जौनपुर: वह 28 जुलाई, 2005 की शाम थी। पटना से दिल्ली जा रही श्रमजंीवी एक्सप्रेस में यात्री निश्चिंत होकर सफर कर रहे थे। इसी बीच सिगरामऊ के हरपालगंज रेलवे स्टेशन के पास जनरल बोगी में तेज धमाका हुआ। इस आतंकी धमाके में 14 लोग मारे गए और 62 लोग घायल हुए थे। दिल दहला देने वाली इस घटना के 16 साल बीतने के बाद भी पीड़ित परिवारों के जख्म बरकरार हैं और उन्हें अब भी इंसाफ मिलने का इंतजार है।
विस्फोट कांड के सात आरोपितों में बांग्लादेशी आतंकवादी आलमगीर उर्फ रोनी व ओबैदुर्हमान उर्फ बाबू भाई को जौनपुर कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई गई, जिसकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है। बांग्लादेशी आरोपित हिलाल उर्फ हिलालुद्दीन व प. बंगाल के नफीकुल विश्वास की पत्रावली करीब चार साल से अंतिम बहस के लिए अटकी है। मास्टरमाइंड कंचन उर्फ शरीफ को आज तक इंटरपोल खोज ही नहीं पाई। आरोपित डा. सईद का नाम व पता ही तस्दीक नहीं हो सका। एक अन्य आरोपित याहिया को पुलिस मुठभेड़ में ढेर कर चुकी है। गत 16 जुलाई को आरोपित नफीकुल की जमानत अर्जी अपर सत्र न्यायाधीश (प्रथम) की अदालत निरस्त कर चुकी है। आतंकवादी संगठन हूजी ने बनाई थी रणनीति
अभियोजन पक्ष के अनुसार आतंकवादी संगठन हूजी से जुड़े आरोपितों हिलाल, रोनी, कंचन उर्फ शरीफ के अलावा सजायाफ्ता लश्कर के आतंकी ओबैदुर्रहमान, याहिया व डा. सईद ने धमाकों की साजिश रची थी। इन आतंकियों को हूजी कमांडर अब्दुल रउफ ने तैयार किया था और मुफ्ती हन्नान ने बम बनाने का प्रशिक्षण दिया। बांग्लादेशी आतंकी पद्मा नदी पार कर नाव से प. बंगाल के रास्ते भारत में घुसे थे। आतंकियों ने पटना के मियां टोला से विस्फोटक सामग्री व अटैची खरीदी। खुसरूपुर में याहिया व ओबैदुर्हमान ने बम बनाया। हिलाल व रोनी ने पटना स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-3 पर खड़ी श्रमजीवी एक्सप्रेस की जनरल बोगी में सीट के नीचे अटैची में बम रखकर बांध दिया और चले गए। पकड़े जाने के बाद पेशी के दौरान आतंकी हिलाल व रोनी को जीआरपी वाराणसी के कांस्टेबल श्यामजी व सुरेश ने कोर्ट में पहचाना था। आतंकी हिलाल व नफीकुल दूसरे मामले में आंध्र प्रदेश भेज दिए गए। आलमगीर उर्फ रोनी को कोर्ट ने 30 जुलाई, 2016 को फांसी की सजा सुनाई। ओबैदुर्रहमान को षड्यंत्र का दोषी पाते हुए 31 अगस्त, 2016 को मृत्युदंड दिया गया। मृतक के स्वजन व घायलों को न्याय की आस
विस्फोट के समय जनरल डिब्बे में सफर करने वाले जौनपुर जिले के मदन लाल सेठ, उनका पुत्र शिवम, गोरखनाथ निषाद, रितिक व विष्णु सेठ आदि गंभीर रूप से घायल हुए थे। मियांपुर निवासी अमरनाथ चौबे की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव की घोषणा के बाद भी मृतकों के आश्रितों को आज तक नौकरी नहीं मिली।
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