प्रमाणपत्र फर्जीवाड़े के 60 आरोपितों की वास्तविक जाति लापता
महेश चंद्र अग्रहरि
अंबेडकरनगर: वास्तविक जाति छिपाकर अनुसूचित गोंड जाति का प्रमाणपत्र बनाने के 60 आरोपितों की जाति लापता है। तहसील प्रशासन ने इन्हें गोंड जाति का नहीं माना है। हालांकि मुकदमे में इनकी वास्तविक जाति का जिक्र नहीं किया गया है। गत 34 साल से लंबित मुकदमे का निस्तारण करने में नाकाम पुलिस व प्रशासन अभी तक इनकी वास्तविक जाति भी पता नहीं लगा सका है।
पूर्वजों की जाति और सरकारी अभिलेखों के सहारे खुद को गोंड जाति का बताने वाले इन आरोपितों के सामने अपनी जाति प्रमाणित करना चुनौती बना है। तहसील प्रशासन भी गोंड जाति की उलझी इस समस्या को सुलझाने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। महज 1038 की आबादी वाली इस जाति के लोगों की आवाज दब गई है। खतौनी और परिवार रजिस्टर समेत स्कूली अभिलेख आदि में दशकों से इनकी जाति गोंड दर्ज मिल रही है। यहां तक कि कुछेक लोगों के पास 100 पुराने जाति संबंधी अभिलेख भी मिले हैं। सवाल उठता है कि प्रशासन किस अभिलेख के आधार पर अपनी जाति गोंड बताने वाले इन आरोपितों का दावा मानने को तैयार होगा।राजनीतिक खेल की आती गंध : खुद को गोंड जाति का बताने वाले 60 लोगों को इससे बेदखल करने के पीछे तीन दशक पहले सांसद के चुनाव में राजनीतिक दबाव की गंध आती है। तहरीर में अपर तहसीलदार ने बाबूलाल नाम के एक व्यक्ति को खास तौर पर इंगित करते हुए लिखा कि इन्होंने अनुसूचित जाति का बनकर चुनाव लड़ा है। इससे यह लगता है कि चुनाव में एक दावेदार को बाहर करने के लिए यह खेल रचा गया। वजह अन्य आरोपितों के गोंड जाति के प्रमाण पत्र पर सरकारी लाभ लिए जाने का दावा तो किया गया है, लेकिन स्पष्ट जिक्र नहीं है। वजह चाहे कुछ भी रही हो, लेकिन इसकी आड़ में पूरी गोंड बिरादरी का जाति प्रमाणपत्र नहीं बनाना 1038 लोगों को जातिविहीन करता नजर आता है। पिछले 34 साल से यह बिरादरी कागजों में अपनी कोई भी जाति नहीं बता पा रही है।
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