*अयोध्या जमीन विवाद करोड़ों में जमीन बेचने वाले हरीश पाठक की पुलिस को 3 साल से तलाश।*
*हरीश पाठक तो बकरी देने की योजना में करोड़ो की ठगी का है आरोपी।*
अयोध्या अयोध्या का जमीनी विवाद में हरीश पाठक की पुलिस को 3 साल से तलाश है,
अयोध्या में जिस हरीश पाठक और कुसुम पाठक की दो करोड़ की जमीन को सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी से श्री राम मंदिर ट्रस्ट ने साढ़े अठारह करोड़ में खरीदा है, उस पर बवाल जारी है। वहीं इस डील में हरीश पाठक की भूमिका भी कई गंभीर सवाल खड़े कर रही है। बताया गया है कि हरीश पाठक एक पुराना आरोपी है जिसकी अयोध्या पुलिस को लंबे समय से तलाश है। हरीश पाठक तो बकरी देने की योजना में करोड़ो की ठगी का आरोपी रहा है। हरीश पाठक और कुसुम पाठक (पत्नी) पर कहीं और नहीं बल्कि राम की नगरी अयोध्या के कैंट थाने में ही एफआईआर दर्ज है। इतना ही नहीं हरीश पाठक, उसकी पत्नी कुसुम पाठक, बेटे विकास पाठक पर अयोध्या के साथ-साथ बाराबंकी और सिद्धार्थनगर में भी एफआईआर दर्ज हैं। बाराबंकी के मामले में हरीश पाठक का बेटा विकास पाठक जेल भी भेजा जा चुका है। आखिर कौन है हरीश पाठक? हरीश पाठक और कुसुम पाठक, यह दो नाम उत्तर प्रदेश के सियासत में राम मंदिर ट्रस्ट के जमीन विवाद के साथ लगातार चर्चा में बने हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के लोग भले ही हरीश पाठक और कुसुम पाठक को इस जमीन सौदे के बाद जान पाए हों लेकिन अयोध्या, बाराबंकी, सिद्धार्थनगर में रहने वाले सैकड़ों परिवार इसी हरीश पाठक और कुसुम पाठक की कंपनी में जमा पूंजी गंवा कर फुटपाथ पर आ गए हैं। दरअसल साल 2009 में हरीश पाठक ने अयोध्या में एक इन्वेस्टमेंट फर्म बनाई थी। फर्म का नाम था साकेत गोट फार्मिंग लिमिटेड बकरी पालन को बढ़ावा देने के नाम पर हरीश पाठक ने अपनी इस कंपनी का नाम रखा और लोगों को निवेश के लिए लुभाना शुरू किया. योजना रखी गई कि ₹5000 का एक बॉन्ड खरीदने पर 42 महीने बाद यानी साढ़े 3 साल बाद ₹8000 मिलेंगे या फिर दो बकरी दी जाएंगी. ₹5000 में दो बकरी किसी भी ग्रामीण छोटे किसान के लिए फायदे का सौदा था. हरीश पाठक ने इस कंपनी में पत्नी कुसुम पाठक, बेटे विकास पाठक, करीबी मित्र प्रताप नारायण पांडे, उनकी पत्नी माधुरी पांडे, चंद्र प्रकाश दुबे और अनंत तिवारी को शामिल किया। आरोप कैसे करता था धोखाधड़ी? साकेत गोट फार्मिंग लिमिटेड के नाम पर हरीश पाठक ने कई जिलों में बकरी पालन के सेंटर भी चालू किए. जिलो में लोगों को अपना कमीशन एजेंट भी बनाया।बाराबंकी के सुनील शुक्ला पाठक की कंपनी में 2011 से 2014 तक एजेंट थे। सुनील ने अपने साथ-साथ अपने रिश्तेदारों के करीब 40 लाख रुपए हरीश पाठक की कंपनी में लगवा दिए लेकिन जब रकम लौटाने की बारी आई तो हरीश पाठक ने उस कंपनी को ही बंद कर दिया और फरार हो गया। थक हार कर सुनील शुक्ला ने बाराबंकी के हैदर गढ़ कोतवाली में 27 अगस्त 2020 को हरीश पाठक, कुसुम पाठक, विकास पाठक समेत कंपनी के 7 लोगों पर एफआईआर दर्ज करवा दी ।बाराबंकी पुलिस ने हरीश पाठक के बेटे विकास पाठक को जनवरी 2021 में गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया। बेटे की गिरफ्तारी के बाद हरीश पाठक, सुनील शुक्ला से समझौते का दबाव बनाने लगा और फिलहाल हाई कोर्ट के दखल के बाद 40 लाख रुपए देने को मान गया. लेकिन हरीश पाठक अब तक सुनील को सिर्फ ₹7.5 लाख लौटा पाया है। समझौता खत्म होने में अभी 1 महीने का वक्त बाकी है। इससे पहले अयोध्या के कैंट कोतवाली में इसी कंपनी के जरिए धोखाधड़ी करने पर हरीश पाठक पर साल 2016 में भी एक अन्य एफआईआर दर्ज हुई थी। जिसमें पुलिस ने हरीश पाठक को 16 सिंतबर 2018 को भगोड़ा घोषित कर घर कुर्की की कार्रवाई की थी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इसी कुर्की की कार्रवाई के तहत हरीश पाठक की एक स्विफ्ट डिजायर कार आज भी अयोध्या की कैंट कोतवाली में जब्त खड़ी है।प्रशासन पर उठे गंभीर सवाल ऐसे में सवाल उठता है कि जिस हरीश पाठक के खिलाफ इतने केस दर्ज हो, जिस पर पहले से धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं और जिसे पुलिस लंबे समय से पकड़ना चाहती है, उसने राम मंदिर की जमीन में सक्रिय भूमिका कैसे निभा ली हरीश पाठक और उसकी पत्नी कुसुम पाठक राम मंदिर ट्रस्ट को करोड़ों की जमीन बेचने के सौदे में अहम किरदार कैसे बन गए। सवाल तो अयोध्या पुलिस के साथ-साथ जिला प्रशासन पर भी उठते हैं, कि जिस 2 करोड़ की जमीन को 18.5 करोड़ में बेचने का सौदा हरीश पाठक और कुसुम पाठक के साथ हुआ, तब अधिकारियों को भनक क्यों नहीं लगी। इस विवाद पर अयोध्या के एसएसपी शैलेश पांडेय कहते हैं कि कलेक्ट्रेट गेट पर जो सिपाही है या किसी की सुरक्षा में तैनात जो सिपाही है उन्हें नहीं पता होता कि किसकी पुलिस को तलाश है किसकी नही अभी मामले की जांच की जा रही है।-----**डाक्टर ए०के०श्रीवास्तव, अयोध्या ब्यूरो चीफ**
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