आगरा || लॉक डाउन चल रहा हैं,लोग कामकाज नहीं कर रहें। जमा पूंजी भी ख़त्म हो चली हैं,गरीबों पर पैसे ना होने के कारण पेट भरने के लिए रसोईघर में खाना बनाने के सामानों पर संकट गहराता जा रहा हैं। ऐसी स्थिति में एक ग़रीब मोहल्ले में बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर मैडम के रसोईघर में आटा, दाल, चावल, रिफाइंड, मसाले, सब्जी आदि उपलब्ध नहीं है, मगर वह सादगी से रहने वाली महिला अपने आत्मसम्मान के कारण बाहर आकर समाजसेवियों द्वारा वितरित की जा रही राहत सामग्री वाली लाइन में लगने से घबरा रही है। राहत सामग्री वितरण करने वाले समाजसेवी को जैसे ही यह बात पता चली उन्होंने जरूरतमंदों में फ्री आटा, दाल, चावल, चीनी, समाले, रिफाइंड, साबुन और मास्क आदि बांटना कुछ देर के लिए रोक दिया। पढ़े-लिखे समाजसेवी हैं,सो आपस में अपनी संस्था के मेंबर्स से सलाह मशवरा करने लगे। बातचीत में तय हुआ कि ना जाने कितने मध्यवर्ग के लोग अपनी आंखों में ज़रूरत का प्याला लिए फ़्री राशन की लाइन को देखते हैं,पर अपने आत्मसम्मान के कारण मुफ़्त राशन लेने लाइन में नहीं आते। इस विचार पर काफ़ी देर राय मशवरा करने के बाद वरिष्ठ समाजसेवी ने फ़्री राशन वितरण के बैनर पर अपने हाथों से लिख कर बैनर लगा दिया।
जिस पर उस पर लिख दिया कि स्पेशल ऑफ़र "हर प्रकार की सब्जी 15 रूपए किलो" साथ ही आटा,चावल,दाल,चीनी,रिफाइंड,साबुन और मास्क फ्री...!
15 रूपए किलो का बोर्ड देख फ्री वाली भीड़ छंट गई और ख़ुसी ख़ुसी मध्यवर्गीय परिवार के मजबूर लोग हाथ में दस, बीस, पचास, सौ रूपए पकड़े ख़रीदारी की लाईन में लग गए। अब उन्हें इत्मीनान था। क्योंकि अब आत्मसम्मान को ठेस लगने वाली बात की मजबूरी नहीं थी। इसी लाइन में बच्चों को पढाने वाली टीचर मैडम भी अपने हाथ में मामूली रकम लेकर पर्दे में इत्मीनान से खड़ी थीं। लेकिन उनकी आंखें भीगी हुई थी, मगर चहरे पर कोई सिकन या घबराहट नहीं थी। लाइन आगे बढ़ती रही जब उनकी बारी आई सामान लिया। पैसे दिए और इत्मीनान के साथ थैले में समान लेकर घर वापस आ गईं। जब उन्होंने सामान खोलकर देखा तो उन्हें बड़ी हैरत हुई कि जो पैसे उन्होंने ख़रीदारी के लिए दिए थे वह पूरे के पूरे उनके सामान के थैले में मौजूद हैं। वरिष्ठ समाजसेवी ने उनका पैसा वापस उस समान के थैले में डाल दिए थे। क्योंकि वरिष्ठ समाजसेवी हर ख़रीदारी के साथ यही कर रहे थे। आज के परिदृश्य में यह सच है कि सेवा का तरीका कहीं कहीं बहुत ही फूहडपन भरा दिखाई देता हैं। ज़रूरतमंद मध्यंवर्गीय परिवारों का भी ख़्याल रखिए और इज़्ज़तदार मजबूरों का आदर किजिए। यकीन रखिए कि ईश्वर आप पर अधिक नजर रखता है l इसलिए ज़रूरत मन्द की मदद तरीक़े से करे। कुछ समाजसेवियों से विनम्र अपील ये होनी चाहिए कि मदद किजिए पर किसी के आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचाइए।
इसी महत्वपूर्ण विचार आगे बढ़ाते हुए आत्मनिर्भर एक प्रयार अध्यक्ष व आगरा स्मार्ट सिटी,भारत सरकार के सलाहकार सदस्य राजेश खुराना कहा कि सर्वशक्तिमान व्यक्ति भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसने कभी किसी का सहयोग नहीं लिया अथवा भविष्य में नहीं लेगा। हमें जीवन निर्वाह के लिए प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से शेष समाज से सहयोग की जरूरत होती हैं। ऐसे में अपने ह्रदय में भी समाजसेवा के भाव रखकर उपेक्षित, वंचित, पीड़ित और ज़रूरतमन्द व्यक्ति की मदद जरुर करें। परहित सरिस धर्म नहीं भाई यानी दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई भी धर्म नहीं हैं। समाजसेवा एक पुण्य कार्य हैं। इसके कारण लोग अमर हो जाते है तथा उन्हें सदियों तक याद भी किया जाता हैं। अपना पेट तो जानवर भी भरते हैं। मगर इंसान में ख़ास बात यह हैं कि वह समूचे समाज व राष्ट्रहित की सोचता हैं तथा हर जरूरतमंद की मदद करने के लिए भी आगे आते हैं। निस्वार्थ भाव से किसी दूसरे की गई मदद को ही सच्ची समाजसेवा कहा जाता हैं। हमारा मानना हैं कि समाज सेवा रुपी हथियार की मदद से बड़ी से बड़ी सामाजिक बुराई एवं बड़े से बड़े संकट को दूर किया जा सकता हैं।
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