बसपा के दो दिग्गज नेताओं के निकाले जाने से राजनीतिक हलचल बढी़

      संवाददाता गिरजा शंकर गुप्ता 
अंबेडकरनगर। बसपा विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा व पूर्व राष्ट्रीय महासचिव रामअचल राजभर को बसपा से निकाले जाने की खबर ने गुरुवार को हड़कंप मचा दिया। राजनीतिक हल्कों से लेकर आम नागरिकों तथा अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच यह खबर बड़ी चर्चा का सबब बनी रही।
पूर्व मंत्री लालजी को तो पार्टी से निकाले जाने की सुगबुगाहट उनकी पत्नी द्वारा टिकट मिलने के बाद भी बसपा से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद शुरू हो गई थी। लेकिन पूर्व मंत्री रामअचल का निकाला जाना चौंकाने वाला रहा। एक साथ दो वरिष्ठ नेताओं के निकाले जाने को लेकर बसपा के ज्यादातर कार्यकर्ता स्तब्ध हैं।
कटेहरी विधायक तथा बसपा विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा तथा अकबरपुर विधायक रामअचल राजभर को पार्टी से निकाले जाने की खबर ने गुरुवार दोपहर बाद सभी हल्कों में खलबली मचा दी। बसपा प्रमुख मायावती द्वारा लिए गए इस निर्णय के बाद चारों तरफ तरह तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाला अकबरपुर विधायक पूर्व मंत्री रामअचल राजभर का निकाला जाना रहा। वे पांच बार अकबरपुर से विधायक चुने गए। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष बने तो मायावती ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव का दर्जा भी प्रदान किया था। उत्तराखंड समेत कई प्रदेशों के वे कोआर्डिनेटर भी बनाए गए। उन्हें संगठन का शिल्पकार भी कहा जाता था।
मायावती ने उन्हें अपने प्रत्येक मंत्रिमंडल में शामिल किया। बसपा में उनकी अच्छी खासी पकड़ थी जो बीते कुछ समय से यह पकड़ कमजोर पड़ गई थी। इस बीच आरोप है कि बीते पंचायत चुनाव में उन्होंने अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र में जिला पंचायत सदस्य की कई सीटों पर बसपा के अधिकृत प्रत्याशियों के विरुद्घ अपने समर्थकों को मैदान में उतारा।

इससे बसपा को अपेक्षा के अनुरूप जीत नहीं मिल पाई। इसी आरोप के चलते रामअचल को बसपा से निकाल दिया गया। हालांकि यह आरोप आम कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतर रहा। कारण यह कि रामअचल जैसे वरिष्ठ बसपा नेता पर सिर्फ इतने मामूली आरोपों के चलते कार्रवाई हो जाएगी, इसका अंदाजा ज्यादातर कार्यकर्ताओं को नहीं था।
उधर कटेहरी विधायक तथा बसपा विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा को पार्टी से निकाले जाने को लेकर सुगबुगाहट पहले से चली आ रही थी। ऐसा इसलिए क्योंकि लालजी की पत्नी शोभावती ने बसपा का टिकट मिलने के बावजूद जिपं सदस्य का चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था।
बसपा के प्रत्येक शासन में मंत्री रहे लालजी वर्मा की पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष की प्रबल दावेदार थीं। उनके चुनाव लड़ने से इंकार किए जाने को बसपा नेतृत्व के निर्णय को चुनौती माना गया। तभी से लालजी वर्मा पर कार्रवाई तय मानी जा रही थी। इसकी उम्मीद तब और बढ़ गई जब लालजी वर्मा के बेहद करीबी पूर्व जिपं सदस्य साधू वर्मा ने बसपा का टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गए।
बीते कुछ दिनों से वे भाजपा खेमे में पहुंच गए और बीजेपी से ही जिला पंचायत अध्यक्ष पद का टिकट मांगने लगे। यह जानकारी भी बसपा नेतृत्व तक पहुंचाई गई। बताया गया कि लालजी वर्मा के इशारे पर ही साधू वर्मा बीजेपी से टिकट मांग रहे हैं। उन पर यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने भी कई सीटों पर बसपा के अधिकृत प्रत्याशियों के विरुद्घ अपने समर्थकों को मैदान में उतारा। इन्हीं सब आरोपों को देखते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने दोनों नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

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