महेश अग्रहरी
*निष्ठा का पुतला—महान वैज्ञानिक एडीसन*
आज जो हमें तार, टेलीफोन, ग्रामोफोन, चलचित्र, प्रोजेक्टर तथा बिजली के चमत्कार दिखाई दे रहे हैं इनमें वास्तव में अमेरिका के एक वैज्ञानिक एडीसन की लगन, यत्न तथा कार्य कुशलता की विशेषतायें मूर्तिमान हो रही हैं। वह एडीसन, जिसे इस समय लोग जादूगर कहा करते हैं और जिसे ठीक से पेट भर भोजन भी न मिला करता था।
एडीसन का जन्म एक बहुत ही साधारण अमेरिकन परिवार में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के ओहिबो प्रान्त के सलान नगर में 11 फरवरी 1847 ई. को हुआ था। एडीसन के माता-पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उसको किसी स्कूल में पढ़ाया जा सके। उसकी माता ने ही अपनी योग्यता के अनुसार उसे घर पर ही कुछ शिक्षा दी थी। किन्तु अत्यधिक कार्य व्यस्तता तथा परिश्रम के कारण जब उसकी माता को पढ़ाने के लिये समय की कमी रहने लगी तब उसने अनेक लोगों से कह सुनकर उसे एक स्थानीय पाठशाला में भरती करा दिया। लेकिन माता का यह सारा प्रयत्न व्यर्थ चला गया। एडीसन का मन पढ़ाई में न लग सका। वह स्कूल जाता और बुत जैसा बैठा रहता और न जाने क्या-क्या सोचता रहता। अध्यापकों ने उसकी शिकायत माँ से की और माँ ने हताश होकर उसे पाठशाला से उठा लिया।
स्कूली शिक्षा से मुक्त होकर एडीसन ने धीरे-धीरे यह सिद्ध करना शुरू कर दिया कि वह संसार में स्कूल की कुछ कक्षायें पास करने के लिये नहीं आया बल्कि अपने पुरुषार्थ, प्रयत्न तथा एकाग्र निष्ठा का सुफल वैज्ञानिक आविष्कारों के रूप में संसार को देने के लिये आया है।
उसने अपने घर से कुछ दूरी पर कुछ झाड़-झंखाड़ जोड़कर अपनी एक छोटी-सी प्रयोगशाला बनाई और अपने वैज्ञानिक कार्यों में लग गया। वह दिन का अधिकाँश समय अपनी प्रयोगशाला में ही लगाता। अपनी लगन की धुन में उसे खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती। कभी यदि माँ आ गई तो भोजन खा लिया या किसी दिन समय से घर जा पहुँचा तो माँ ने वहाँ खिला दिया। अन्यथा एडीसन का खाने-पीने से कोई सम्बन्ध नहीं रहा।
ऐसा नहीं कि वह कोई सिद्ध अथवा चमत्कारी पुरुष था जिससे उसे भूख-प्यास लगती ही नहीं थी, बल्कि वास्तविकता यह थी कि वह अपने प्रयोगों में इस सीमा तक डूबा रहता था कि उसे इसका ध्यान ही न रहता था। भूख-प्यास भोजन न मिलने पर शरीर को निर्बल बना देती है किन्तु जब तल्लीनता-वश मनुष्य इनका अनुभव ही नहीं कर पाता तब उसके शरीर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। सच्चा कर्मयोगी वास्तव में रोटी से नहीं अपने कार्य की बदौलत जीता है। जिसे काम करने को चाव है जिसे परिश्रम से प्रेम तथा कुछ विशेष करने की लगन लगी है, यदि उसे कर्म क्षेत्र से हटा कर भोजन भंडार में रख दिया जाये तो अवश्य ही वह दिन-दिन क्षीण होता हुआ निर्बल हो जायेगा और यदि भोजन की अपेक्षा उसे अधिक से अधिक काम मिलता रहे तो उसका स्वास्थ्य बहुत अंशों तक ठीक रहेगा।
