आगरा || बीजेपी में आजकल क्या वाकई सब कुछ समान्य हैं..? आखिर हिंदुत्व के सबसे बड़े पोस्टर बॉय योगी को हटाकर एक गुमनाम नौकरशाह को मुख्यमंत्री बनाकर क्या भाजपा यूपी जैसी हिंदुत्व की प्रयोगशाला जीत सकती है? अगर आप सब का जवाब भी यही है तो फिर पार्टी ऐसा क्यों सोच रही हैं ? तो क्या ये सभी कवायद झूठी थी? क्या वाकई सब कुछ समान्य है? लेकिन दिख तो नहीं रहा है...आगे-आगे देखिए होता हैं क्या..? 

इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए राजनीति के जानकार विकाश कुमार सिंह ने इस गंभीर मामले पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आज भाजपा और संघ के एजेंडे यानी हिंदुत्व के सबसे बड़े पोस्टर बॉय और देश के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का जन्म दिन था। देश भर से उन्हें लगातार शुभकामनाएँ मिल रही हैं। लेकिन बेहद आश्चर्य जनक बात है कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा जैसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में से किसी ने भी योगी जी को जन्मदिन की बधाई नहीं दी है।

आखिर इसके पीछे क्या कारण है?

क्या यूपी सरकार की नाकामी या कुछ और?

आप में से जो लोग भी मोदी और शाह की राजनीतिक शैली को जानते या समझते है। वे इस बात से वाक़िफ़ होने की मोदी और शाह की सबसे बड़ी मजबूती है। कमजोर और नेतृत्व विहीन विपक्ष। चाहे वह स्वभाविक विपक्ष हो या फिर पार्टी के अंदर का ही कोई कद्दावर नेता।  गुजरात में तो इन्होंने अपनी ही पार्टी को इस कदर नेता विहीन कर दिया था कि आज तक कोई मुख्यमंत्री लायक नेतृत्व इन्हें वहाँ नहीं मिल पा रहा है। देश का भी कमोबेश आज वही हाल है, विपक्ष तो दूर भाजपा में भी दूर-दूर तक कोई प्रधानमंत्री बनने लायक नेता नहीं दिख रहा है। तो क्या योगी जी इस कड़ी में एक मजबूत नाम बनकर उभडे है? जवाब है हाँ, संघ और भाजपा के उग्र हिंदुत्ववादी एजेंडे में योगी जी आज मोदी से भी बड़े चेहरे बन कर उभडे है।

यूपी ही नहीं देश में कहीं भी किसी भी प्रदेश के चुनाव में उनकी मांग भाजपा के किसी भी नेता से ज्यादा हो रही है। यही मोदी और शाह की सबसे बड़ी चिंता का विषय है। और फिर इन लोगों ने इनका पर करतर्ने के लिए सबसे पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना ही मुनासिब समझा। इसके लिए विसात भी बिछाई, मगर सफल नहीं हो पाए। अब देखना यह है कि मोदी जी और शाह की राह के सबसे बड़े रोड़े कब तक उनके सामने टिक पाते हैं। अगर अगले साल चुनाव तक बच भी जाते है तो क्या चुनाव के बाद बच पाएंगे? पता नहीं..ये राजनीति है, इसमें किसका उट कब किस करवट बैठेगा कोई नहीं जनता, लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा में आल इज वेल तो नहीं है। 

आगे-आगे देखिए होता हैं क्या..?

