृत महोत्सव मना रहा है। जिसकी खुशी में हम पत्रकार भी शामिल हैं । फिर भी हमे सोचना होगा कि देश की आज़ादी के बाद देश का मीडिया व मीडियाकर्मी कहा पर खड़े हैं। देश की आज़ादी के बाद अब तक सिर्फ 2 मीडिया आयोग बने हैं। दोनों आयोग जिस समय बने उस समय प्रिंट मीडिया का वर्चस्व था। मौजूदा में ऑनलाइन/डिजिटल मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का वर्चस्व है। देश मे केंद्र सरकार को एक तीसरे आयोग का गठन करना चाहिये, जो मीडिया के नए स्वरूप पर खुलकर विचार करे व नए मीडिया को लेकर अहम फैसले ले। इस सबके लिये केंद्र सरकार को समयबद्ध एक तीसरे मीडिया आयोग का गठन करना चाहिये।
*मीडिया कॉउन्सिल की स्थापना की जाए*- देश मे जिस समय सिर्फ प्रिंट मीडिया था, उस समय मीडियाकर्मियों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर , प्रेस कॉउन्सिल ऑफ इंडिया की स्थापना की गयी थी। प्रेस कॉउन्सिल की स्थापना के बाद आल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन, टीवी चैनल्स व अब डिजिटल मीडिया वर्चस्व में आया है। इस नए मीडिया से जुड़े पत्रकारों से जुड़ा कोई मामला होता है, तो वह प्रेस कॉउन्सिल के अधिकार क्षेत्र में नही आता है, इसलिये इस नए मीडिया से जुड़े पत्रकारों के लिये कोई भी आधिकारिक फैसले प्रेस कॉउन्सिल नही ले पाता है । यूनियन का मानना है कि प्रेस काउंसिल के स्थान पर मीडिया कॉउन्सिल की स्थापना की जाए। ये कॉउन्सिल केंद्र से लेकर राज्य व जिला स्तर तक बनाया जाए व उन्हें ज्यादा से ज्यादा अधिकार दिए जाएं। *देशभर के पत्रकारों का " नेशनल जर्नलिस्ट्स रजिस्टर " बनवाने की मांग* -- केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, वे सिर्फ उन्हें ही पत्रकार मानती हैं, जो उनके यहां के सूचना विभाग में सूचीबद्ध (मान्यताप्राप्त) होता है। ये संख्या देश के कुल पत्रकारों की संख्या का सिर्फ 15 फीसद है। बाकी बचे 85 फीसद पत्रकार सरकारी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। बेहतर होगा कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को निर्देश देकर , पत्रकारों का डाटा बेस लेकर, एक नेशनल जर्नलिस्ट्स रजिस्टर (NJR ) तैयार करवाये , जिससे सभी वर्ग के पत्रकारों को सरकारी सुविधायें हासिल हो सकें ।
. *केंद्र सरकार से पत्रकारों को कोरोना योद्धा(फ्रंटलाइन वारियर) घोषित करवाने व सभी पत्रकारों को निशुल्क बूस्टर कोरोना वैक्सीन लगवाने की मांग* - देश मे जब कोरोना महामारी आयी व लॉकडाउन लगा , तो पत्रकार इस महामारी की परवाह किये बिना, अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने सड़को पर रिपोर्टिंग करने के लिये उतर गए। देश के प्रधानमंत्री व कई राजनेताओं ने उस समय मीडियाकर्मियों की काफी तारीफ की। लेकिन जब केंद्र सरकार ने कोरोना योद्धाओं की सूची जारी की, तो उसमें कहीं भी मीडियाकर्मियों का नाम नहीं था। केंद्र सरकार ने घोषणा की कि कोरोना महामारी से किसी भी कोरोना योद्धा का देहांत होगा, तो उसके परिवार को 50 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाएगी। उधर देशभर में ढेरों पत्रकार कोरोना महामारी से ग्रसित हुए व कई शहीद हुए। कुछ राज्य सरकारों ने उन पत्रकारों के परिवार वालो को 10 लाख से लेकर 20 लाख रुपये की सहायता राशि दी । बाद में केंद्र सरकार ने उन परिवारों को 5-5 लाख रुपये की सहायता राशि दी। इसी तरह से कोरोना वैक्सीन आयी तो हमे उम्मीद थी कि ये वैक्सीन पहले चरण में ही पत्रकारों को लगायी जाएगी। पर ऐसा नही हुआ। यूनियन की मांग है कि मीडियाकर्मियों को कोरोना योद्धा घोषित किया जाए व उन्हें निशुल्क कोरोना से बचाव की बूस्टर वैक्सीन लगायी जाए ।
