डॉ राम मनोहर लोहिया अपनी जन्मभूमि पर उपेक्षा के शिकार
गिरजा शंकर गुप्ता (ब्यूरों)
अम्बेडकरनगर। डाॅ. लोहिया की जो प्रतिमा 26 अक्टूबर, 1991 को उनके अनुयायियों के बड़े संघर्षों के बाद लगी थी।
डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम पर समाजवाद का ढिंढोरा पीटने वाली समाजवादी पार्टी डॉ. लोहिया को उनकी ही जन्मस्थली पर उपेक्षा से नहीं उबार पा रही है। बात चाहें शहजादपुर चौक में लगी डॉ. लोहिया की प्रतिमा की या दोस्तपुर चौराहे पर महात्मा गांधी की प्रतिमा की हो।शहजादपुर चौक में स्थित डॉ. लोहिया की प्रतिमा बुरी तरह से अतिक्रमण की चपेट में है। यहां तो हालत यह रहती है कि चारों तरफ से ठेले होने के कारण प्रतिमा के निकट तक पहुंचना सम्भव नहीं हो पाता। यही नहीं, प्रतिमा की रोज़ाना साफ-सफाई करने वाले डॉ. लोहिया के बाल सखा रहे बन्शी नाई की मौत के बाद यंहा की साफ सफाई भी भगवान भरोसे होकर रह गयी है।डॉ लोहिया के जन्म दिन को छोड़ दिया जाय तो साल के अन्य दिनों में सपा से जुड़े लोग डॉ लोहिया से जुड़े स्थानों की तरफ देखना भी गंवारा नहीं करते।
विडंबना यह कि अब वे सरकारें अस्तित्व में ही नहीं हैं और जिस सरकार ने उनकी जगह ली है, उसकी पेशानी पर इस तथ्य से कोई बल ही नहीं पड़ता कि डाॅ. लोहिया की जन्मभूमि में उनकी यादें संजोने का फिलहाल कोई एक भी उपक्रम नहीं है. वहां करोड़ों की लागत से लोहिया की प्रतिमा के अगल-बगल डॉ राम मनोहर लोहिया खुद अतिक्रमण के गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं।शहजादपुर चौक में स्थित डॉ लोहिया की प्रतिमा बुरी तरह से अतिक्रमण की चपेट में है। यंहा तो हालत यह है कि चारों तरफ से ठेले होने के कारण प्रतिमा के निकट तक पहुंचना सम्भव नहीं हो पाता।
*क्या डॉ लोहिया की प्रतिमा कभी उपेक्षा से बाहर निकल सकेगी?*
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