विंध्याचल में पुरानी तकनीक से बने एसटीपी से यह शैवाल बहकर वाराणसी आ रहे हैं। पिछले दिनों हुई बरसात में इनकी संख्या काफी ज्यादा थी। इसकी रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी और जिम्मेदारों पर कार्रवाई के लिए भी लिखा जाएगा। उन्होंने कहा कि जलस्तर कम होने और प्रवाह नहीं होने से शैवाल की समस्या गंभीर हो गई है। जलस्तर बढ़ने के साथ ही यह समस्या दूर हो जाएगी।गंगा नदी में हरे शैवाल की मात्रा अचानक बढ़ गई थी। घटना के बाद काशीवासियों सहित वैज्ञानिकों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ गई थीं। पिछली बार भी मिर्जापुर के पास से लोहिया नदी से ये शैवाल गंगा में आए थे। शैवालों के कारण गंगा का इकोसिस्टम पर संकट खड़ा हो गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्राथमिक जांच में भी यह बात सामने आई थी कि गंगाजल में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा निर्धारित मानकों से ज्यादा हो गई हैबीएचयू में इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉ कृपाराम ने बताया था कि जल में युट्रोफिकेशन प्रक्रिया होने से एल्गी ब्लूम (हरे शैवाल) बनते हैं। ऐसा तब होता है जब जल में न्यूट्रिएंट काफी बढ़ जाते हैं। इस कारण गैर जरूरी स्वस्थ जीवों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है। ऐसे में शैवालों को प्रकाश संश्लेषण करने का सबसे उपयुक्त वातावरण मिलता है। तब पानी में ऑक्सीजन कम होने लगता है, जिससे बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सबसे पहले प्रभावित होती है।
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