.*पत्रकारों के लिये फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट्स का गठन किया जाए*- यूनियन की मांग है कि ये कानून केंद्र सरकार बनाये, व पत्रकरो से जुड़ा कोई भी मामला होता है, तो उसकी जांच कोई राजपत्रित अधिकारी करें व मामले की सुनवाई फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में हो । किसी डॉक्टर के खिलाफ कोई मामला होता है तो वह पहले मेडिकल काउंसिल के पास जाता है। किसी वकील के पास कोई मामला होता है तो वह पहले बार कॉउन्सिल के पास जाता है। उनकी अनुशंसा के आधार पर ही मामला दर्ज किया जाता है। यूनियन की मांग है कि किसी भी पत्रकार के खिलाफ कोई मामला होता है तो पहले उसे जिला स्तर पर मीडिया कॉउन्सिल के पास भेजा जाए और उसकी अनुशंसा के आधार पर ही आगे की कार्यवाही की जाए. *पत्रकारों को मासिक पेंशन सुविधा*- देश मे कई पत्रकारों को मासिक पेंशन मिलती है। जो प्रिंट मीडिया से जुड़े पत्रकार हैं और जिनकी तनख्वाह से हर माह पेंशन राशि कटती है, उन्हें रिटायरमेंट के बाद केंद्र सरकार का भविष्य निधि विभाग हर माह 1500 से लेकर 2500 रुपये की पेंशन देता है। इसी तरह से कई राज्य सरकारें उन पत्रकारों को 8000 रुपये से लेकर 15,000 रुपये की मासिक पेंशन देती है, जो 15 वर्ष तक रिपोर्टिंग कार्यो से जुड़े होते है । यूनियन का मानना है कि पेंशन देने की विधि काफी सरल होनी चाहिये। इस बारे में हिमाचल हाइकोर्ट भी आदेश जारी कर चुका है। यूनियन का मानना है कि कोई भी पत्रकार जो 10 साल तक मीडिया से जुड़ा है, चाहे वो प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, ऑनलाइन मीडिया या ब्रॉडकास्टर रहा है, उसे प्रत्येक माह न्यूनतम 20 हज़ार रुपये की मासिक पेंशन मिलनी चाहिये। इस सिलसिले में यूनियन कई पत्र देश के प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रियों व मुख्यमंत्रियो को लिख चुकी है।
*पत्रकारों को इन्शुरन्स कवर* - मीडियाकर्मियों का जीवन लगातार खतरों से घिरा रहता है। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए कई बार वे विभिन्न दुर्घटनाओं का व मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। जिसके बाद कोई भी पीड़ित परिवार का पूछने वाला नही होता है। कई राज्य सरकारें इंश्योरेन्स कवर पत्रकारों को देती हैं। लेकिन केंद्र सरकार , दिल्ली सरकार व कई राज्य सरकारों ने ये सुविधा पत्रकारों को नही दी है। यूनियन की मांग है कि केंद्र व सभी राज्य सरकारों को बेहतर से बेहतर इंश्योरेन्स कवर पत्रकारों को देना चाहिये।
