*क्रोध से भ्रम और भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है: ब्यास संत शरण त्रिपाठी*
महसी(बहराइच): श्रीमद्भागवत कथा केवल धर्म का उपदेश नहीं देती है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। गीता के उपदेशों पर चलकर मनुष्य स्वयं एवं समाज का कल्याण कर सकता है। उक्त बातें बौंडी के बिसवां गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस व्यास डा. संतशरण त्रिपाठी ने कही। कहा कि क्रोध से भ्रम और भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। व्यग्र बुद्धि से तर्क नष्ट हो जाते हैं तो व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है। जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का दृष्टिकोण सही है। मन को नियंत्रित करना आवश्यक है। हमें आत्म मंथन करना चाहिए। मुनष्य जिस तरह की सोच रखता है, वैसे ही वह आचरण करता है। जैसा कर्म करता है उसे वैसा फल मिलता है। व्यास की कविता बाहर से हैं साफ सुथरे, अंदर से हैं मलिन...पर तालियों से पंडाल गूंज उठा। कृष्ण जन्म की कथा सुनाते हुए व्यास ने कहा कि विवाह के बाद कंस अपनी बहन देवकी को वासुदेव के राज्य में छोड़ने जा रहा था। तभी आकाशवाणी हुई जिसमें यह कहा गया की देवकी की होने वाली आठवीं संतान कंस का वध करेगी। कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में डाल दिया। छह संतानों वध कर डाला। आंठवीं संतान के रूप में कृष्ण भगवान ने जन्म लिया। इस दौरान मुख्य यजमान राम सुमिरन वाजपेयी, डा. नीरज वाजपेयी, आंजनेय वाजपेयी, विजयानंद जी महाराज, पूर्व विधायक कृष्ण कुमार ओझा, संतोषी लाल शास्त्री, रमेश तिवारी, राम कुमार अवस्थी, अटल बिहारी त्रिवेदी, पशुपतिनाथ त्रिवेदी, विकास दीक्षित, अशोक तिवारी मौजूद रहे।
हिंदी संवाद न्यूज बहराइच।।
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