आलू उत्पादकों को पिछेता झुलसा रोग से बचाव हेतु सलाह
लखनऊ: दिनांक 28 दिसम्बर, 2021
उत्तर प्रदेश के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशक डा0 आर0के0 तोमर ने कहा कि मौजूदा समय में मौसम में लगातार आद्रता बनी रहने के कारण आलू में पिछेता झुलसा रोग का प्रकोप होने की संभावना बनी हुयी है। इसकों दृष्टिगत रखते हुए प्रदेश के मध्य क्षेत्र के आलू किसानों को सलाह दी जाती है कि जिन किसान भाइयों को आलू की फसल में अभी पिछेता झुलसा बीमारी प्रकट नहीं हुयी है, वे मेन्कोजेब या प्रोपीनेब या क्लोरोथेलोनील युक्त फंफूदनाशक दवा का 2.0-2.5 किग्रा0 दवा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव तुरन्त करे।
डा0 तोमर ने बताया कि जिन खेतों में बीमारी आ चुकी है, उनमें किसी भी सिस्टमिक फंफूदनाशक-साइमोक्सानिल मेन्कोजब या फनोमिडो मेन्कोजेब या डाइमेथोमार्फ़मेन्कोजब का 0.3 प्रतिशत (3.0 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में) की दर से छिडकाव करे।
डा0 तोमर ने बताया कि यदि बारिश की सम्भावना बनी हुई है और पत्ती गली है तो फंफूदनाशक के साथ 0.1 प्रतिशत स्टीकर का भी प्रयोग करे। फंफूदनाशक को दस दिन के अन्तराल पर पुनः छिडकाव किया जा सकता है। बीमारी की तीव्रता के आधार पर इस अन्तराल को घटाया या बढ़ाया भी जा सकता है।
लखनऊ: दिनांक 28 दिसम्बर, 2021
उत्तर प्रदेश के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशक डा0 आर0के0 तोमर ने कहा कि मौजूदा समय में मौसम में लगातार आद्रता बनी रहने के कारण आलू में पिछेता झुलसा रोग का प्रकोप होने की संभावना बनी हुयी है। इसकों दृष्टिगत रखते हुए प्रदेश के मध्य क्षेत्र के आलू किसानों को सलाह दी जाती है कि जिन किसान भाइयों को आलू की फसल में अभी पिछेता झुलसा बीमारी प्रकट नहीं हुयी है, वे मेन्कोजेब या प्रोपीनेब या क्लोरोथेलोनील युक्त फंफूदनाशक दवा का 2.0-2.5 किग्रा0 दवा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव तुरन्त करे।
डा0 तोमर ने बताया कि जिन खेतों में बीमारी आ चुकी है, उनमें किसी भी सिस्टमिक फंफूदनाशक-साइमोक्सानिल मेन्कोजब या फनोमिडो मेन्कोजेब या डाइमेथोमार्फ़मेन्कोजब का 0.3 प्रतिशत (3.0 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में) की दर से छिडकाव करे।
डा0 तोमर ने बताया कि यदि बारिश की सम्भावना बनी हुई है और पत्ती गली है तो फंफूदनाशक के साथ 0.1 प्रतिशत स्टीकर का भी प्रयोग करे। फंफूदनाशक को दस दिन के अन्तराल पर पुनः छिडकाव किया जा सकता है। बीमारी की तीव्रता के आधार पर इस अन्तराल को घटाया या बढ़ाया भी जा सकता है।
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