*पत्रकारों व उनके परिवार के सदस्यों को हेल्थ सुविधा देने की मांग* - केंद्र सरकार अपने मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सीजीएचएस की सुविधा देता है। कई राज्य सरकारें पत्रकारों से कुछ सालाना राशि लेकर , उन्हें हेल्थ की सुविधा देता है। यूनियन की मांग है कि देश मे जितने भी गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार है ,उन्हें केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना से जोड़ा जाए और जितने भी मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं, उनसे हेल्थकेयर राशि लेने के बजाए, उन्हें व उनके परिवार को वे सभी स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाए, जो लोकतंत्र के तीन अन्य स्तम्भो को दी जा रही है।
*मीडियाकर्मियों को केंद्रीय राशनिंग सिस्टम से जोड़ने की मांग* - केंद्र सरकार ने राशनिंग सिस्टम को केंद्रीयकृत किया है। सच्चाई ये है कि देशभर के ज्यादातर पत्रकारों के राशन कार्ड्स नही बने हैं। यूनियन की मांग है कि देशभर के पत्रकारों के राशन कार्ड्स बनाये जाए व उन्हें केंद्रीय राशनिंग सिस्टम से जोड़ा जाए।
.*मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को दिलवाया जाए*- केंद्र सरकार ने मीडियाकर्मियों के लिये मजीठिया वेज बोर्ड का गठन किया था। वर्ष 2010 को अधिसूचना जारी करके उन सिफारिशों को लागू करने का राज्य सरकारों को निर्देश दिया था। जबकि असलियत ये है कि ज्यादातर मीडिया संस्थानों ने पूर्ण रूप से उन सिफारिशों को लागू नही किया है। इस समय करीब 1700 वेज बोर्ड से जुड़े मुकदमे विभिन्न अदालतों में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2 बार आदेश जारी करके उन मुकदमो को 6 माह में ही निपटाने के आदेश निचली अदालतों को दिए हैं। लेकिन किसी भी अदालत के जरिये एक भी पत्रकार को वेज बोर्ड की राशि नही मिली है। इस मामले में केंद्रीय श्रम मंत्रालय उदासीन बना हुआ है। इस मंत्रालय को ऐसे कदम उठाने चाहिये, जिससे मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार राशि मिल सके ।
*प्रिंट मीडिया की खस्ता हालात* - आपको अवगत कराना है कि समाचार पत्र उद्योग को जबसे जीएसटी के दायरे में लाया गया है, तबसे समाचार पत्रों के प्रकाशन करने में काफी लागत बढ़ गई है । कारण साफ है कि अखबारी कागज पर जीएसटी लागू होने से अखबारों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है । जबकि पहले अखबारी कागज रियायती दरों पर सरकार उपलब्ध कराती थी । अखबार में प्रयुक्त होने वाले कागज की जीएसटी की दरों में विसंगतियों की वजह से छोटे अखबार वाले बहुत ज्यादा ही पीड़ित है । क्योंकि अखबारी कागज सीधे मिल से लेने पर जीएसटी की दर 5% है और वही अखबारी कागज बाजार से लेने पर जीएसटी की दर 12% है । अखबारों के प्रकाशन में आने वाली वस्तुओं के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई है । कागज की कीमतों में दोगुनी वृद्धि हुई है । एल्मुनियम प्लेट, इंक व केमिकल्स के मूल्यों में भी अनाप शनाप बढ़ोत्तरी होने से इस अखबारी उद्योग की कमर टूट गई है । साथ ही ट्रांसपोर्टेशन व कोरोना से बचाव के लिए सेनेटिराईजेसन पर काफी व्यय हो रहा है । ऐसी स्थिति में लोक संपर्क ब्यूरो (DAVP) की विज्ञापन दरों में अविलम्ब दोगुनी वृद्धि आवश्यक हो गई है । रेट स्ट्रक्चर कमेटी के नाम पर समय व्यतीत किया जा रहा है । सरकार के पास सारे आँकड़े मौजूद रहते हैं । मूल्य सूचकांक के आधार पर भी विज्ञापन दरों का