जौनपुर : मानसून की आहट के साथ ही खरीफ की खेती ने भी गति पकड़ ली है। मक्का, उर्द, मूंग व अरहर की बोआई शुरू हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों ने मेड़ पर अरहर की बोआई की सलाह दी है। कहा कि इससे 15 से 20 फीसद उत्पादन में वृद्धि हो जाएगी।

जिला कृषि अधिकारी अमित चौबे ने कहा कि प्राय: देखा जाता है कि किसान दलहनी फसलों में खासकर अरहर में उर्वरकों का प्रयोग बहुत ही कम या न के बराबर करते हैं। अरहर की प्रजातियों का चयन के साथ प्रमाणित बीज व बीज की उचित मात्रा का ध्यान नहीं देते, जिससे अरहर का उत्पादन प्रभावित होता है। उन्होंने सलाह दिया कि अच्छी पैदावार के लिए जीवांशयुक्त बलुई या दोमट भूमि अच्छी होती है।

अरहर का बीज हर दाने के आकार पर निर्भर करता है। अगर दाना महीन है तो 12 किग्रा प्रति हेक्टेयर, यदि दाना मोटा है तो 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज डालना चाहिए। अरहर की मुख्य प्रजातियां जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त हैं उनमें बहार, नरेंद्र अरहर-1, नरेंद्र अरहर-2, एम एल-6, मालवीय चमत्कार आदि हैं। इनकी मेड़ पर बोआई कर 15 से 20 फीसद तक उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

इसके लिए पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी व लाइन से लाइन की दूरी 60 से 70 सेमी रखें। बोआई का उपयुक्त समय 15 जून से 15 जुलाई तक अवश्य कर लें। अरहर से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मुख्यता फास्फोरस युक्त उर्वरक जैसे सिगल सुपर फास्फेट 250 किग्रा प्रति हेक्टेयर या डाई अमोनियम फास्फेट 90 किग्रा प्रति हेक्टेयर खेत में उर्वरक को डालकर मेड़ बनाएं। उन्होंने कहा कि अरहर के बीज के उपचार के लिए एक किग्रा बीज के लिए चार ग्राम ट्राई कोडरमा के साथ एक ग्राम कारबाक्सिन से उपचारित करें। इसके बाद राइजोबियम कल्चर 200 ग्राम जो कि 10 किग्रा बीज के लिए पर्याप्त होता है।

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