एडीसन की वैज्ञानिक बुद्धि का जागरण जादूगरी दिखाने वाले लोगों के प्रदर्शित अचम्भे से हुआ। उसने जादूगरों के खेल देखे और उनको समझने का प्रयत्न किया। यद्यपि प्रारम्भ में कोई बात उसकी समझ में नहीं आई तो भी वह जादूगरों के कामों को अलौकिकता से न जोड़ सका, उसको सदैव यह विश्वास बना रहा कि अवश्य ही इन चमत्कारों के पीछे इन जादूगरों की कोई चतुरता काम कर रही है। वह निरन्तर उनको जानने के प्रयत्न में लगा रहा और आखिर में बहुत-सा जानकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि संसार में चमत्कार नाम की कोई वस्तु नहीं है। यह सब मनुष्य के विवेक तथा बुद्धि की ही विलक्षणता होती है जो अनजान लोगों को चमत्कार जैसी दिखती है। जिनकी बुद्धि सजग है, जो किसी अनजानता को जानने का उत्सुक है और अन्ध-विश्वासों से जड़मति नहीं हो गया है। वह किसी विलक्षणता को देखकर भौंचक्का होने के बजाय उसका रहस्य पता करने का प्रयत्न करता है, और जब तक पता नहीं कर लेता अपने प्रयत्न से विरत नहीं होता। मनुष्य की विवेक बुद्धि में संसार के सारे रहस्य छिपे रहते हैं और जो उनको पता करने में ईमानदारी के साथ लग जाता है वह अपने उद्देश्य में अवश्य कृत-कृत्य हो जाता है।
जिस प्रकार एडीसन की वैज्ञानिक बुद्धि का जागरण जादूगरों के चमत्कार देखने से हुआ उसी प्रकार उसके वैज्ञानिक प्रयोग एक मूर्खता से प्रारम्भ हुये। सिडिलित्स नाम का एक पाउडर होता है जो गरमी पाकर गैस के रूप में बदल जाता है, और गैस का धर्म है ऊपर उठना और साथ में सामर्थ्य भर अपने पात्र को उड़ा ले जाना। एडीसन ने वह पाउडर एक आदमी को यह देखने के लिये खिला दिया कि पेट में गैस बनने से वह आदमी गुब्बारे की तरह ऊपर उड़ता है या नहीं। आखिर अमेरिका का वह भावी वैज्ञानिक उस समय बच्चा ही था। प्रयोगों की सनक में वह मूर्खता क्यों न करता? यह घटना जहाँ एडीसन की मूर्खता व्यक्त करती है वहाँ आत्म-विश्वास पूर्ण आधारित प्रयोग जिज्ञासा को भी प्रकट करती है, जिसने आगे चलकर उसके बड़े-बड़े प्रयोगों की सफलता में बड़ी सहायता की।
समाज तथा सरकार ने उस बाल-वैज्ञानिक की मूर्खता क्षमा नहीं की। उसकी प्रयोगशाला उखाड़कर फेंक दी गई और उसे पर्याप्त दण्ड दिया गया। यही नहीं उसके घर वालों ने भी उसे एक खतरनाक लड़का समझकर घर से निकाल दिया। तो अब क्या ऐसी विषम स्थिति में वह किसी एकान्त कोने में बैठकर रोता। हाँ वह रोता अवश्य यदि उसकी लगन झूठी होती, उसका उत्साह छुई-मुई और उसकी जिज्ञासा आत्म-प्रवंचना होती। जब वह मन प्राण से ईमानदार रहकर संसार को कुछ देना चाहता था तो भला वह इस धक्के से निराश होकर रोता क्यों। ऐसे न जाने कितने धक्के, कितने झटके और कितनी असफलताएँ जीवन में आवेंगी। तब भला यदि वह यों ही रोने के लिए बैठने लगा तब तो वह प्रयोग कर चुका और दे चुका संसार कोई अनुपम उपहार।
प्रयोगशाला उखाड़ फेंकी गई—घर से निकाल दिया गया—न खाने का ठीकाना और न रहने का ठिकाना —किन्तु उत्साही एडीसन ने जमीन के नीचे एक तहखाने में अपनी प्रयोगशाला बना ली और रेलों पर अखबार बेच कर अपनी जीविका चलाने लगा।
