नागपंचमी का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया गया

          गिरजा शंकर गुप्ता (ब्यूरों)
अम्बेडकर नगर। 14 अगस्त। नाग पंचमी का त्यौहार जनपद में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
बताया जाता है कि जिस दिन ब्रह्माजी ने आस्तिक मुनि द्वारा नागों को बचाने का वरदान दिया था, उस दिन पंचमी तिथि थी।  आस्तिक मुनि ने राजा जनमेजय के यज्ञ को समाप्त करवाकर नागों के प्राण बचाए थे, उस दिन सावन की पंचमी तिथि थी। इसलिए सांपों को पंचमी तिथि अति प्रिय है।
पौराण‍िक कथा के अनुसार किसी जगह पर एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ अपना गुजर बसर करता था। उसके 2 पुत्र व 1 पुत्री यानी कुल तीन बच्चे थे। एक दिन खेत में हल चलाते हुए उसके हल में फंसकर नागिन के तीन बच्चों की मौत हो गई। यह देखकर नागिन काफी दुखी हुई। गुस्से में आकर नागिन ने उस किसान से बदला लेने का प्रण लिया। एक रात जब किसान अपने बच्चों के साथ सो रहा था। तो नागिन ने उस किसान की पत्नी और दोनों बच्चों को डसकर मार दिया।
वह नागिन जब दूसरे दिन उसकी पुत्री को डसने आई, तो उस लड़की ने डरकर नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और हाथ जोड़कर क्षमा मांगी। कहा जाता है कि इस दिन सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। नागिन ने प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहा। लड़की ने अपने माता-पिता व भाई को जीवित होने का वर मांगा और साथ ही ये भी इच्छा जताई कि जो भी मनुष्य आज के दिन नाग-नाग‍िन की पूजा करें उसे नाग कभी न डसे। नागिन तथास्तु कहकर वहां से चली गयी। उसी समय किसान का परिवार जीवित हो गया।
दूसरी कथा: इस कथा के अनुसार एक दिन कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ यमुना तट पर खेल रहे थे। खेलते हुए अचानक उनकी गेंद नदी में जा गिरी। कृष्ण जी गेंद निकालने के लिए नदी में कूद पड़े। तभी कालिया नाग ने उन पर आक्रमण कर दिया। बालक कृष्ण ने कालिया नाग को सबक सिखाया और उसने कृष्ण से क्षमा याचना मांगी। कालिया नाग ने प्रतिज्ञा ली कि वह कभी भी गाँव वालों को परेशान नहीं करेगा। नाग कालिया पर कृष्ण जी की विजय के बाद इस दिन को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा। 
गुड़िया को पीटने की परंपरा- 
उत्तर प्रदेश में नागपंचमी के दिन एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है. यहां पर इस दिन गुड़िया को पीटा जाता है. इसके पीछे कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं. एक कथा के मुताबिक, तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी. कुछ वर्षों के बाद तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या का विवाह राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में हुआ. विवाह के बाद उसने अतीत का यह राज एक सेविका को बता दिया. कन्या ने सेविका से कहा कि वो ये बात किसी और को ना बताए लेकिन सेविका से रहा नहीं गया और उसने यह बात एक दूसरी सेविका को बता दी. इस तरह बात फैलते-फैलते ये बात पूरे नगर में फैल गई. 

ये बात जब तक्षक के राजा तक पहुंची तो उन्हें क्रोध आ गया. उन्होंने नगर की सभी स्त्रियों को चौराहे पर इकट्ठा होने का आदेश दिया. इसके बाद कोड़ों से पिटवाकर उन्हें मरवा दिया. राजा को इस बात का गुस्सा था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती और इस वजह से उसकी पीढ़ी से जुड़ी अतीत की एक पुरानी बात पूरे साम्राज्य में फैल गई. मान्यताओं के अनुसार, तभी से यहां गुड़िया पीटने की परंपरा मनाई जा रही है.

परंपरा से जुड़ी एक अन्य कथा- 
  गुड़िया पीटने की परंपरा से जुड़ी एक अन्य कथा भी प्रचलित है जो भोलनाथ के एक भक्त से जुड़ी है. इस कथा के मुताबिक, भोलेनाथ का एक परम भक्त हर दिन शिव मंदिर जाकर पूजा करता था और नाग देवता के दर्शन करता था. भक्त हर दिन नाग देवता को दूध पिलाता था. धीरे-धीरे दोनों में प्रेम हो गया. नाग देवता को भक्त से इतना लगाव हो गया कि वो उसे देखते ही अपनी मणि छोड़ उसके पैरों में लिपट जाता था.

एक दिन सावन के महीने में वो भक्त अपनी बहन के साथ उसी शिव मंदिर में आया. नाग हमेशा की तरह भक्त को देखते ही उसके पैरों से लिपट गया. ये दृश्य देखकर बहन भयभीत हो गई. उसे लगा कि नाग उसके भाई को काट रहा है. बहन ने भाई की जान बचाने के लिए उस नाग को पीट-पीटकर मार डाला. इसके बाद जब भाई ने अपनी और नाग की पूरी कहानी बहन को सुनाई तो वह रोने लगी. वहां उपस्थित लोगों ने कहा कि 'नाग' देवता का रूप होते हैं. तुमने उसे मार दिया इसीलिए तुम्हें दंड मिलना चाहिए. हालांकि, यह पाप अनजाने में हुआ है इसलिए भविष्य में आज के दिन लड़की की जगह गुड़िया को पीटा जाएगा. इस तरह नाग पंचमी के दिन गुड़िया पीटने की परंपरा शुरू हुई.
आज के दिन लोगों ने नागों को दूध चढाया कर नागों की पूजा की गई अपने घरों  में घरों में पकवान भी बनाया गया।

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