विधानसभा चुनाव में सांसत में सांसद रितेश पाण्डेय
गिरजा शंकर विद्यार्थी ब्यूरों
अंबेडकरनगर: विधानसभा चुनाव में एक तरफ परिवार की इज्जत और राजनीतिक रसूख का सवाल है तो दूसरी ओर विरोधी दल से सांसद होने की जिम्मेदारी। ऐसे में किसका सम्मान करें और किसका परित्याग, यह तय कर पाना अंबेडकरनगर के सांसद रितेश पांडेय के लिए काफी मुश्किल हो रहा है। पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप के डर से न पापा के पक्ष में खुलकर प्रचार कर पा रहे हैं और न ही पद के मोह में पार्टी से इस्तीफा देते बन रहा है।अंबेडकरनगर लोकसभा सीट से पहली बार बसपा से सांसद बने रितेश पांडेय के पिता और पूर्व सांसद राकेश पांडेय ने हाल में हाथी छोड़ साइकिल की सवारी कर ली। जलालपुर विधानसभा क्षेत्र से सपा के टिकट पर उनका चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। इसी शर्त पर वह बसपा छोड़ सपा में शामिल भी हुए हैं, हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा होना अभी बाकी है। उद्योगपतियों में शुमार राकेश पांडेय पूरी ताकत के साथ घर-घर चुनाव प्रचार में लगे हैं, लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के चलते बाप-बेटे की राह अलग-अलग दिख रहीं हैं। मुश्किल से पखवाड़े भर पूर्व सपा में शामिल होने के बाद पहली बार यहां पहुंचे उनके स्वागत में कल तक उनके राजनीतिक विरोधी रहे लोग भी शामिल हुए, पर सांसद बेटे रितेश पांडेय दूर-दूर तक नजर नहीं आए।ऐसा नहीं कि एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले खेमे में होने को लेकर दोनों में कोई द्वंद है, बल्कि ऐसा राजनीतिक मजबूरियों के चलते हो रहा है। सांसद रितेश पांडेय की मुश्किल यह है कि यदि अपने पिता के पक्ष में सार्वजनिक तौर पर चुनाव प्रचार करते हैं तो उन पर पार्टी की निष्ठा से खिलवाड़ का आरोप लगेगा और पद से इस्तीफा देते हैं तो स्वत: सांसदी चली जाएगी। उधर, कई मंडलों के जोनल क्वार्डीनेटर घनश्याम चंद खरवार ने कहा कि यह सांसद को तय करना है कि चुनाव में वह अपनी कौन सी भूमिका अदा करते हैं। पार्टी का एक निश्चित दायरा है, सभी को उसके अंदर रहकर ही काम करना होगा।
पिता का विरोध और चचेरे भाई का करना पड़ सकता है प्रचार: राजनीतिक परिस्थितियां इस कदर उलझी हैं कि पार्टी के निर्देश पर सांसद रितेश पांडेय को जहां अपने पिता का सियासी विरोध करना पड़ सकता है, वहीं चचेरे भाई के पक्ष में प्रचार भी करना होगा। इनके सगे चाचा और पूर्व विधायक पवन कुमार पांडेय के पुत्र अर्पित पांडेय कटेहरी विधानसभा सीट से बसपा से मैदान में हैं और वह पूरी मजबूती से डटे हुए हैं। ऐसे में पार्टी अपने सांसद को वहां प्रचार में जरूर उतारेगी।पार्टी का जो भी निर्देश होगा, उसे पूरी तरह अमल में लाया जाएगा। पिताजी दूसरी पार्टी में हैं, चुनाव में इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। राजनीतिक और पारिवारिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन किया जाएगा।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know