महेश अग्रहरी
*🙏🏻🕉️साहस, बहादुरी और तप की मूर्ति, देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालीं, 'आजाद हिंद फौज' में कैप्‍टन रहीं डॉक्टर लक्ष्मी सहगल जी की जयंती पर नमन🙏🏻🕉️*

*♦️जीवन परिचय:-*
भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस की सहयोगी रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर, 1914 को मद्रास में हुआ था। शादी से पहले उनका नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था। पिता का नाम डॉ. एस. स्वामीनाथन और माता का नाम एवी अमुक्कुट्टी (अम्मू) था। पिता मद्रास उच्च न्यायालय के जाने माने वकील थे।  

*♦️स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:-*
 सिंगापुर में उन्होंने न केवल भारत से आए अप्रवासी मजदूरों के लिए नि:शुल्क चिकित्सालय खोला, बल्कि भारत स्वतंत्रता संघ की सक्रिय सदस्या भी बनीं। वर्ष 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब अंग्रेजों ने सिंगापुर को जापानियों को समर्पित कर दिया, तब उन्होंने घायल युद्धबंदियों के लिए काफी काम किया। उसी समय ब्रिटिश सेना के बहुत से भारतीय सैनिकों के मन में अपने देश की स्वतंत्रता के लिए काम करने का विचार उठ रहा था।

*♦️नेताजी से परिचय:-*
विदेश में मजदूरों की हालत और उनके ऊपर हो रहे जुल्मों को देखकर उनका दिल भर आया। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने देश की आजादी के लिए कुछ करेंगी। लक्ष्मी के दिल में आजादी की अलख जग चुकी थी, इसी दौरान देश की आजादी की मशाल लिए नेता जी सुभाष चंद्र बोस दो जुलाई, 1943 को सिंगापुर आए तो डॉ. लक्ष्मी भी उनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं और अंतत: करीब एक घंटे की मुलाकात के बीच लक्ष्मी ने यह इच्छा जता दी कि वह उनके साथ भारत की आजादी की लड़ाई में उतरना चाहती हैं। लक्ष्मी के भीतर आजादी का जज्बा देखने के बाद नेताजी ने उनके नेतृत्व में रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट बनाने की घोषणा कर दी, जिसमें वह वीर नारियां शामिल की गई जो देश के लिए अपनी जान दे सकती थीं। 

*♦️ तैयार की 500 महिलाओं की फौज:-*
22 अक्टूबर, 1943 में डॉ. लक्ष्मी ने रानी झांसी रेजीमेंट में कैप्टन पद पर कार्यभार संभाला। अपने साहस और अद्भुत कार्य की बदौलत बाद में उन्हें कर्नल का पद भी मिला, जो एशिया में किसी महिला को पहली बार मिला था। सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेना में रहते हुए उन्होंने कई सराहनीय काम किए। उनको अत्यंत कठिन जिम्मेदारी सौंपी गई थी। फौज में महिलाओं को भर्ती होने के लिए प्रेरित करना और उन्हें फौज में भर्ती कराना। लक्ष्मी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया। जिस जमाने में औरतों का घर से निकालना भी जुर्म समझा जाता था, उस समय उन्होंने 500 महिलाओं की एक फौज तैयार की जो एशिया में अपनी तरह की पहली विंग थी।

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