ऑक्सीजन कंसंट्रेटर का कोरोना रोगी के परिजनों पर खतरनाक असर हो रहा है। इसका दुष्प्रभाव आगे चलकर लो ऑक्सीजन से होने वाली हृदय, फेफड़े और खून संबंधी बीमारियों के रूप में होगा।आईआईटी बीएचयू के सिरामिक इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं रसायन विज्ञानी डॉ. प्रीतम सिंह ने बताया कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर हवा में मौजूद ऑक्सीजन को सोख कर एक तरफ से अधिक मात्रा में ऑक्सीजन निकालता है, लेकिन ठीक उसी समय उसमें लगी दूसरी पाइप से नाइट्रोजन, कार्बन और कार्बन मोनोऑक्साइउ सहित कई अन्य हानिकारक गैस भी निकलती हैं। इससे एक घर में दो वातावरण का निर्माण हो रहा है। ऐसे में घर में रहने वाले जो स्वस्थ लोग के फेफड़ों पर पर्याप्त ऑक्सीजन पाने के लिए अधिक जोर पड़ रहा है। मानक के अनुरुप ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के दूसरे हिस्से से जिन हानिकारक गैसों का उत्सर्जन हो रहा है उसे कम से कम पांच सौ मीटर ऊपर निकालने की व्यवस्था हो लेकिन आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की एक्जाटिंग पावर कम होने के कारण वह इतनी ऊंचाई तक गैसों को पंप कर पाने में अक्षम है। इस दृष्टि से दोहरा खतरा उत्पन्न हो रहा है। यदि कमरे का वेंटिलेशन सही नहीं है तो कोरोना रोगी ऑक्सीजन के साथ ही साथ खतरनाक गैसें भी बार-बार ग्रहण कर रहा है। इससे उसके फेफड़े पर दोहरा दबाव बन रहा है। यदि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर से निकलने वाली गैस खिड़की के जरिए घर से बाहर भी निकाली जा रही है तो वह घर के बाहर के वातावरण पर अपना दुष्प्रभाव छोड़ेगी।
डबल मास्क से कहीं बेहतर है गमछे का उपयोग
डॉ. प्रीतम सिंह ने बताया कि हाल के दिनों में किए गए अध्ययन से यह भी साफ हो गया है कि डबल मास्क का उपयोग भी खतरे की वजह बन रहा है। डबल मास्क लगाने से कहीं बेहतर गमछे का उपयोग करना है। अध्यन में स्पष्ट हुआ है कि जो लोग डबल मास्क लगा रहे थे उनके हृदय और फेफड़े पर ज्यादा जोर पड़ा जिसके कारण उनमें कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ गया। वहीं गमछे का उपयोग करने वाले आम लोग खुले में घूमते रहने के बाद भी कोरोना से संक्रमित नहीं हुए।
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