बागपत। विवेक जैन

बागपत के खट्टा प्रहलादपुर में महेश मन्दिर और मन्दिर के आस-पास का क्षेत्र भगवान परशुराम का प्राचीन आश्रम माना जाता है। बताया जाता है कि जब थक कर भगवान परशुराम इस मन्दिर में कर्ण की गोद पर अपना सिर रखकर विश्राम कर रहे थे, उस समय कर्ण को बिच्छू ने काट लिया था। भगवान परशुराम की कर्ण के बहते खून के स्पर्श से नींद भंग हो गयी थी। क्षत्रिय की जगह स्वयं को ब्राहमण बताकर परशुराम जी से शिक्षा ग्रहण करने की वजह से परशुराम जी कर्ण पर क्रोधित हो उठे और उन्होंने कर्ण को इसी स्थान पर श्राप दिया था। कर्ण को भी अपने क्षत्रिय होने के बारे में उस समय पता नही था। वर्तमान में देश के प्रसिद्ध जूना अखाड़े द्वारा नियुक्त महंत एकादशी गिरी जी महाराज इस आलौकिक, अदभुत और शक्तियों से सम्पन्न मंदिर की देखरेख करते है। उन्होंने बताया कि इस मन्दिर प्रांगण में आठ पलकों वाला अति प्राचीन तांत्रिक शिवलिंग मौजूद है। इस प्रकार के अदभूत शिवलिंग भारतवर्ष में बहुत कम देखने को मिलते है। बताया कि मन्दिर प्रांगण में स्थित विशाल वटवृक्ष के 25 हजार साल पुराना होने की पुष्टि भारत सरकार की ऐतिहासिक धरोहरों की जांच करने वाली पेड़ो से जुड़े विशेषज्ञों की टीम कर चुकी है। इस वटवृक्ष की एक विशेषता यह भी है कि इस वृक्ष पर रात्रि के समय कोई भी पक्षी नहीं रूकता है और पक्षी इस वृक्ष पर बीट तक नहीं करते है। इस विशाल वृक्ष में सैकड़ो तने है। आज तक कोई भी इस वृक्ष के मुख्य तने का पता नहीं लगा सका। मंदिर के पुजारी गणेश गिरी बताते है कि इस मन्दिर प्रांगण में जो समाधियां बनी हुयी है, वह इस मन्दिर की देखरेख करने वाले पूर्व महंतो की है। यहां पर एक धूना 24 घंटे जलता है। यहां पर पूर्व के महंतो के चित्र लगे है। महाशिवरात्री पर बिच्छू और सर्प धूने पर जरूर आते है। बताया कि 26 जनवरी और 27 जून को इस मंदिर प्रांगण में विशाल भंड़ारा लगता है, जिसमें विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु आते है। इस मन्दिर में अनेको देवी देवताओं के मन्दिर स्थित है।

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