संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने दूरभाष पर बातचीत में कहा कि विश्वविद्यालय से जो पाया है, अब उसे लौटाने का वक्त है। मूल रूप से कुशीनगर के निवासी प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि प्रारंभिक शिक्षा के बाद वह काशी आ गए थे।वर्ष 1986 में संस्कृत विवि में दाखिला लिया और उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1993 में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में पहली नियुक्ति मिली। इसके बाद जम्मू स्थित केंद्रीय संस्कृत संस्थान में अनुसंधान सहायक के रूप में सेवाएं दीं। प्रो. विद्यानिवास मिश्र के कुलपति काल में वह संपूर्णानंद विवि में भी अनुसंधान सहायक रहे। 2001 में लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली में रीडर के पद पर सेवा शुरू की। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि 2009 में संपूर्णानंद विवि से प्राइवेट परीक्षार्थी के तौर पर शंकर वेदांत में दोबारा आचार्य की परीक्षा दी। इस वर्ष उन्हें सात मेडल मिले थे। 2003 में राष्ट्रपति पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इसके अलावा उन्हें शंकर वेदांत और पाणिनी शुक्ल सम्मान भी मिले हैं।
प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि पिता भीम त्रिपाठी सामान्य किसान रहे मगर शिक्षा के लिए उन्होंने हमेशा बच्चों को प्रेरित किया। प्रो. त्रिपाठी अब तक 30 से अधिक पुस्तकों का लेखन और संपादन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि काशी और संपूर्णानंद संस्कृत विवि उनके लिए अपरिचित नहीं हैं। संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रचार प्रसार के साथ ही विवि में शिक्षण का स्तर उठाना और यहां छात्रहितों की रक्षा करना उनकी प्राथमिकता होगी।
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