उतरौला (बलरामपुर)
मोहर्रम को लेकर अदबो एहतराम के साथ अजादारी का सिलसिला शुरू हो गया है।
मोहर्रम की पहली तारीख से शिया अंजुमनों ने मातम शुरू कर दिया। इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से किसी तरह के न तो जुलूस निकलेंगे और ना ही सामूहिक तौर पर कहीं जमावड़ा होगा। लेकिन अली असगर का झूला, अलम और दुलदुल सजाने की तैयारियां की गई हैं।
माहे मोहर्रम के चाद के साथ गम का महीना शुरू हो गया। मोहर्रम के आगाज के साथ कस्बा उतरौला के रफी नगर, पटेल नगर, सुभाष नगर सहित अन्य मोहल्लों में शिया समुदाय के घरों की छतों व बारजों पर स्याह परचम लगा दिए गए। अब कर्बला के शहीदों की याद में 68 दिनों तक गम मनाने का सिलसिला चलेगा।
इसी के साथ घरों में अजाखाने सजा दिए गए। शोक के प्रतीक के तौर पर स्याह परचम भी घरों की छतों, बारजों पर लहराने लगे हैं। मौलाना जायर अब्बास के मुताबिक चांद की तस्दीक के साथ ही माहौल गमगीन हो गया।
घरों व अजाखानों में अलम, ताबूत, ताजिए, झूला, जरी व तमाम याद ए करबला को सजा दिया गया। 
कोविड प्रोटोकॉल व सरकारी गाइड लाइन पर अमल करते हुए घरों व अजाखानों में मजलिसें शुरू हों गई।
पूर्व वर्षों की भांति निकलने वाला इस्तेकबाल -ए -अजा का जुलूस इस बार नहीं निकाला गया। 
इस जुलूस में कई मातमी अंजुमनें शिरकत करती थीं। लेकिन, मजहबी शिया धर्म गुरुओं की कोविड -19 के दृष्टिगत अपील पर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मोहर्रम मनाने का निर्णय लिया गया। इस वजह से भीड़भाड़ वाले किसी भी बड़े आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
इमामिया ट्रस्ट अध्यक्ष ऐमन रिजवी ने बताया कि मोहर्रम की पहली तारीख से शिया इमामबाड़ों में सुबह से ही मजलिसो मातम का सिलसिला शुरू हो गया। इसमें सभी जगह कर्बला के वाकयात, इमाम हुसैन के पैगाम के साथ ही उनके 72 साथियों के साथ कर्बला की जंग का भी जिक्र किया जा रहा है। सुबह फजर की नमाज के बाद से देर शाम तक मजलिसों का सिलसिला जारी रहता है।


उतरौला से असगर अली की रिपोर्ट।

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