निर्जला एकादशी के दिन जल कलश का दान करने वाले को पुरे साल भर की एकादशियो का फल मिलता हैं : समाजसेविका नोनिता खुराना

आगरा,संजय साग़र। हमारे हिन्दू धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है। निर्जला यानी यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। यानी निर्जला एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन बताया गया है। जो भी व्यक्ति सालभर एकादशी का व्रत नहीं रख पाते है उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। 

इस महत्वपूर्ण विचार को आगे बढ़ाते हुए आत्मनिर्भर एक प्रयास संस्था के अध्यक्ष एवम वरिष्ठ समाजसेवी राजेश खुराना ने बताया कि हमारे ग्रंथ व मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जैसा की इस एकादशी के नाम से ही पता चल रहा है निर्जला- जिसका मतलब होता है जल का सेवन न करना, लेकिन इसके बावजूद भी आप इस एकादशी के दिन जल का सेवन केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुँह में डालकर कर सकते है। इस एकादशी पर सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक जल का त्याग करना चाहिए। निर्जला एकादशी में दान की बड़ी महिमा बताई गयी है। इस एकादशी के दिन अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी और पंखी इत्यादि का दान करना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण इस दिन जल कलश का दान करने वाले को पुरे साल भर की एकादशियो का फल मिलता है। गर्मी का महीना होने के कारण इस व्रत में गर्मी से बचाव वाली चीजों का दान विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। अगर आप इस दिन व्रत रख रहें है तो आपको इस दिन अन्य एकादशियों व्रतों की तरह खान पान का ध्यान रखना चाहिए। निर्जला एकादशी के व्रत वाले दिन मीठा पान नहीं खाना चाहिए क्योकि भगवान विष्णु को भी मीठा पान चढ़ाया जाता है। निर्जला एकादशी के दिन जल का सेवन ना करें। एकादशी के दिन जो लोग व्रत नहीं करते हैं उन्‍हें भी चावल नहीं खाने चाइये यह व्रत सम्पूर्ण भारत में विशेषकर उत्तर भारत में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से आयु की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। निर्जला एकादशी के दिन भक्तगण सुबह स्नान आदि करके भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन भक्ति भाव से भगवान का भजन-कीर्तन किया जाता है और कथा सुनी जाती है। भक्तगण अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करते हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उपवास समाप्त करते हैं। पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अलावा अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीएं। दिनभर कम बोलें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें। दिनभर न सोएं। ब्रह्मचर्य का पालन करें। झूठ न बोलें, गुस्सा और विवाद न करें।

इस संदर्भ में आत्मनिर्भर एक प्रयास संस्था की फाउंडर एवं समाजसेविका नोनिता खुराना ने बताया कि पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति एकादशी करता रहता है। वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उसके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है। इस एकादशी व्रत को करने के अनेकों फायदे हैं- व्यक्ति निरोगी रहता है। राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है। पापों का नाश होता है। संकटों से मुक्ति मिलती है। सर्वकार्य सिद्ध होते हैं। सौभाग्य प्राप्त होता है। मोक्ष मिलता है। विवाह बाधा समाप्त होती है। धन और समृद्धि आती है। शांति मिलती है। मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है। हर प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं। खुशियां मिलती हैं। सिद्धि प्राप्त होती है। उपद्रव शांत होते हैं। दरिद्रता दूर होती है। खोया हुआ सबकुछ फिर से प्राप्त हो जाता है। पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है। भाग्य जाग्रत होता है। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। पुत्र प्राप्ति होती है। शत्रुओं का नाश होता है। सभी रोगों का नाश होता है। कीर्ति और प्रसिद्धि प्राप्त होती है। वाजपेय और अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है और हर कार्य में सफलता मिलती है। हिन्दू पंचाग व मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानी निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। व्रत का विधान है। हर साल 24 एकादशी आती है, जिसमें निर्जला एकादशी का अपना ही एक अलग महत्त्व है। निर्जला एकादशी का व्रत कोई भी व्यक्ति कर सकता है अब चाहे उसमे बच्चे हो, या कोई पुरुष या महिला और शादीशुदा हो या नहीं, सभी इस एकादशी का व्रत रख सकते है, बस ध्यान रहे की इस व्रत के नियमों का पालन जरूर होना चाहिए। एकादशी पर दान करने का अलग ही अपना महत्त्व है। जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखता है उसे सालभर की सभी एकादशियों का फल मिलता है और साथ ही साथ दुःख और कष्टों से मुक्ति मिलती है एवं वह व्यक्ति बुद्विमान व लोकप्रिय होता है। पारण से पूर्व स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा करें। उसके बाद जरूरतमंदों को दान दें और फिर भोजन ग्रहण करके व्रत को पूरा करें। जो भी व्यक्ति सालभर एकादशी का व्रत नहीं रख पाते है उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। इस एकादशी का व्रत रखने से सभी एकादशियो का महत्त्व मिलता है।

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने