मोक्ष की नगरी काशी में गंगा के पानी का रंग बदल रहा है। यहां काफी बड़े भाग में गंगा का पानी हरा हो गया है। इसे लेकर BHU के न्यूरोलॉजिस्ट और गंगा की सेवा में लगे रहने वाले प्रोफेसर विजय नाथ मिश्रा ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसका सैंपल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को सौंपकर जांच करने को कहा है। केंद्रीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की रीजनल टीम ने भी जांच शुरू कर दी है।
प्रो. विजय नाथ मिश्रा ने बताया कि पांच दिन पहले वह गंगा किनारे टहल रहे थे। इस दौरान उन्हें गंगा में हरे रंग की डाई दिखी। मंगलवार की शाम उन्होंने बीएचयू के वैज्ञानिकों को टेस्टिंग के लिए गंगाजल का सैंपल दिया है। बीएचयू के ही इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉ. कृपा राम ने बताया कि सल्फेट या फास्फेट की मात्रा बढ़ने से शैवाल को प्रकाश संश्लेषण का मौका मिलता है। इस वजह से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है और यह स्थिति जलीय जीवों के लिए ठीक नहीं होती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह ने बुधवार को बताया हमारी टीम भी सैंपल ले रही है। फिलहाल नाइट्रोजन और फॉस्फोरस निर्धारित मात्रा से ज्यादा मिले हैं। सैंपल लेने का काम पूरा हो जाएगा तो किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे। उधर, वाराणसी में नमामि गंगे के संयोजक राजेश शुक्ला ने बताया कि प्रथमदृष्टया यह प्रतीत हुआ है कि गंगा के प्रवाह में कमी आई है। अगर गंगा का प्रवाह बरकरार रहेगा तो यह काई यानी हरे शैवाल की समस्या नहीं होगी
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