सत्य और अहिंसा के पथ पर चलकर अंग्रेजों को देश छोडऩे पर विवश करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रतापगढ़ के कालाकांकर से भी बिगुल फूंका था। यहां विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। जानकार बताते हैं कि उस समय तकरीबन 60 हजार रुपये कीमत के विदेशी वस्त्र जले थे। बापू ने लोगों में देशप्रेम का जज्बा भरने के साथ ही विदेशी वस्त्र हटाओ खादी अपनाओ का नारा दिया था। अब भी वहां पर वह चबूतरा बना है महात्मा गांधी दो बार यहां आए और लोगों में देश की आजादी के लिए संघर्ष करने का जज्बा पैदा कर गए। प्रतापगढ़ जिले में पहले से ही किसान आंदोलन चल रहा था। आजादी की लड़ाई के दौरान वर्ष 1917 में पट्टी में बाबा रामचंद्र के नेतृत्व में किसान आंदोलन चलाया जा रहा था। गांधी जी को लगा कि किसानों के सहयोग से अंग्रेजों को देश से जल्दी भगाया जा सकता है। 29 नवंबर वर्ष 1920 में बापू प्रतापगढ़ शहर आए। उनके साथ पं. मोती लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद एवं शौकत अली खान भी साथ थे। गांधी जी ने यहां अपने मित्र इंद्र नारायण चड्ढा के घर पर कुछ पल विश्राम करने के बाद स्टेशन क्लब स्थित मैदान में जनसभा को संबोधित किया। उस समय जिले के कलेक्टर बीएन मेहता थे। उनसे मिलने गांधी जी पैदल ही उनके आवास तक गए। इसके बाद 14 नवंबर 1929 को दूसरी बार गांधी जी कालाकांकर आए। वहां उन्होंने कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के साथ गांधी चबूतरे पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। वहां गांधी चबूतरा अभी भी प्राथमिक विद्यालय के पास मौजूद है 
संस्कृत के विद्वान डा. हरदेव प्रसाद त्रिपाठी शास्त्री अभी भी गांधी जी की यादें समेटे हुए हैं। जागरण से बातचीत में उन्होंने बताया कि गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को पूरे देश में घूम-घूमकर धार दी थी। कालाकांकर स्थित चबूतरे पर शाम के वक्त उन्होंने सभा की, जिसमें अंग्रेजी ताकतों का खुलकर विरोध करने का निर्णय लिया गया। शाम को विदेशी कपड़ों को बैलगाड़ी पर लाद कर वहां एकत्र किया गया। उन कपड़ों के ढेर की होली जलाकर गांधीजी ने अंग्रेजों का विरोध किया था। कालाकांकर राजघराने की पूर्व सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह ने बताया कि विदेशी कपड़ों की होली जलाने के दूसरे दिन 15 नवंबर 1929 को गांधीजी ने राजभवन पर तिरंगा फहराया था 

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