निर्धारण हो सकता है । जिस प्रकार से सरकार मँहगाई भत्ता अपने अधिकारियों व कर्मचारियों को निर्धारित करती है उसी नीति व रीति से DAVP की विज्ञापन दरों को पुनर्निर्धारण किया जाना चाहिए । यूनियन का सुझाव है कि छोटे व मझौले अखबारों की दयनीय स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए 10 हजार की प्रसार संख्या तक रुपये 30 प्रति वर्ग सेमी. व 25 हजार की प्रसार संख्या तक रुपये 50 प्रति वर्ग सेमी. की विज्ञापन दर निर्धारित किया जाना उचित होगा । इससे प्रसार संख्या की जांच कराने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी ।
.*ब्रॉडकास्टर्स की मुख्य मांगे* -ऑल इंडिया रेड़ियो कैज़ुअल अनाउंसर्स एंड कम्पीयरर्स यूनियन की मुख्य मांग है कि प्रसारभारती ने 22-8-2019 को उच्चतम न्यायालय के उमादेवी केस (11-11-2006) के आधार पर जो रेगुलराइजेशन के लिये ऑनलाइन स्कीम निकालकर आकाशवाणी कैज़ुअल्स के जो आवेदन मांगे थे; जिस पर माननीय सूचना व प्रसारण मंत्री जी का संसद में आधिकारिक बयान भी आ चुका है, उस पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई की जाए और 10-4-2006 तक लगातार 10 वर्ष पूरे करने वाले आकाशवाणी अनाउंसर्स को बिना किसी अन्य शर्त के रेगुलर किया जाए !दूसरी मुख्य मांग ये कि इस ऑनलाइन रेगुलराइजेशन स्कीम की कटऑफ डेट जो कि 10-4-2006 है, से बढ़ाकर 22-8-2019 की जाए,क्योंकि पॉलिसी इसी डेट को लॉन्च की गई है !आकाशवाणी व दूरदर्शन में कैज़ुअल उद्घोषक/ब्रॉडकास्टर के रूप में 10 वर्ष काम करने वालों को केंद्र और राज्य सरकार जीवन भर के लिये एक्रेडिटेशन प्रदान करें।*
गत कई दिनों से केंद्रों के स्थानीय प्रसारण कम किये जा रहे हैं, जो सीधे तौर पर कैज़ुअल उद्घोषकों, आर जे और कंपेयर के हितों के विरुद्ध है। जब सभा कम होगी तो कैजुअल्स को ड्यूटी भी कम मिलेगी जो कि अन्याय है, अतः इस अन्याय को रोका जाए।
.*वेज बोर्ड नही देने वालो के खिलाफ कार्यवाही* -जिन अखबारों ने वेज कार्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया उन पर सरकारी विज्ञापन देने पर कोई अनुशासत्मक प्रतिबंध हो
*पत्रकारों के लिये हेल्पलाइन* - तहसील और जिला स्तर के संवाददाताओं एवं मीडिया व्यक्तियों के लिए 24 घंटे की हेल्पलाईन सेवायें उपलब्ध कराई जायें। • *मुआवजा नीति बनायी जाए* -ड्यूटी के दौरान अथवा किसी मिशन पर काम करते हुये पत्रकार एवं मीडियाकर्मी की मृत्यु होने पर उसके परिजन को 50 लाख का मुआवजा और परिजनों को नौकरी दी जाये।• *मीडिया में ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगे* -पत्रकारिता नौकरियों में अनुबंध प्रणाली का उन्मूलन किया जाये। • *सरकारी कार्यक्रमों को कवर करने पर कोई पाबंदी न लगायी जाए*-- कैमरामेन समेत सभी पत्रकारों को सरकारी कार्यक्रमों को कवर करने के लिए कोई पांबदी नहीं होनी चाहिए। • *पुलिस पत्रकार समितियां* -बेहतर पारस्परिक सहयोग के लिए जिला स्तर पुलिस-पत्रकार समितियां गठित की जाएं। • *मीडिया वाहनों को टोल फ्री किया जाए* -मीडिया व्यक्त्तियों को देश भर में उनकी संस्थान के पहचान पत्र के आधार पर सड़क टोल पर भुगतान करने से मुक्त किया जाये। • *रेल किराये में छूट बहाल की जाए* -पत्रकारों को फिर से रेल किराये में रियायत प्रदान की जाये।• *पत्रकारो को मान्यता की सरल नीति* - केन्द्रीय और राज्य सरकारें पीआईबी/डीआईपी/ राज्य सरकारें पत्रकारों को मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया को एकरूपता व सरल बनायें।
