उतरौला (बलरामपुर)
कोरोना कर्फ्यू के बीच होगी अलविदा जुमा की आमद। 
माहे रमजान का आखरी जुमा यह एहसास दिलाता है कि रमजान का ये अफ़ज़ल और नेक महीना हमारे बीच से रुखसत हो रहा है।
रमजान के पाक साफ़ महीने का आखिरी अशरा हम सब के बीच है। इस महीने के आखिरी जुमा यानी शुक्रवार को अलविदा जुमा कहते हैं जोकि कल है। यह जुमा एहसास दिलाता है कि रमजान का ये अफ़ज़ल और नेक महीना हमारे बीच से रुखसत हो रहा है। इस दिन मुस्लिम धर्म के लोग ज़ोहर के वक़्त अलविदा जुमा की नमाज़ पढ़ते हैं। लेकिन इस बार मंज़र ही कुछ और है।
कोरोनावायरस की वजह से प्रदेश में कोरोना कर्फ्यू लागू है। ऐसे में किसी भी धार्मिक स्थल पर उसकी क्षमता के पचास प्रतिशत लोग ही जमा हो सकते हैं। इसलिए उलमा-ए-कराम  मस्जिदों में चरणबद्ध तरीके से अलविदा की नमाज अदा किए जाने की योजना बना रहे है। 
हालांकि जुमे की और ईद की नमाज़ बाकी नमाज़ से थोड़ी अलग होती है। इसलिए इसे घर पर पढ़ना मुश्किल होता है। इन दोनों नमाज़ों के लिए क़ुत्बा ज़रूरी होता है। और क़ुत्बा हर किसी के ज़हन में कैद नहीं हो सकता है। ये एक तरीके की तक़रीर होती है जिसमें दुआएं शामिल होती हैं।
भारत में सुन्नी मुसलमानों में हनफी मस्लक के मानने वाले ज्यादा हैं। और उनके यहां जुमे की नमाज के लिए कम से कम चार लोगों की शर्त है। और दूसरी शर्त ये है कि जहां नमाज़ पढ़ी जाए वो जगह खुली खुली सी हो, बंद कमरे की तरह नहीं। और तीसरी शर्त जो सबसे अहम है कि क़ुत्बे का पढ़ा जाना। 
अगर कोई भी इंसान इन शर्तों को पूरा करता है तो वो जुमे की नमाज़ और अलविदा की नमाज़ घर पर ही अदा कर सकता है।
असगर अली
उतरौला

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