कोरोना का कहर : छोटे भाई की नोएडा में मौत और बड़े ने मेरठ में दम तोड़ा, अर्थियों को कंधा देने वाला नहीं मिला
उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस कहर बनकर टूट रहा है। मेरठ से दिल दहलाने वाली घटना सामने आई है। नेहरू नगर के निवासी दो भाइयों अरुण सक्सेना और सचिन सक्सेना की बुधवार को मौत हो गई। दोनों भाई पिछले एक सप्ताह से कोरोना वायरस से संक्रमित थे। बड़े भाई अरुण की मेरठ के लाला लाजपतराय मेडिकल कॉलेज और छोटे भाई सचिन का नोएडा के अस्पताल में इलाज चल रहा था। बुधवार की सुबह छोटे भाई सचिन की तबियत अचानक बिगड़ी और अस्पताल में मौत हो गई। छोटे भाई की मौत की सूचना मेरठ में बड़े भाई को मिली तो अरुण ने भी दम तोड़ दिया।
*बड़ा भाई सहन नहीं कर पाया छोटे भाई की मौत का सदमा*
अरुण सक्सेना का बेटा मयंक पिछले सात दिनों से पिता और चाचा की देखभाल कर रहा था। मयंक ने बताया कि बुधवार की सुबह ब्रजघाट पर चाचा का अंतिम संस्कार करके घर लौटे थे। तब तक पापा को चाचा के गुजरने की खबर नहीं दी थी। हमें मालूम था कि पता लगते ही उनकी तबियत और बिगड़ जाएगी। ब्रजघाट से लौटकर पापा को फोन किया। चाचा की मौत के बारे में बताया तो वही हुआ जिसका हम लोगों को डर था। पापा यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए। अस्पताल में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। सुबह चाचा और शाम को पिता की मौत देखि। ऐसा दिन भगवान किसी को न दिखाए।
*घर में बूढ़ी मां दोनों बेटों का कर रही इंतज़ार*
अरुण और सचिन की बुजुर्ग मां सावित्री देवी अभी तक हकीकत से अंजान हैं। उन्हें नहीं बताया गया है कि उसके जिगर के टुकड़े अब इस दुनिया से अलविदा कह चुके हैं। पोते मयंक ने बूढ़ी दादी को अभी तक यह हकीकत नहीं बताई है। मयंक का कहना है कि हम लोगों को डर है कि जैसे पापा की जान चाचा की मौत का पता चलने से चली गई, अब उसी तरह कहीं दादी दोनों बेटों के बारे जानकार न चली जाएं। इस डर से मयंक खामोश है। मयंक ने कहा कि दादी को कैसे बताऊं कि अपने जिन बेटों के बारे में वह बार-बार पूछ रही हैं, अब वे अस्पताल से तो क्या इस दुनिया में ही वापस नहीं आएंगे। मयंक ने दिल पर पत्थर रखकर अपने गम को छिपाया हुआ है।
*कोई मेरे पिता का अंतिम संस्कार करा दो*
पिता की मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन ने मयंक को फोन किया। उनसे पिता का शव ले जाने को कहा गया। मयंक ने पड़ोसियों से लेकर रिश्तेदारों और दोस्तों से मदद मांगी। अफसरों को फोन किए कि कोई आकर मेरे पिता का अंतिम संस्कार करवा दे। उनके शव को कांधा दे दे, लेकिन महामारी के भय में मदद को कोई हाथ बढ़ाने नहीं आया। अरुण को कांधा भी नसीब नहीं हो सका। मजबूरन मयंक ने शव मोर्चरी में रखवा दिया है ।।
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