नाटी इमली के मैदान में श्री चित्रकूट रामलीला समिति की ओर से भरत मिलाप की 478 साल की परंपरा का निर्वहन किया गया। नाटी इमली का मैदान अयोध्या में तब्दील हो गया। जैसे ही राम और लक्ष्मण को भरत व शत्रुघभन ने देखा तो वह नंगे पैर ही उनकी ओर दौड़ पड़े। नेमियों ने प्रभु की राह में फूल बिछाए और मिलन की नयनाभिराम झांकी को आंखों में संजोने के लिए टकटकी लगा ली। शाम 04:40 बजे जैसे ही भगवान श्रीराम ने भरत को अपने गले से लगाया तो चारों दिशाओं में जय श्रीराम का जयघोष गूंज उठा। काशी के लक्खा मेले में शुमार नाटी इमली के भरत मिलाप में आस्था और श्रद्धा का कोई ओर-छोर नहीं था। हर तरफ बस राम का नाम और उनके जयघोष। आसपास के मकानों की छतों पर श्रद्धालु टकटकी लगाए प्रभु श्रीराम की लीला का वंदन कर रहे थे। श्रद्धालुओं ने चारों स्वरूपों का दर्शन कर आशीर्वाद लिया। स्वरूपों की आरती पं. अभिनव उपाध्याय ने उतारी।नाटी इमली के भरत मिलाप में काशीराज परिवार के अनंत नारायण सिंह पहुंचे, उन्होंने सबसे पहले चित्रकूट स्थल पर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता-सीता के दर्शन किए। काशी की जनता ने हर-हर महादेव केजयघोष से उनका स्वागत किया। इसके बाद हनुमान जी ने चित्रकूट से अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। वहां जाकर वह भरत जी को संदेश देते हैं कि भगवान राम अयोध्या की सीमा पर आ गए हैं। यह सुनते ही भरत जी हनुमान जी के साथ अयोध्या की सीमा पर आने की तैयारी शुरू कर देते हैं। भरत मिलाप मैदान में यह पहला मौका था जब काशीराज परिवार का कोई सदस्य वाहन से लीला स्थल पर पहुंचा था। इसके पहले काशीराज परिवार के सदस्य हाथी पर सवार होकर पहुंचते थे।

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