चंद ऐसे भी विरलय होते हैं जो समस्याओं का 'सागर' पार करने के बाद बन जाते हैं ‘नज़ीर’
आगरा। खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित करने की जद्दोजहद में दिक्कतों से जूझते हुए कुछ लोग टूटकर कमजोर हो जाते हैं। वहीं, चंद ऐसे भी विरलय होते हैं जो समस्याओं का सागर पार करने के बाद ‘नज़ीर’ कहलाते हैं। एक समय में ब्रह्मदत्त बीटेक की डिग्री हासिल करने के बाद मल्टी नेशनल कम्पनी में अपनी सेवाएं देते थे और मोटी तनख्वाह वसूलते थे। मगर अब ब्रह्मदत्त पत्नियों के सताये पुरुषों को कानूनी मदद देते हैं। हालांकि, वे अब उतनी मजबूत आर्थिक परिस्थितियों में नहीं दिखते हैं,लेकिन उनके दरवाजे हमेशा ही पत्नी पीड़िताओं और पुलिस के सताये लोगों के लिए खुले रहते हैं। वे न उन्हें विधिक सलाह ही दे रहे हैं बल्कि वे उन्हें मजबूर हो चुकी जिंदगी में भी सीना ठोंककर जीने का माद्दा मुहैया करा रहे हैं।

ब्रह्मदत्त की कहानी भी वैसी ही है जैसी किसी फिल्मी हीरो की होती है। वह पहले इंजीनियर थे और अब कानून की किताबें बांचने लगे हैं। बात ज़रा पुरानी हैं खैर, हुआ कुछ यूं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में स्थित अछल्दा कस्बे‍ में रहने वाले बीटेक डिग्रीधारी ब्रह्मदत्त ऐसे ही नज़ीर हैं जो अब पत्नी पीड़ितों की छांव बन चुके हैं। यूपी की राजधानी लखनऊ से राष्‍ट्रीय राजधानी नई दिल्ली जाते समय रास्‍ते में पड़ने वाले इटावा रेलवे स्टेशन से महज दो स्टेशन पूर्व ही अछल्दा रेलवे स्टेशन पड़ता है। मगर इस आम से दिखते कस्बे में एक खास शख्सियत रहती है। उनका नाम ब्रह्मदत्त है। उन्होंने अपने स्वर्गीय पिता की मर्जी और अपनी इच्छाशक्ति के दम पर बीटेक करने के बाद आदर्श तरीके से विवाह किया। उनको उनकी पत्नी ने दो बेटे बतौर तोहफे भी दिए लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था। वह अपनी पिता की असमय मृत्यु के बाद ही ससुराल के निशाने पर आ गए। बकौल ब्रह्मदत्त उनके ससुर ने अपनी सनक में बेटी से उन पर दहेज आदि की प्रताड़ना का केस करवा दिया। उन्होंने बताया कि वे कुछ समझ पाते इसके पहले ही उनके ससुर ने उनके हल्के का थाना खरीद लिया। उनके घर पर पुलिस का दबाव बढ़ता गया। वे परेशान हो गए। यहां तक की बहन की शादी के दिन ही बहनोई की बारात की आवभगत में जुटे ब्रह्मदत्त को पुलिस का सामना करना पड़ा। बकौल ब्रह्मदत्त नौबत यहां तक आ गई कि वह आम और खुशहाल जिंदगी को भूलकर एक शातिर अपराधी की तरह रहने को मजबूर हो गए। वे बेबस हो गए। इंजीनियरिंग की पढ़ाई में सीखे गुर उनकी जिंदगी से काफूर हो गए। वे अब कानून की किताबें बांचने लगे। वे खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित करने की जद्दोजहद करने लगे। अब वे नौकरी-पेशे को छोड़ वकीलों की सोहबत में रहने लगे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों को बेबुनियाद साबित करवाने की कोशिश की,अंतत: वे अपने परिवार को बचाने में सफल भी हो गए। हालांकि वे तारीखों का सामना आज भी कर रहे हैं लेकिन अब वे आरोपों के चलते खुद को शर्मिंदा महसूस नहीं करते। स्थानीय लोगों ने भी ब्रह्मदत्त का लोहा मान लिया है। वहीं, अपने इस कानूनी उठा-पटक के सफर को पार करते हुए ब्रह्मदत्त को लगा कि ऐसे ही न जाने कितने पतियों को अपनी बेगुनाही साबित करने की जद्दोजहद हर रोज हर पल करनी पड़ रही है। वे वकीलों के बनाए चक्रव्यूह का शिकार होकर हर पेशी पर अपनी गाढ़ी कमाई में सेंध लगाने को मजबूर हो रहे हैं। ऐसे ही विचारों के बाद उन्होंने तय किया कि अब वे इंजीनियरिंग का शानदार करियर छोड़कर ऐसे पीड़ितों के लिए विधिक सलाह की छांव बनेंगे. वे उन्हें अपनी तरह सभी को समस्याओं में जूझते हुए टूटते हुए नहीं देखना चाहते थे। इसी सोच के साथ उन्होंने लोगों की मदद करने का बीड़ा उठाया। इस बीड़े में धीरे-धीरे पुलिस के सताये आमजन भी राहत पाने के लिए आने लगे। वे सभी में कानूनी मदद पाने के लिए आम आदमी के कानूनी अधिकारों की अलख जगाने लगे। देखते ही देखते वे क्षेत्र में मशहूर हो गए। सोशल मीडिया पर भी उनके चहेतों की संख्या बढ़ने लगी। हजारों की संख्या में लोग उन्हें सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं. हालांकि, वे अब भी ऐसे पीड़ितों की मदद नहीं करते जिन्होंने अपनी पत्नियों पर अनाचार तरह से अत्याचार किया हो।

…तो अब यदि आप कभी अछल्दा रेलवे स्टेशन से गुजर रहे हों तो यह याद रखिएगा कि रेलवे स्टेशन के ठीक बाहर और सरकारी बस स्टैंड के करीब व एक कई बरस पहले बने मंदिर के ठीक सामने चप्पल पहले एक शख्स हाथ में जलती सिगरेट थामे और बेंच पर चाय का कुल्लहड़ रखकर किसी मजबूर की सरकारी एप्लीकेशन लिख रहा होगा। वह दीवाना कोई और नहीं स्थानीय लोगों का ‘हीरो’ ब्रह्मदत्त है।

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