काल, स्थिति और दिशा का ज्ञान कराने वाली प्राचीनतम विद्या है 'ज्योतिष'

कल्याण. ज्योतिष भारत की वह प्राचीनतम विद्या रही है जिसकी तरफ सम्पूर्ण विश्व प्रारंभ से ही आकर्षित होता रहा है.  यह विद्या भारत से अरब और फिर यूरोप की तरफ आगे बढ़ी और अंग्रेजी देशों को भी दशगुणोत्तर अंक पद्धति का ज्ञान दिया. दसवीं शताब्दी में अलबेरुनी द्वारा ‘सिंह हिन्द’ नाम से किया गया अनुवाद इस बात का प्रमाण है कि अरब के विद्वानों ने ज्योतिष का ज्ञान भारतवासियों से ही प्राप्त किया था.  एक शोध के अनुसार इसके पूर्व ही 771ई. में भारत की एक विद्वत्त मंडली बगदाद गई थी और उन्हीं में से एक विद्वान् द्वारा ब्रह्मगुप्त के ‘स्फुट सिद्धांत’ (वर्ष-६२८) का परिचय वहाँ  के लोगों से कराया. इसी के बाद ब्रह्मगुप्त के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘खांडखाद्यक’ का अनुवाद अरबी में ‘अलअर्कंद’ नाम से हुआ.  अरब देशों पर इसी ज्योतिष का प्रभाव रहा कि वहाँ हबश, अननैरीजा, मुहम्मद इब्न इसहाक अस सरहसी, अबुलवफा और अलहजीनी जैसे दर्जनों अरबी ज्योतिषियों के नाम आज भी लिए जाते हैं. हमारे ज्योतिषियों का ग्रहमंडल संबंधी ज्ञान, स्थितिशास्त्र (statics) और गतिशास्त्र (dynamics) संबंधी ज्ञान हमारी विश्वगुरुता के ही प्रमाण कहे जा सकते हैं. ऐसे विश्वज्ञान की मेरुदंड ज्योतिष हमारी लम्बी गुलामी के साथ पीछे होती गई और आज केवल वर्ग विशेष तक ही सीमित बन कर रह गई है. पिछले कुछ वर्षों से कुछ संस्थाओं और सरकारों द्वारा अवश्य इसके विकास की बातें कही जा रही हैं, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर जिस प्रयास की आवश्यकता है उसके लिए विशेष जागरूकता की आवश्यकता है. 
पिछले दिनों ज्योतिष शास्त्र की दशा, दिशा और संभावनाओं पर एक सामान्य पर विचार गोष्ठी कल्याण में हुई, जिसमें ज्योतिष शास्त्र को बढ़ावा देने और उसकी वैज्ञानिकता को समझते हुए पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने पर विचार करने की आवश्यकता महसूस की गई. प्रसिद्ध ज्योतिषविद एवं ज्योतिष सेवा केन्द्र के संस्थापक पंडित अतुल शास्त्री ने ज्योतिष विद्या के अनेक पक्षों को उद्धृत करते हुए इसे मानव के कल्याणकारी भविष्य के लिए आवश्यक बताया. नवभारत, मुंबई के ठाणे प्रभारी वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाण्डेय जी ने पत्रकारिता में ज्योतिष की सीमा केवल राशिफल तक ही सीमित रखने की धारणा को बदलते हुए इसे विस्तृत करने और इसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर जोर दिया. वरिष्ठ पत्रकार एच. पी. तिवारी द्वारा भारत की प्राचीनतम विद्या ज्योतिष को आधुनिक युग से जोड़ते हुए इसके प्रचार – प्रसार पर जोर देने की  बात कही. विष्णु तिवारी ने भी इस सम्बन्ध में अपने विचार रखे. इस विचार गोष्ठी में बिड़ला महाविद्यालय के हिन्दी विभाग से सम्बद्ध डॉ. श्यामसुंदर पाण्डेय को सम्मानित किया गया. ज्ञातव्य हो कि डॉ. पाण्डेय पिछले दो वर्षों से तोक्यो युनिवर्सिटी ऑफ़ फॉरेन स्टडीज़, तोक्यो, जापान में हिन्दी और भारतीय संस्कृति का अध्यापन कार्य कर रहे थे. यहाँ उपस्थित अतिथियों द्वारा अपनों के बीच से किसी व्यक्ति के ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य हेतु जापान जैसे विकसित देश में जाने पर खुशी व्यक्त की गई.

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने