‘मर्दानी’ के बलिदान दिवस पर विशेष शब्दांजली-आगरा। जब देश मुस्लिम आक्रांताओं के आतंक और दमन के इतिहास का साक्षी और भुक्तभोगी रहा हो ,उस वक्त जहां अनगिनत मातृशक्ति अपना धर्म मान सवम्मान बचाने के लिए जौहर कर चुकी हों, ऐसे इतिहास को आत्मसात न कर एक अमर मर्दानी का देश दुनिया के सामने आदर्श प्रस्तुत करना बेमिशाल और बेजोड़ व्यक्तित्व स्थापित किया जाना, महान मातृशक्ति ही नही पुसरूष समाज के लिए भी आदर्श प्रस्तुत कर गया ऐसा व्यक्तित्व था रानी लक्ष्मीबाई का । शास्त्र व इतिहास के विद्वानो ने हमेशा कहा है जिन महापुरुषों और महान नायिकाओं का हृदय संस्कार और वीरोचित भाव से भरा होता है, वह एक ऐसे आदर्श चरित्र को जीता है, जो समाज के लिए प्रेरणा बनता है। और मर्दानी के रूप में इतिहास में आदर्श स्थापित करता है । डॉ उमेश शर्मा ने बताया कि क्योंकि ऐसे व्यक्तित्व अपने उद्देश्य और सम्मान के लिए सदैव आत्मविश्वासी, कर्तव्यपरायण, स्वाभिमानी और धर्मनिष्ठ होते है, अडिंग होते हैं जो कि उनको महान बनाते हैं, ऐसी ही थीं विप्र पुत्री महारानी लक्ष्मीबाई। शायद देश में महिला सशक्तिकरण की बात रानी लक्ष्मीबाई के आदर्श को ही देखकर स्थापित हुई हो , जो कि वीरता संस्कार और शौर्य का का बेजोड़ आदर्श है। देश में महिलाओं के सशक्तिकरण की बात आते ही महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है, रानी लक्ष्मीबाई महान नाम होने के साथ साथ एक आदर्श हैं और एक ऐसा आदर्श जो सटीक है उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं सोचती है कि वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती। जो महिलाएं खुद को बहादुर मानती है, वो देश और समाज को दिशा देकर आदर्श प्रस्तुत करें और जो अपने को कमजोर मानती है वो प्रेरणा लेकर एक आदर्श व्यक्तित्व प्रस्तुत करने का प्रयास करें ,अवश्य ही महिलाओं के सशक्तिकरण का विषय सार्थक होगा । सभी महिलाएं रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस को उपरोक्त कार्य कर सार्थक बना सकती हैं, यही सच्ची श्रद्धांजलि ऐसे महान सच्ची राष्ट्रभक्त महान नायिका को होगी । आज के समय को धन में रखते हुये डॉ उमेश शर्मा ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई के व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष से भी प्रेरणा ली जा सकती है, बचपन कठिन हो,युवावस्था में अथाह संघर्ष और जोखिम पूर्ण माहौल हो , तब अपने आपको सत्पथ पर अडिंग रखना , संस्कारों देश को बचाए रखना चुनौतीपूर्ण था , लेकिन कर दिखाया यह रानी को एक आदर्श के रूप में ही तो स्थापित करता है। आज के परिदृश्य के अनुसार अगर हम चिंतन - मनन करें तो बेटियों को सुरक्शित रखने के लिए आत्मरक्षा के गुर सिखाना केवल औपचारिकता न हो , बल्कि विप्र पुत्री रानी को आदर्श माने कि उन्होने अश्वारोहण, किलाभंजन और शस्त्र-संधान में निपुणता हासिल की थी। इतिहास कहता है कि महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी किले के अंदर ही महिला-सेना खड़ी कर ली थी, जिसका संचालन वह स्वयं मर्दानी पोशाक पहनकर करती थीं. यही सच्ची महिला सशक्तिकरण कि प्रथम पहल थी , उनके पति राजा गंगाधर राव यह सब देखकर प्रसन्न रहते थे। जब रानी पर 3 माह के पुत्र की मृत्यु औरउसके कुछ दिन बाद राजा की मृत्यु जैसी मुसीबतों का पहाड़ टूटा तो दुश्मनों ने मानवीयता और स्माजिकता कि हदें पर कर सत्ता लोलुपता से भरे अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीति के चलते झांसी पर चढ़ाई कर दी. रानी ने तोपों से युद्ध करने की रणनीति बनाते हुए कड़कबिजली, घनगर्जन, भवानीशंकर आदि तोपों को किले पर अपने विश्वासपात्र तोपची के नेतृत्व में लगा दिया, यह मनु से मर्दानी बनाने वाला रानी के जीवन का मार्ग था। 14 मार्च, 1857 से आठ दिन तक तोपें किले से आग उगलती रहीं। अंग्रेज सेनापति ह्यूरोज लक्ष्मीबाई की किलेबंदी देखकर दंग रह गया। रानी रणचंडी का साक्षात रूप रखे शक्तिस्वरूपा की तरह पीठ पर दत्तक पुत्र दामोदर राव को बांधे भयंकर युद्ध करती रहीं. कैप्टन वाकर ने उनका पीछा किया और उन्हें घायल कर दिया। सोनरेखा नाले को रानी का घोड़ा पार नहीं कर सका, क्योंकि कायर दुश्मन सामने प्रहार करने कि हिम्मत नही रखता था, इसलिए एक सैनिक ने पीछे से रानी पर तलवार से ऐसा जोरदार प्रहार किया कि उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और आंख बाहर निकल आई। घायल होते हुए भी शेरनी ने उस अंग्रेज सैनिक को मौत के घाट उतार दिया, ऐसा साहस और हिम्मत शायद ही किसी में हो,और वो शक्ति का रूप, जिसने रंणभेरी बजते ही अपनी नंगी तलवार से युद्ध क्षेत्र में चंडीरूप धर दुश्मन का संहार किया था, फिर अपने प्राण त्याग पंचतत्व में विलीन होकर इस धरा को धन्य कर गयी । इतिहास बताता है कि वीरांगना लक्ष्मीबाई के मन में अंग्रेजों के प्रति किस कदर घृणा थी, वह इस बात से पता चल जाता है कि जब रानी का अंतिम समय आया, तब ग्वालियर की भूमि पर स्थित गंगादास की बड़ी शाला में रानी ने संतों से कहा कि कुछ ऐसा करो कि मेरा शरीर अंग्रेज न छू पाएं। इसके बाद रानी स्वर्ग सिधार गईं और बड़ी शाला में स्थित एक झोंपड़ी को चिता का रुप देकर रानी का अंतिम संस्कार कर दिया और अंग्रेज देखते ही रह गए। इतिहासकार कहते हैं कि इससे पूर्व रानी के समर्थन में बड़ी शाला के ब्राह्मण संतों ने अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया, जिसमें 745 संतों का बलिदान भी हुआ, पूरी तरह सैनिकों की भांति अंग्रेजों से युद्ध करने वाले संतों ने रानी को दिये वचन और उनके विश्वास को जीवंत रखने हेतु अपना जीवन न्यौछावर कर , रानी के शरीर की मरते दम तक रक्षा की। दिन 18 जून, 1857 को भले ही हम किसी भी दिवस के रूप में औपचारिक रूप से मना लें, लेकिन जब तक महिलाओ का सम्मान और उनको सुरक्शित माहौल न दे सकें तो ऐसे आदर्श मातृशक्ति को समाज की सच्ची श्रद्धांजलि केवल औपचारिकता भर मात्र ही होगी। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने मनु काल में की बाल्यावस्था में ही सिद्ध कर दिया कि वह न सिर्फ बेहतरीन सेनापति हैं बल्कि कुशल प्रशासक भी हैं। वह महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने की भी पक्षधर थीं। उन्होंने अपनी सेना में महिलाओं की भर्ती की थी। आज देश के कर्णाधारों, समाज के अगुआओं, हमे, आपको सभी को सोचना होगा कि कुछ लोग जो खुद को महिला सशक्तिकरण का अगुआ बताते हैं वह भी महिलाओं को सेना आदि में भेजने में या तो हिओचकते है ,या विरुद्ध हैं लेकिन ऐसे सब के लिए रानी लक्ष्मीबाई एक उदाहरण हैं कि अगर महिलाएं चाहें तो शशक्तिकरण व सुरक्शित रहने में अग्रणी भूमिका निभाएँगी ,कोई भी मजिल हासिल कर सकेंगी । देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य कि धनी विप्र वंश को धन्य करने वाली , देश और समाज के लिए आदर्श स्थापित कर जीवंत उदाहरण बनाने वाली अमर रानी लक्ष्मीबाई को देश और समाज कि तरहफ से शत शत नमन । आज जब 21 वीं सदी में हम 19 वीं सदी की एक महिला की बात कर रहे हैं उन्हें याद कर रहे हैं उनके बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं तो मेरा मानना है कि यह सिर्फ एक रस्म अदायगी नहीं होनी चाहिए। केवल एक कार्यक्रम नहीं होना चाहिए बल्कि एक अवसर होना चाहिए। ऐसा अवसर जिससे हम कुछ सीख सकें, कुछ धरण कर सकें कुछ संकार आगे वाली पीढ़ी को दे सकें । रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से सबसे महत्वपूर्ण और व्यवहारिक शिक्षा जो हमें मिलती है वो ये कि, अश्वारोहण, शौर्य हिम्मत जज्बा और निश्चय ,शस्त्र और शास्त्र विद्या, तार्किक बुद्धि, युद्ध कौशल, और ज्ञान ये सब किसी औपचारिक शिक्षा की मोहताज नहीं है। रानी लक्ष्मीबाई ने कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की थी लेकिन उनकी युद्ध कौशल और सूझ बूझ ने ब्रिटिश साम्राज्य को भी आश्चर्य में डाल दिया था। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना” उन्होंने अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाकर न्याय के लिए लड़कर गीता का ज्ञान चरितार्थ करके दिखाया। शायद इसलिए वो आज भी हमारे बीच जीवित हैं सिनेमा के जरिये,किस्सों में कहानियों में लोक गीतों में कविताओं में उनके नाम पर यूनिवर्सिटी, कॉलेज, होस्टेल्स जेलों की महिला बैरक के नाम या कोई प्रशासनिक कक्ष का नामकरण करके उनके पुतले बनाकर औपचारिकता करलें लेकिन इतना ही उपर्युक्त नही है, सच्चे प्रयास करो, उनका थोड़ा सा अंश हमारे भीतर भी जीवित हो उठे, शौर्य व संस्कारों का कोई अंकुरण हो जाये जिससे समाज और देश की रक्षा हो सके, यही एचएम सबकी तरफ से अमर मर्दानी को सच्ची श्रद्धांजली होगी।
आगरा: खूब लड़ी मर्दानी.. ही देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मातृशक्ति की वीरता और शौर्य की बेमिसाल अमर कहानी है- डॉ. उमेश शर्मा. राजकुमार गुप्ता
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