कोरोना काल ने गरीबों से जिंदगी ही नहीं छीनी बल्कि परिवार में जिंदा बचे लोगों का आसरा भी छीन लिया। उत्तर प्रदेश के मंडुवाडीह निवासी विभा सिंह के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। मध्यम वर्गीय परिवार की विभा सिंह के पति देवनाथ सिंह कोरोना संक्रमित हो गए। कुछ दिन तो घर पर उपचार किया गया लेकिन हालत बिगड़ने के बाद उन्हें सरकारी अस्पताल में बेड नहीं मिल पाया तो मजबूरन परिवार के सदस्यों को निजी अस्पताल की ओर रुख करना पड़ा।

महंगी दवाईयों और अस्पताल का खर्च उठाने में पहले तो उनकी बचत स्वाहा हो गई। रुपयों की कमी को देखते हुए विभा सिंह ने अपने कुछ रिश्तेदारों और मित्रों से आर्थिक मदद मांगी। लेकिन कोरोना काल के बहाने सभी ने इनकार कर दिया। कहीं से मदद का जरिया न बनने पर उन्हें अपनी नथिया और कंगन बेचने पड़े।पिछले साल लॉकडाउन में उनके पति का कारोबार बैठ गया था। उसे चालू करने के लिए उन्होंने कुछ गहने तब बेचे थे। कंगन और नथिया बेचने के बाद भी कमी पूरी नहीं हुई तो सुहाग को बचाने के लिए सुहाग की निशानी मंगलसूत्र भी बेच दिया। इतना सब कुछ करने के बाद उनके पति ठीक होकर घर तो आ गए लेकिन घर आने के तीन दिन बाद फिर तबीयत बिगड़ी और उनका निधन हो गया। अब उनके अब सामने दो वक्त की रोटी के लाले पड़े हैं। शृंगार के वस्तुओं की दुकान बेटा खोलता तो है लेकिन कई-कई दिनों तक बोहनी भी नहीं होती।

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