क्या यह समान्य सी बात है या महज एक संयोग है? या कुछ और अभी हाल ही में देश में एक हलचल थी कि भाजपा और संघ यूपी के मुख्यमंत्री योगी जी को बदलने वाली है। उत्तर प्रदेश में कुछ बड़ा होने वाला है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष, संघ में नम्बर 2 होसबोले जी, यूपी प्रभारी राधा मोहन सिंह ने लगतार 3-4 दिनों तक यूपी में मैराथन बैठक की।अटकलों को पूरी हवा दी गई की पार्टी नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रही है। यहाँ तक की एक पूर्व नौकरशाह और मोदी जी के करीबी अरविंद शर्मा का नाम भी जोर शोर से खबरों में चलने लगा। जो हाल ही में समय से पूर्व अवकाश लिए है और भाजपा ने उन्हें यूपी विधान परिषद का सदस्य भी मनोनीत किया है। लेकिन आचानक सभी अटकलों पर विराम लग जाता है,और कहा जाता है कि पार्टी ऐसी कोई परिवर्तन नहीं करने जा रही है। नाही सरकार और ना संगठन के स्तर पर ऐसी कोई बदलाव होने जा रही है। 

तो क्या ये सभी कवायद झूठी थी?

क्या वाकई सब कुछ समान्य है?

लेकिन दिख तो नहीं रहा है...जब से मोदी जी और शाह की जोड़ी केंद्र में आई है। भाजपा का DNA ही बदल गया है। अब भाजपा में भी आलाकमान कल्चर आ गया है। किसे टिकट मिलेगा, कौन कहाँ से चुनाव लड़ेगा, कौन कहाँ मंत्री बनेगा, किस प्रदेश में कौन मुख्यमंत्री बनेगा, कौन प्रदेश अध्यक्ष बनेगा, देश और प्रदेश में कौन संगठन में रहेगा, या यू कहें तो पन्ना प्रमुख से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक, संगठन से सरकार तक सभी नियुक्तिया भाजपा संसदीय बोर्ड नहीं बल्कि ये दोनों की जोड़ी तय करती हैं। जब जिस प्रदेश अध्यक्ष को चाहा हटा दिया। जिस मुख्यमंत्री को चाहा उठा के फेक दिया। यह सब अब बहुत समान्य सी बात हो गई है। जो कभी भाजपा का DNA नहीं हुआ करती थी। और इसे लेकर पार्टी में भी किसी को हिम्मत नहीं है सवाल खड़े करने का, हा एक दो मौकों पर राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इनके निर्णयों को न मानकर चौका जरूर दिया था। और बीच का कोई रास्ता निकालने पर इन्हें मजबूर जरूर कर दिया था। पार्टी में दूसरा कोई नेता सर उठाने की हिमाकत कभी नहीं किया। 

अगले वर्ष कुछ प्रदेशों में चुनाव होने वाले है। जिसमें भाजपा शाषित यूपी, गुजरात, उतराखंड और मणिपुर जैसे प्रदेश शामिल हैं। कोरोना से उत्पन्न हालत इन सरकारों के भविष्य के लिए अच्छी नहीं दिख रही है। इसी कारण पार्टी कई प्रदेशों में नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रही है। जिस क्रम में सबसे पहले उतराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उठा कर फेक दिया गया और यूपी में विकल्प के लिए पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को विधान परिषद भेज कर स्टैंड बाई मोड पर रखा गया था। कोरोना की दूसरी लहर में हुई अप्रत्याशित क्षति और मृत्यु, गंगा किनारे की लाशों को और गंगा में बह रही लाशों को भाजपा समर्थित मीडिया के द्वारा ही सबसे ज्यादा प्रचारित प्रसारित किया गया। इसी को आधार बना कर योगी जी को पलटने की कवायद शुरू की गई। अफसोस मोदी शाह को यहाँ सफलता नहीं मिल पाई। अगर असफलता की बात की जाए तो सबसे असफल तो गुजरात की सरकार है। मगर वहाँ नेतृत्व परिवर्तन क्यों नहीं किया जा रहा है? 

आखिर हिंदुत्व के सबसे बड़े पोस्टर बॉय योगी को हटाकर एक गुमनाम नौकरशाह को मुख्यमंत्री बनाकर क्या भाजपा यूपी जैसी हिंदुत्व की प्रयोगशाला जीत सकती है? अगर आप सब का जवाब भी नहीं ही है तो फिर पार्टी ऐसा क्यों सोच रही थी?

आखिर इसके पीछे क्या कारण है?

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने