मुंशी प्रेमचंद शोध संस्थान की स्थापना का उद्देश्य था कि यहां शोधार्थी आएं और उपन्यास सम्राट को जानें। उनकी कहानियों और साहित्य पर शोध करें। उम्मीद थी कि यह शोध संस्थान उनके बारे में कुछ नए तथ्य सामने लाएगा लेकिन पांच साल का परिणाम निराशाजनक है। सुबह संस्थान का ताला खुलता है, शाम को बंद कर दिया जाता है। इसके संचालन की जिम्मेदारी बीएचयू की है। उपन्यास जगत में ध्रुव तारे की मानिंद चमकने वाले मुंशी प्रेमचंद के शोध संस्थान को शोधार्थियों से गुलजार होना चाहिए था, लेकिन स्थिति इसके उलट हैमुंशी प्रेमचंद शोध संस्थान का शिलान्यास 31 जुलाई 2005 को तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री जयपाल रेड्डी और सीएम मुलायम सिंह यादव ने किया था। 11 साल के बाद शोध संस्थान दो करोड़ 80 लाख से तैयार हुआ और 31 जुलाई 2016 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री डॉ. महेंद्र पांडेय व कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने लोकार्पण किया था। लेकिन आज तक एक भी स्थायी पद शोध संस्थान के लिए स्वीकृत नहीं हो सका है।
पांच साल में प्रेमचंद संस्थान में एक भी शोध नहीं, बीएचयू के पास है संचालन
pramod sharma
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