जौनपुर : पेटीएम से रुपये ट्रांजेक्शन करने के बाद यदि उपभोक्ता बैंक को ट्रांजेक्शन रद्द करने या निकलने से रोकने की जानकारी देता है तो बैंक उसका उत्तरदायी होगा। ऐसे ही एक मामले में उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष शमशाद अहमद, सदस्य मुन्नालाल व सदस्य रफिया खातून ने आइसीआइसीआइ व आइडीबीआइ बैंक के प्रबंधक को आदेश दिया है कि परिवादियों के खाते से निकाली गई धनराशि बैंक उसके खातों में जमा करे।
डाक्टर बृजेंद्र प्रताप सिंह व उनके भाई धीरेंद्र सिंह निवासी कालीकुत्ती तथा अमित कुमार सिंह निवासी उमरपुर ने आइसीआइसीआइ व आइडीबीआइ बैंक के ब्रांच मैनेजर तथा पेटीएम के सीईओ के खिलाफ परिवाद दायर किया। परिवादी ने अपना सोफा बेचने के लिए 21 अक्टूबर 2020 को एक कंपनी के माध्यम से विज्ञापन दिया। सुशील कुमार नामक व्यक्ति ने सोफा 13 हजार रुपये में खरीदने में सहमति जताई। उसने झांसा देते हुए कहा कि 13 हजार मेरे खाते में डालिए उसका दुगना मैं आपके खाते में डाल दूंगा। इससे यह निश्चित हो जाएगा कि आपका खाता सही है। डाक्टर बृजेंद्र ने 13 हजार रुपये पेटीएम के जरिए उसके खाते में डाला। बाद में सुशील ने कहा कि उसे धनराशि प्राप्त नहीं हुई। उसके झांसे में आकर कई बार धनराशि खाते में डाला, लेकिन जैसे ही फ्राड की शंका हुई उन्होंने बैंक को ट्रांजेक्शन रोकने के लिए कहा। इसी प्रकार के ट्रांजेक्शन से उनकी व अन्य शिकायतकर्ता की करीब 1 लाख 76 हजार रुपये डूब चुके थे। शिकायतकर्ताओं ने तुरंत बैंक से शिकायत करते हुए अपनी शिकायत दर्ज कराई। बैंक का कहना था कि शिकायतकर्ताओं ने स्वयं के खाते से रुपये दिए हैं इसके जिम्मेदार शिकायतकर्ता स्वयं हैं। फोरम ने आरबीआइ की गाइडलाइन का हवाला देते हुए विपक्षी बैंक को दोषी माना। विधि व्यवस्थाओं का हवाला दिया गया कि यदि किसी ने गलत ट्रांजेक्शन कर दिया है और उसने तत्काल बैंक को सूचित भी कर दिया है तो बैंक को ट्रांसफर रोक देना चाहिए। बैंक ऐसा नहीं करता तो वह उत्तरदायी होगा। फोरम ने धनराशि एक माह के अंदर शिकायतकर्ता के खाते में जमा करने का आदेश दिया। इसके अलावा शारीरिक एवं मानसिक कष्ट के लिए 10 हजार तथा वाद व्यय के लिए 5 हजार अलग से परिवादी को देने का आदेश दिया है।
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