काशी के लाल ललित उपाध्याय को भी करना पड़ा। वह बड़े भाई की शादी से महज चार दिन पहले इंडिया कैंप के लिए बंगलूरू चले गए और शादी में शामिल नहीं हो पाए। कॉमनवेल्थ, एशियन, वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारतीय हॉकी टीम की तरफ से जलवा बिखेरने वाले ललित के इसी जुनून की बदौलत कई बार रेलवे और बैंकों से नौकरी के ऑफर भी आए। लेकिन ओलंपिक का सपना संजोए ललित ने नौकरी करने से इनकार कर दिया।फिलहाल ललित बंगलूरू में ओलंपिक की तैयारी में जुटे हैं। बनारस में उनके गांव शिवुपर क्षेत्र के भगतपुर में उनकी सफलता को लिए मन्नतें और दुआएं की जा रही हैं। मां रीता बताती हैं कि बेटे के त्याग ने उसे कामयाब बनाया है। ललित बचपन से ही होनहार था वह हर फैसले खुद लेता है। अब ओलंपिक के लिए टीम चयन हुआ है। मेरा आशीर्वाद है कि इसमें भी मेरे बेटे को सफलता मिले।पिता सतीश उपाध्याय ने बताया कि घर और दो बेटे अमित और ललित के खेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए कई साल तक रेडीमेड गारमेंट की दुकान चलाई। जिससे बड़े बेटे अमित ने स्टेट हाकी प्रतियोगिता सहित 2007 से 2010 तक बीएचयू से ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी खेलकर सरकारी नौकरी में लग गए। बड़े भाई के नक्शे कदम पर चलकर ललित ने भी छठीं कक्षा से ही यूपी कॉलेज में कोच परमानंद मिश्रा की देखरेख में हॉकी का ककहरा सीखा। बड़े बेटे ललित की नौकरी के बाद पिता सतीश ने कपड़े की दुकान बंद कर दी। अब वो एक बैंक में क्लर्क का काम करते है।यूपी कॉलेज के खेल ग्राउंड में ललित के हुनर देखकर कोच परमानंद ने ललित को 2005 से 2007 तक साई स्कीम के डे-बोर्डिंग में रखकर प्रशिक्षण दिया। जिनसे हॉकी की बारीकियों को सीखकर ललित ने 2007 से 2014 तक एयर इंडिया के स्कॉलरशिप पर सात साल तक दर्जनों राष्ट्रीय टूर्नामेंट खेले। अभी फिलहाल ललित 2014 से भारतीय पेट्रोलियम टीम की तरफ से घरेलू टूर्नामेंट खेलते हैं।

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