*चरणामृत और पंचामृत...*
चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच पवित्र वस्तुओं से बना अमृत। दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है।https://www.youtube.com/channel/UCCqUFVFabDhttngUwalwSYg

शास्त्रों में कहा गया है- *अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।*
अर्थात् : भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है। जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।
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कैसे बनता चरणामृत : तांबे के बर्तन में चरणामृतरूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं। चरणामृत में तुलसी पत्ता, तिल और दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं। मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला जल रखा ही रहता है।

*चरणामृत लेने के नियम :* चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है।

*आयुर्वेद* के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है। तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शांति और निश्चिंतता प्रदान करता हैं। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है।

*देवमूर्ति के स्नान में हमेशा पंचामृत का प्रयोग किया जाता है। इसका पूजा में विशेष महत्व माना जाता है। पंचामृत पांच तरह की चीजे जैसे- दूध, गंगाजल, दही, घी, शहद को मिलाकर बनाया जाता है। पंचामृत का मुख्य रूप से प्रयोग भगवान विष्णु की पूजा में किया जाता है। इसी पंचामृत को भगवान के प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है। मान्यता है कि पंचामृत के पान करने से आपको कई रोगों से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बन जाता है। आइए जानते हैं पंचामृत का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व…*

पंचामृत को बनाने के लिए दूध, गंगाजल, दही, घी, शहद का प्रयोग किया जाता है। 

1. *दूध:-* शुभता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। यह शरीर के अंदर के विष को दूर करता है और मन को शांत करके तनाव दूर रखता है। साथ ही शरीर में कमजोरी नहीं आती है।जब तक बछड़ा पास न हो गाय दूध नहीं देती यदि बछड़ा मर जाए तो उसका प्रारूप खड़ा किए बिना दूध नहीं देती, अतः गाय को अपने बछड़े से मोह है इसलिए मोह का प्रतीक है, ईश्वर को दूध अर्पण करके अपने मोह को खत्म करने  है की कामना करनी चाहिए।

2. *दही:-* दही की तासीर ठंडी होती है इसलिए अपने क्रोध को शांत रखने के लिए और पाचन तंत्र को मजबूत करता है और एकाग्रता बढ़ाता है। इसके सेवन से मानसिक सुख में वृद्धि होती है। प्रत्येक शुभ कार्य के लिए घर से बाहर जाते समय दही का सेवन किया जाता है। दही अमृत के समान भी माना जाता है। ईश्वर को दही अर्पण करने का अर्थ क्रोध को शांत करने की प्रार्थना के साथ दही जैसी शांत ठंडी प्रवृत्ति हो ईश्वर से कामना करनी चाहिए। वहीं, गंगाजल को मोक्षदायनी भी कहा जाता है। वेद, पुराण, रामायण और महाभारत सभी ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन है। गंगाजल मुक्ति का प्रतीक है।

3. घी:- यह समृद्धि के साथ आने वाला है ,अहंकार का प्रतीक है।
घी के प्रयोग का विशेष महत्व है। घी स्नेह यानी प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए देवी-देवातओं को प्रसन्न करने के लिए घी का दीपक जलाया जाता है। घी शरीर को बल और पुष्टि भी देता है और हड्डियों को मजबूत बनाए रखता है।

4. *शहद:-* मधुमक्खी कण- कण भरने के लिए शहद का संग्रह करती है इसे लोभ का प्रतीक माना गया है । शहद का इस्तेमाल किया जाता है। कई बीमारियों के इलाज में शहद का प्रयोग किया जाता है। यह पौष्टिकता से भरपूर और स्वादिष्ट होता है। साथ ही प्राकृतिक भी।

*धार्मिक महत्त्व-* पंचामृत का पान करनेवाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुखों के साथ, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि पंचामृत का पान करनेवाले मनुष्य का जीवन जन्म और मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। उसको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इन पांचों वस्तुओं को ईश्वर को अर्पण करने का अर्थ हुआ हम अपना मोह,लोभ,क्रोध और अहंकार को समेटकर भगवान को अर्पित कर उनके श्री चरणों में शरणागत हो।

*वैज्ञानिक महत्त्व-* पंचामृत में तुलसी का पत्ता डालकर उसका नियमित सेवन करते रहने से हॉर्ट से संबंधित दिक्कते, कब्ज, शुगर आदि  रोगों से बचा जा सकता है। इसके नियमित सेवन से इम्युनिटी सिस्टम भी सही रहता है।तुलसी का नियमित सेवन करने से आयरन की कमी नहीं होती।तुलसी में पारा धातु होती है इसलिए इसे कभी भी चबाकर नहीं खाना चाहिए यदि तुलसी को चबाकर खाते है तो दातों से खून निकलना(पायरिया) की शिकायत हो सकती है। तुलसी के सेवन से साथ ही स्किन भी चमकदार रहती है। *जन्मकुण्डली डिग्री बनवाने व जन्मकुण्डली डिग्री का शोध करवाने केलिए संपर्क करें* आपके दैवज्ञ विनोदशर्माकुश आदिगौड ब्राह्मण के पास  💐👌👍 *9013387725*⚛️#Vinod kushrishi✡️ *Google Search* 9013387725  *किसी भी प्रकार की कोईभी समस्या हो तो* आप संपर्क करें ...9013387725         या विशेष जन्मकुण्डली बनवानी हो या पूजा पाठ से संबंधित कोईभी कार्यक्रम करना हो 👈🏻🕉☸✡🔯💟Paytm number *Google pay & Phone Pay  .9013387725                https://www.facebook.com/जन्मकुण्डली-डिग्री-व-किसीभी-प्रकार-की-समस्या-कासमाधान-कराने-हेतु-9013387725-108660053817696/                    *🙏जयसरस्वतीदेवी*
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