आगरा। कोरोना संकट काल की दूसरी लहर में हमारा शहर ही नही सम्पूर्ण प्रदेश-देश यहा तक कि इस वैश्विक महामारी के प्रकोप से समूचा विश्व भी अछूता नही है,जिसके चलते हमारे पत्रकार साथियो की भूमिका भी किसी अहम किरदार से कम नही ऑकी जा सकती है। जो नमन करने और साधुवाद की प्रबल हकदार है।

इस महत्वपूर्ण विचार के साथ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ठाकुर देवेंद्र सिंह ने अपने वक्तव्य में संवाददाता वार्ता में बताया कि हम कल भी पत्रकार साथियो के लिए तन-मन-धन से समर्पित थे और हमेशा रहेगें। साथियो बड़ा ही पीड़ा दायक विषय है,जिस पर समय रहते अगर हमने मंथन नही किया तो इसी प्रकार हमारे पत्रकार साथियो के साथ जो पीड़ा दायक घटनाऐ हो रही है वह सदैव से होती रही है और आगे भी होती रहेगी। साथियो मेरा मंतव्य कभी भी मनोबल गिराने का नही रहा है और ना ही कभी भविष्य मे रहेगा। आख़िर हो भी क्यों ना,चाहे न्याय पालिका हो या कार्य पालिका या संसद विधायिका या फिर नेता अभिनेता या फिर सरकारी मशीनरी या समाज का कोई भी तबका पत्रकार के बिना किसी का काम न चला है,न वर्तमान मे चल रहा है और ना ही भविष्य मे चल पाएगा। मगर जब पत्रकार हित की बात आती है तो यह उपरोक्त पत्रकारो के मोहताज सभी वर्ग जो पत्रकार का अपने को सबसे बड़ा हितैषी कहते है सबके सब तटस्थ हो जाते और इन्ही मे से कोई न कोई वर्ग पत्रकार को व्यथित कर आत्मिक कष्ट पहुंचाने से नही चूकते, यह बड़ा ही संवेदना का विषय है। क्या कभी हम पत्रकार साथियो ने इस बात को गंभीरता से लिया-? क्या कभी दो पल बैठकर मंथन किया कि ऐसा हमारे साथ क्यो हो रहा है-? शायद नही किया -?  मेरा अपना अनुभव है कि इस सबके लिए जिम्मेदार भी सिर्फ और सिर्फ हम ही है। जिम्मेदार है हमारे ही अपने वे मुट्ठी भर पत्रकार साथी जो अपनी दूषित और कुत्सित मनोवृत्ति के चलते स्वार्थ सिद्ध को उद्देश्य बना चाटुकारिता पीत पत्रकारिता के गुलाम बनकर अपने ही साथियो के मान-सम्मान को मर्दन करने और कराने का के कार्य मे मशगूल है। प्रायः देखने मे आया है जब-जब पत्रकार साथियो के सामने शासन-प्रशासन पुलिस प्रशासन से संबंधित कोई समस्या प्रकाश मे आई है उसकी मूल जड़ मे कही न कही संलिप्तता हमारे ही पत्रकार साथी की ही देखने को मिलती है। 

श्री सिंह ने कहा कि पत्रकार पथ प्रदर्शक होता है,स्वयं ही दिशाहीन हो गया तो सवालिया निशान लाजमी है ? साथियो हमे अपनो से ही सर्वाधिक खतरा है गैरो से नही। क्योंकि पत्रकार गुड का पूआ नही होता जो कोई भी उसे खा जाने की हिमाकत कर सकेगा। पत्रकार कल भी शक्तिशाली था आज भी है और आगे भी रहेगा, मगर कोई कितना भी सक्षम और सर्व शक्तिमान क्यो ना हो अगर वह संगठित नही है तो उसका अपना वजूद अवश्य खतरे मे रहेगा और अगर संगठित है तो किसी की मजाल नही है कि वह ऑख उठाकर भी हमारी तरफ देख सके। इस कड़व सत्य को हमे समय रहते सर्वमान्य रूप से मान लेने मे हमारी भलाई है। तो मेरे साथियो हमारे अपने अंदर विद्यमान कमियो को सुधारते हुए अतीत मे हुई गलतियो से सबक लेते हुए हमे आगे बढ़ना चाहिए। अपनी शक्ति को पहचानना चाहिए और वो शक्ति है संगठित होकर एक मंच पर आकर आवाज बुलंद करने की। नक्कारखाने मे तूती की आवाज दबकर रह जाती है। हम कलमकार है। देश व समाज के सबसे महत्वपूर्ण किरदार है। चतुर्थ स्तम्भ के परिचायक है उस पर परिभाषित और खरा उतरना हमारा अपना ही उत्तरदायित्व है। जिसकी जवाबदेही हमारी है किसी और की नही ? मेरी बातो से अगर कोई भी साथी आहत हुए हो तो करबद्ध क्षमा चाहूंगा।

रिपोर्ट राजकुमार गुप्ता 

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