धीरे-धीरे एडीसन ने अपने प्रयोगों के साथ- साथ अपने व्यवसाय का विकास भी करना शुरू कर दिया। अब वह जिस प्रेस से अखबार लाता वहाँ थोड़ी देर ठहर कर कार्य विधि देखता और छपाई की कला सीखता। छपाई कार्य शिल्प सीखने के लिये उसने छापा खाने का बहुत-सा काम बिना कोई पारिश्रमिक लिये किया। एडीसन को अपनी क्षमताओं पर पूर्ण विश्वास था कि कुछ समय परिश्रम का उत्सर्ग करने के बाद वह छपाई का एक ऐसा काम जान जायेगा जो जीवन भर उसको लाभ पहुँचाता रहेगा, और हुआ भी ऐसा ही। उसका त्याग फलीभूत हुआ। उसने उस गाड़ी पर एक छोटा-सा छापाखाना लगा लिया और स्वयं अपना अखबार छापने लगा। उसकी रोटी की समस्या एक अच्छे स्तर पर हल हो गई।
बुद्धिमान एडीसन ने अपनी आय को खाने-उड़ाने में नहीं खोया बल्कि मितव्ययता के साथ बचा-बचाकर अपनी प्रयोगशाला को उन्नत एवं उपकरण पूर्ण बनाना प्रारम्भ कर दिया। एक व्यवस्थित विधि से जीवन में जो क्रमिक विकास होता है वह सदैव ही स्थिर रहता है और उसमें दिन-दिन सफलता के फल लगते रहते हैं।
एडीसन की प्रयोगशाला तहखाने में और छापाखाना रेलगाड़ी में था, इसलिये उन दोनों आवश्यक उद्योगों की व्यवस्था ठीक न हो पाती। अतएव उसने प्रयोगशाला को भी रेल के एक डिब्बे में लाकर समस्या हल कर ली। इस प्रकार श्रम तथा समय का अपव्यय बच जाने से वह निश्चिन्त होकर अपने प्रयोगों में लग गया।
यह निश्चित है कि वैज्ञानिक प्रयोग कभी भी एक बार में सफल नहीं होते। उनमें असफलता तथा त्रुटियाँ होतीं और सुधरती रहती हैं। उसके प्रयोग चलते रहे। किन्तु इसी बीच जब वह फास्फोरस के साथ कुछ प्रयोग कर रहा था तभी गाड़ी के झटके से फास्फोरस की शीशी गिरकर फूट गई जिससे डिब्बे में आग लग गई। बड़ी भाग-दौड़ मची। आग तो कुछ पार्सल जलाकर बुझ गई किन्तु रेलवे अधिकारियों ने एडिसन की पूरी प्रयोगशाला मय छापाखाने को उठाकर बाहर फेंक दिया।
एडिसन की प्रगति पर यह दूसरा आघात था। किन्तु वह फिर भी हताश न हुआ और फिर लौटकर अपने अखबार बेचने के व्यवसाय पर आ गया। प्रगति पथ पर कुछ दूर तक बढ़ जाने के बाद पीछे लौटना एक बहुत दुखद संयोग है जिसके आघात से किसी का चल-विचल होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। किन्तु जो प्रगति पथ के सच्चे राही हैं वे एक क्या हजार बार पीछे आकर आगे बढ़ते हैं और ऐसे ही साहसी शूरो को प्रकृति की सहायता भी मिला करती है।
एडीसन प्लेटफार्म पर अखबारों का बंडल लिये खड़ा था और गाड़ी दौड़ती चली आ रही थी। तभी उसकी दृष्टि सामने पटरी पर खेलते हुए स्टेशन मास्टर के बच्चे पर पड़ी। गाड़ी आ ही चुकी थी और बच्चे के बचने की कोई सम्भावना न थी। किन्तु साहसी एडीसन ने तत्काल बंडल फेंका और बालक की प्राण रक्षा में अपने प्राणों को संकट में डालकर बिजली की तरह दौड़कर उसे उठा लाया।
बच्चा स्टेशन मास्टर का था। उस स्टेशन मास्टर का जिसने उसका छापाखाना तथा प्रयोगशाला फिंकवा दी थी। एडीसन यह जानता था, पर क्या वह उसका बदला उस अबोध बच्चे से लेता? अपनी उस मानवता को द्वेष की निकृष्ट वेदी पर बलिदान कर देता जिसने उसे उस बच्चे के प्राण रक्षा के लिये प्रेरित किया था?
