15 फरवरी का दिन मुंशी प्रेमचंद की अंग्रेजों की गुलामी के मुक्ति के दिवस के रूप में लमही में मनाया गया। 15 फरवरी 1921 को ही मुंशी प्रेमचंद ने गोरखपुर के गाजी मियां के मैदान में महात्मा गांधी के भाषण से प्रभावित होकर अंग्रेजों की नौकरी छोड़ दी थी। इसी दिन से उन्होंने स्वतंत्र रूप से प्रेमचंद के नाम से लिखना प्रारंभ किया।प्रेमचंद मार्गदर्शन केन्द्र ट्रस्ट की ओर से आयोजित समारोह में ट्रस्ट के निदेशक राजीव गोंड ने कहा कि मुंशीजी के इस निर्णय के बारे में उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने अपनी किताब प्रेमचंद घर में में खुलकर चर्चा की है। नौकरी छोड़ने के बाद प्रेमचंद ने गोरखपुर में ही स्थाई रूप से रहने का मन बना लिया था। उन्होंने महावीर प्रसाद पोद्दार की मदद से उर्दू व हिंदी अखबार निकालने की योजना बनाई लेकिन सफल नहीं हुई। शिवरानी देवी लिखती है प्रेमचंद उनके यहां करीब दो महीने रहे। उन्होंने पोद्दारजी के साथ साझे में करघे का काम शुरू किया। प्रेमचंद ने अपने एक पत्र में करघे के बारे में लिखा भी है-‘मैंने फिलहाल एक कपड़े का काम चालू किया है। जिसमें चरखे चल रहे हैं और कुछ चरखे वगैरह बनवाए भी जा रहे हैं। उससे मुझे माहवार कुछ न कुछ नफा जरूर होगा लेकिन इतना नहीं कि मैं उस पर तकिया (भरोसा) कर सकूं।
प्रेमचंद की कहानियों का सैकड़ों बार मंचन कर चुके प्रेरणा कला मंच के कलाकारों का इस अवसर पर संस्था की ओर से सम्मान भी किया गया। सम्मानित होने वालों में मुख्य रूप से गौरी शंकर, अजय पाल, रंजीत कुमार, गोविंदा कुमार, शशांक कुमार, प्रवीण कुमार, राजेश कुमार, दीपक पांडेय रहे।
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