काशी विश्वनाथ मंदिर में नए साल का पहला दिन ऐतिहासिक बन गया। एक हजार से अधिक लोगों ने एक साथ शंखनाद कर बाबा विश्वनाथ से महामारी से मुक्ति की महाकामना की।काशी विश्वनाथ धाम यात्रा के अंतर्गत संस्कृति विभाग की ओर से इस अनूठे कार्यक्रम का आयोजन शनिवार को किया गया। शंखनाद के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सुबह 8:00 बजे से ही पंजीकृत सदस्यों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। विभिन्न स्कूलों कॉलेजों विश्वविद्यालयों संस्थाओं, संगीत विद्यालयों, सामाजिक संगठनों और आम नागरिकों छोटे-छोटे समूहों में विश्वनाथ चौक में खड़ा किया गया। उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल, ओडीशा ,मणिपुर और असम के लोगों ने भी पारंपरिक परिधान धारण कर बाबा विश्वनाथ के धाम में हुए इस ऐतिहासिक आयोजन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। शंकर आज के कार्यक्रम का उद्घाटन प्रदेश के संस्कृति पर्यटन एवं धर्मार्थ कार्य मंत्री नीलकंठ तिवारी ने किया।

शंखनाद का प्रकृति पर भी सकारात्मक प्रभाव

बीएचयू के आयुर्वेद संकाय के प्रो. अजय कुमार पांडेय बताते हैं कि शंखनाद का प्रकृति पर बहुत जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। शरीर के अंदर ही नहीं बल्कि आसपास का पूरा माहौल बदल जाता है। इस नाद से न केवल फेफड़ा मजबूत होता है बल्कि दैहिक विकास की सबसे छोटी इकाई कोशिकाओं तक इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरी सबसे खास बात यह है कि शंखनाद करने के दौरान व्यक्ति स्वयं में केंद्रित हो जाता है। अपना पराया भूलकर सब ईश्वर को सौंप देता है। शंख बजाने वाले और सुनने वाले दोनों का मन केंद्रित होता है। आंख बंद कर अच्छी चीजें सोचते हैं। यह शंखनाद भले ही 1001 लोगों का हो, मगर इसकी आवाज जहां तक जाई है वहां तक इसका एकसमान लाभ लोगों को मिलेगा।

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