*पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प प्राचीन भारतीय* परंपरा का हिस्सा डा0 सत्य भूषण सिंह*
बहराइच। विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 से मनाया जाता है परंतु भारत में पर्यावरण की चिंता का इतिहास हजारों साल पुराना है। आज कोरोना संक्रमण के चलते लगाए गए लॉकडाउन से पर्यावरण को हुए लाभों पर लोग चिंतन कर रहे हैं। यह बात सही है कि लोगों के आवागमन कम होने से वायु प्रदूषण में कमी आई है। वृक्षारोपण के अभियानों से भी निश्चित रूप से वन क्षेत्र में वृद्धि होगी। दुनिया में पर्यावरणविद लंबे समय से चिंतित हैं कि पर्यावरण की सुरक्षा कैसे की जाए। हजारों साल पहले वृक्षों के महत्व को भारतीय मनीषियों ने समझा था। इस संबंध में किसान पी.जी. कॉलेज, बहराइच के मध्यकालीन इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.सत्यभूषण सिंह का कहना है कि वेदों में पर्यावरण की सुरक्षा पर बहुत बल दिया गया है। वृक्ष- वनस्पतियों को जीवन का रक्षक बताया गया है। पृथ्वी, जल और अंतरिक्ष को दूषित न करने का अनेक मंत्रों में उल्लेख है। संसार के लिए जिस प्रकार जल और वायु आवश्यक है उसी प्रकार वृक्ष और वनस्पति भी जीवन के अनिवार्य अंग हैं। अथर्ववेद में उल्लेख है कि जीवन के लिए जल,वायु और वृक्ष-वनस्पति अनिवार्य हैं। अथर्ववेद के एक मंत्र में कहा गया है, 'वीरुधो वैश्वदेवी: उप्रा: पुरुषजीवनी:' अर्थात वृक्ष और वनस्पतियां मनुष्य को जीवन-शक्ति देती हैं। वृक्षों से मनुष्य को ऑक्सीजन प्राप्त होता है और उससे मनुष्य को ऊर्जा मिलती है। ऋग्वेद में एक स्थान पर आया है, मा काकम्बीरम् उदवृहो वनस्पतिम् , अशस्तीर्वि हि नीनश:।' अर्थात वृक्षों को काटने का निषेध है। वृक्ष प्रदूषण को रोकते हैं अतः इन्हें मत काटो।
*तहसील सदर से चंद्रशेखर अवस्थी की रिपोर्ट*
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