उतरौला (बलरामपुर) कुछ दशक पहले तक क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति में खासा इजाफा रखने वाली गन्ने की पैदावार अब यहां नाम मात्र को रह गई है।हालत यह है कि इक्के दुक्के किसान गन्ने की फसल बोकर सिर्फ अपने अतीत की पहचान को बरकरार बनाए हुए हैं।
सन् 1980 के दशक में यहां क्षेत्र में गन्ने की पैदावार इस कदर बढ़ गई थी कि मार्च के आखिरी महीने तक गन्ना क्रय केंद्रों पर बैलगाड़ी वह ट्रैक्टर ट्राली की लम्बी कतारें देखने को मिलती थी। किन्तु मौजूदा समय में पता नहीं किन कारणों से अधिकतर किसानों का गन्ने की फसल से मोहभंग हो गया है। किसान लल्लू राम,राम चन्दर लालबाबू अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि किसानों के लिए गन्ने की फसल नगदी फ़सल के रूप में जाना जाता था, परन्तु अब भुगतान में देरी और क्रय केंद्रों पर गन्ने की वेरायटी को लेकर तमाम दिक्कतों के चलते गन्ने की फसल के जगह गेंहू, धान की बुआई करना उचित समझा जा रहा है।
बहरहाल मौजूदा स्थिति में देखें तो लम्बे समय से गन्ने की फसल के प्रति किसानों का बदला हुआ नजरिया और उसका प्रभाव यहां देखने को मिल रहा है।उसी का परिणाम है कि गन्ने की पैदावार के मामले में अच्छी खासी पहचान बना चुका क्षेत्र अब गन्ना की पैदावार में
आंशिक तौर पर ही देखा जा रहा है।
असग़र अली
उतरौला
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