एडीसन का पुण्य फलीभूत हुआ। बच्चे की प्राण रक्षा करके उसने स्टेशन मास्टर और उसके परिवार को दुखद सम्भावना से बचाकर जो उपकार किया था वह फल दिया। उपकृत स्टेशन मास्टर ने उसे तार की शिक्षा देकर उसी स्टेशन पर सहायक तार बाबू बना लिया।
यहाँ भी एडीसन ने सोचना, समझना और प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया और एक ऐसा यन्त्र तार की क्रिया में जोड़ दिया जो समय पर स्वयं ही तार खटखटा दिया करता था। एडीसन को समय के साथ विश्राम मिलने लगा जिसका सदुपयोग करके उसने उसी तारतम्य से एक ऐसी फीता-मशीन का आविष्कार कर डाला जिससे भेजा हुआ सम्वाद गन्तव्य स्थान पर एक फीता-पट्टी पर स्वयं छप जाया करता था।
यह एक महत्वपूर्ण आविष्कार था। एडीसन ने अपने को पहचाना अपने महान मस्तिष्क का परिचय पाया और नौकरी छोड़ दी।
जिस समय वह आविष्कारों के लिये एक बड़ा क्षेत्र पाने तथा अधिक साधनों के लिये न्यूयार्क आया उस समय उसके पास एक पैसा भी नहीं था। ‘गोल्ड इन्डीकेटर’ कम्पनी का वह तार यन्त्र खराब हो गया जिससे दलाल लोग व्यापारियों को सम्वाद भेजा करते थे। एडीसन ने यन्त्र ठीक किया जिसके फलस्वरूप वह उस कम्पनी के तार घर का मैनेजर बना दिया गया।
कम्पनी का सहारा पाकर एडीसन ने यूनीवर्सल प्रिंटर नामक एक मशीन बनाई जो आगे चलकर उसके नाम पर ‘एडीसन यूनीवर्सल प्रिंटर’ कही जाने लगी। इस आविष्कार पर कम्पनी के अध्यक्ष ने उसे चालीस हजार डालर का पुरस्कार दिया।
धन की प्रचुर सुविधा पाकर एडीसन ने एक साधन सम्पन्न प्रयोगशाला बनाई और उसमें नये-नये प्रयोग करने लगा। उसने बिजली के एक ही तार पर अनेक सम्वादों के जाने-आने की व्यवस्था बनाई, टेलीफोन यन्त्र का सुधार तथा परिष्कार किया, लाउडस्पीकर बनाया और ग्रामोफोन का आविष्कार कर संसार में हलचल पैदा कर दी।
चित्रपट पर दिखाये जाने वाले चल-चित्रों के लिये ‘स्लोलाइट’ की रील तथा चित्र-प्रदर्शन के लिये प्रोजेक्टर का निर्माण किया, एक्सरे का आविष्कार करने के साथ जल युद्ध में काम आने वाले बहुत से उपकरण तथा अन्य यन्त्र बनाये।
इस प्रकार अपनी बुद्धि, लगन तथा निष्ठा के बल पर मानव जाति की सुख-सुविधा की व्यवस्था में जीवन के 84 वर्ष लगाकर महान आविष्कार कर टाँमस अल्वा एडीसन 18 अक्टूबर 1931 ई. को स्वर्ग सिधार गया। एडीसन आज संसार में नहीं है किन्तु बिजली के बल्ब और चलचित्रों का चमत्कार अन्य आविष्कारों के साथ उसकी यश गाथा युग-युग तक गाते रहेंगे।
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