*वैवाहिक मूल्यों में घटती निष्ठा*

*डॉ कामिनी वर्मा*
ज्ञानपुर , भदोही ( उत्तर प्रदेश )

भारतीय संस्कृति आध्यात्मिकता पर आश्रित है। मानव जीवन का वास्तविक सुख, शांति और समृद्धि आध्यात्मिकता में निहित है। यहां जीवन का प्रत्येक कार्य व्यापार धर्म से आच्छादित है। धर्म से मेरा आशय हिन्दू, मुस्लिम सिख, इसाई से न होकर मानव धर्म से है, जीवन के उन मूल्यों से है जो जीवन में धारण किये जाते है, आत्मसात किये जाते है। आत्मानुशासन का  आदर्श भारतीय संस्कृति को विश्व की अन्य संस्कृतियों में विलक्षण स्थान प्रदान करता है । संस्कार, पुरूषार्थ और आश्रम यहां जीवन को पग-पग पर नियोजित करते है। यह एक मनोनैतिक व्यवस्था के रूप में मानव-जीवन में समाहित होकर जीवन पथ को आलोकित करते हैं। भारतीय संस्कृति में व्यवहृत सोलह संस्कारों का विधान जीवन को पशुता से उठाकर देवत्व की ओर अग्रसर करने के लिये हुआ है। ये संस्कार आत्मसंयम और इन्द्रिय निग्रह का पाठ सिखाते है। 
भारतीय संस्कृति में विवाह एक संस्कार है। यहां यह समझौता न होकर सृष्टि चक्र को गति प्रदान करने वाला जीवन मूल्य है। विवाह का उद्देश्य काम वासना की पूर्ति न होकर जीवन की अपूर्णता को दूर करके एक दूसरे के व्यक्तित्व को निखारना और संवारना है। वैवाहिक सम्बन्ध में समष्टि हित में व्यष्टि तिरोहित हो जाता है। विवाह के पश्चात् वधू अपना सब कुछ त्यागकर शरीर, मन, आत्मापति को समर्पित करती है। अपना व्यक्तित्व ही पति में मिला देती है और उसकी खुशी में अपनी खुशी अनुभव करती है। पति भी उसे अपनाकर अपनी वृत्तियों, कामनाओं, इच्छाओं वासनाओं को नियन्त्रित और संयमित करता हुआ जीवन लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है और दोनो परस्पर एक दूसरे में अनुरक्त रहते हुये उन्नत राष्ट्र निर्माण के कार्यो में संलग्न रहते हैं। 

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