*मीडिया में विदेशी विनिवेश पर रोक* -विदेशी मीडिया के लिए भारतीय मीडिया संस्थानों में विनिवेश की अनुमति ना दी जाये। *महिला पत्रकारो के लिये होस्टल* *महिला पत्रकारों के लिए होस्टल बनाये जायें।*पत्रकारो को सस्ती दरों पर आवास* -पत्रकारों को आवास/दफतर के लिए सस्ती दरों पर भूखंड आबंटित किये जायें। *पीआईबी में पत्रकारो की मान्यता शुरू की जाए* -पीआईबी ने कई वर्षों से पत्रकारो की नई प्रत्यपन प्रक्रिया को रोका हुआ है। यूनियन की मांग है कि सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा नए सिरे से सेंट्रल प्रेस एक्रीडेशन समिति का गठन किया जाए, जिसमे प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, ब्रॉडकास्टर्स व विभिन्न मीडियाकर्मियों की यूनियन के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए
।. *ई- पेपर को मान्यता दी जाए*- केंद्र सरकार डिजिटल भारत की बात करती है। ये तभी संभव है, जब सभी क्षेत्रों में डिजिटल को बढ़ावा दिया जाए। देश मे कोरोना महामारी के दौरान आम लोगो ने समाचार पत्रों को पढ़ना काफी कम कर दिया। ज्यादातर समाचार पत्र जो प्रतिदिन 50 पेज के छपते थे वे सिमटकर 12 से 16 पेज पर आ गए। ज्यादातर समाचार पत्र विदेशों से आने वाले कागज पर छपते है, स्याही भी विदेशों से आती है, जो कोरोना काल में आनी बंद हो गयी। जिनके पास इन दोनों का स्टॉक था, उन्होंने अपने प्रकाशन के पेज संख्या घटाकर समाचार पत्र प्रकाशित करते रहे। अन्य पब्लिकसे ने ई-पेपर निकालने शुरू कर दिए और अपने रीडर्स तक मोबाइल या कंप्यूटर के जरिये उसे भेजना शुरू कर दिया। उसकी देखा देखी ज्यादातर पब्लिकसे ने भी अपने संस्करण डिजिटल भी निकालने शुरू कर दिए। बाद में तो कई बड़े मीडिया घरानों ने तो उसे सब्सक्राइब भी करना शुरू कर दिया ओर पाठकों को भी वह भाने लगा। विदेशों में तो ई पेपर को तो पूरी मान्यता है। यूनियन का मानना है कि हमारे देश मे भी उसे मान्यता देनी चाहिये और सरकार को उसे लेकर कोई पालिसी तैयार करनी चाहिये। *प्रसार भारती में पत्रकारों का शोषण*- प्रसार भारती केंद्र सरकार की ईकाई है। जिससे मीडिया से जुड़े कई विभाग है। इनमें से ज्यादातर में पत्रकारों व एचर्स को अनुबंध पर रखा जाता है। जड़ चाहे किसी भी पत्रकार व एंकर का अनुबंध समाप्त कर दिया जाता है। जिसके बाद पत्रकार सड़को पर आ जाता है। यूनियन की मांग है कि प्रसार भारती से जुड़े जो भी विभाग है, उनमें नौकरियों को स्थायी किया जाए। *मीडिया में एक देश-एक नीति,की मांग*- देश मे केंद्र सरकार की मीडिया को लेकर अलग नीतियां है व राज्यो की अलग अलग नीतियां है। यूनियन की मांग है कि एक देश-एक नीति होनी चाहिये। जिसका पालन सभी राज्य सरकारें करे। लेबर कोड्स में मीडिया व मीडियाकर्मियों को लेकर जो भी विसंगतियां है, उन्हें दूर किया जाए। मीडिया में पहले की तरह वेज बोर्ड होना चाहिये, जिसका प्रत्येक पांच साल बाद गठन होना चाहियें।
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