कलयुग में भगवान का नाम लेने से ही ब्यक्ति का उद्धार हो जाता हैं- पं जगजीवन पांडेय
गिरजा शंकर गुप्ता ब्यूरों
अंबेडकर नगर। श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन सोमवार को अयोध्या धाम से पधारे कथावाचक पं जगजीवन पाण्डेय ब्यास ने नगर के औलिया पुरम कॉलोनी में बाबू राजकरन इंटर कॉलेज अकबरपुर के प्रांगण में चल रही।
श्री मद भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का प्रसंग सुनाया। जिसे सुनकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए। इस अवसर पर भागवत कथा पंडाल में धूमधाम से श्रीकृष्ण व रुक्मणी का विवाह हुआ।
श्रीकृष्ण भगवान की बारात निकाली गई एवं विवाह उत्सव की सुंदर झांकी सजाई गई। भगवान श्रीकृष्ण ने 16,108 विवाह किए, तब भी वह योगी कहलाए। भगवान का मन और चित्त हमेशा जनकल्याण एवं भक्तों के उद्धार के लिए लगा रहता था। व्यक्ति को अपने जीवन में सदैव परमपिता परमात्मा का चिंतन करते रहना चाहिए। ऐसा करने से ही व्यक्ति का उद्धार हो सकता है। कलयुग में भगवान का नाम लेने से ही व्यक्ति का उद्धार हो जाता है। जितना हो सके, सच्चे मन से भगवान का भजन पूजन करते रहे। भगवान का पूजन करने से व्यक्ति का मन, चित्त शुद्ध बने रहते हैं एवं आनंद की लहर घर-आंगन में बनी रहती है। भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी के पत्र को पढ़कर उनका हरण किया। उनसे विवाह किया। भागवत कथा पंडाल में भी श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह की सुंदर झांकी सजाई गई । आचार्य ने कहा कि सुदामा जी गरीबी से परेशान थे उनकी पत्नी सुशीला ने कहा स्वामी द्वारकाधीश आपके बचपन के मित्र हैं। आप उनके यहां जाएंगे, तो श्रीकृष्ण आपकी मदद जरूर करेंगे। पत्नी की बात सुन सुदामा ने कहा विपत्तियों में कहीं नहीं जाना चाहिए। अगर मैं वहां जाता हूं, तो मेरे पास कुछ ले जाने के लिए नही है। सुशीला पड़ोस के घर से दो मुठ्ठी चावल लेकर आती है और अपने आंचल में बांधकर सुदामा को देकर श्रीकृष्ण के पास भेजती है। द्वारपाल श्रीकृष्ण को बताते हैं कि सुदामा जी आए हैं। कह रहे हैं कि कृष्ण जी मेरे मित्र हैं और अपना नाम सुदामा बता रहे हैं। यह सुनते ही श्रीकृष्ण नंगे पांव दौड़ते हुए सुदामा के पास पहुंचे और गले लगा लिया। यह प्रसंग सुनकर कथा प्रांगण में बैठे श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।
आयोजक मंडल के अशोक कुमार सिंह व चन्द्र शेखर सिंह सपरिवार तथा राधेश्याम वर्मा ने श्रद्धालुओं को कथा के अंत में प्रसाद वितरण किया।
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